Saturday 3 December 2011

संभोग से समाधि की ओर-2

एक सुबह, अभी सूरज भी निकलन हीं था। और एक मांझी नदी के किनारे पहुंच गया था। उसका पैर किसी चीज से टकरा गया। झुककर उसने देखा। पत्‍थरों से भरा हुआ एक झोला पडा था। उसने अपना जाल किनारे पर रख दिया,वह सुबह के सूरज के उगने की प्रतीक्षा करने लगा। सूरज ऊग आया,वह अपना जाल फेंके और मछलियाँ पकड़े। वह जो झोला उसे पडा हुआ मिला था, जिसमें पत्‍थर थे। वह एक-एक पत्‍थर निकालकर शांत नदी में फेंकने लगा। सुबह के सन्‍नाटे में उन पत्‍थरों के गिरने की छपाक की आवाज उसे बड़ी मधुर लग रही थी। उस पत्‍थर से बनी लहरे उसे मुग्‍ध कर रही थी। वह एक-एक कर के पत्‍थर फेंकता रहा।
धीरे-धीरे सुबह का सूरज निकला, रोशनी हुई। तब तक उसने झोले के सारे पत्‍थर फेंक दिये थे। सिर्फ एक पत्‍थर उसके हाथ में रह गया था। सूरज की रोशनी मे देखते ही जैसे उसके ह्रदय की धड़कन बंद हो गई। सांस रूक गई। उसने जिन्‍हें पत्‍थर समझा कर फेंक दिया था। वे हीरे-जवाहरात थे। लेकिन अब तो अंतिम हाथ में बचा था, और वह पूरे झोले को फेंक चूका था। और वह रोने लगा, चिल्‍लाने लगा। इतनी संपदा उसे मिल गयी थी कि अनंत जन्‍मों के लिए काफी थी, लेकिन अंधेरे में, अंजान अपरिचित, उसने उस सारी संपदा को पत्‍थर समझकर फेंक दिया था।
लेकिन फिर भी वह मछुआ सौभाग्‍यशाली था, क्‍योंकि अंतिम पत्‍थर फेंकने से पहले सूरज निकल आया था और उसे दिखाई पड़ गया था कि उसके हाथ में हीरा है। साधारणतया सभी लोग इतने भाग्‍यशाली नहीं होते। जिंदगी बीत जाती है, सूरज नहीं निकलता, सुबह नहीं होती, सूरज की रोशनी नहीं आती। और सारे जीवन के हीरे हम पत्‍थर समझकर फेंक चुके होते है।
जीवन एक बड़ी संपदा है, लेकिन आदमी सिवाय उसे फेंकने और गंवाने के कुछ भी नहीं करता है।
जीवन क्‍या है, यह भी पता नहीं चल पाता और हम उसे फेंक देते है। जीवन में क्‍या छिपा है, कौन से राज, कौन से रहस्‍य, कौन सा स्‍वर्ग, कौन सा आनंद, कौन सी मुक्‍ति, उन सब का कोई भी अनुभव नहीं हो पाता और जीवन हमारे हाथ से रिक्‍त हो जाता है।
इन आने वाले तीन दिनों में जीवन की संपदा पर ये थोड़ी सी बातें मुझे कहानी है। लेकिन जो लोग जीवन की संपदा को पत्‍थर मान कर बैठे है। वे कभी आँख खोलकर देख पायेंगे कि जिन्‍हें उन्‍होंने पत्‍थर समझा है, वह हीरे-माणिक है, यह बहुत कठिन है। और जिन लोगो ने जीवन को पत्‍थर मानकर फेंकन में ही समय गंवा दिया है। अगर आज उनसे कोई कहने जाये कि जिन्‍हें तुम पत्‍थर समझकर फेंक रहे थे। वहां हीरे-मोती भी थे तो वे नाराज होंगे। क्रोध से भर जायेंगे। इसलिए नहीं कि जो बात कही गयी है वह गलत है, बल्‍कि इसलिए कि यह बात इस बात का स्‍मरण दिलाती है। कि उन्‍होंने बहुत सी संपदा फेंक दी।
लेकिन चाहे हमने कितनी ही संपदा फेंक दी हो, अगर एक क्षण भी जीवन का शेष है तो फिर भी हम कुछ बचा सकते है। और कुछ जान सकते है और कुछ पा सकते है। जीवन की खोज में कभी भी इतनी देर नहीं होती कि कोई आदमी निराश होने का कारण पाये।
लेकिन हमने यह मान ही लिया है—अंधेरे में, अज्ञान में कि जीवन में कुछ भी नहीं है सिवाय पत्‍थरों के। जो लोग ऐसा मानकर बैठ गये है, उन्‍होंने खोज के पहले ही हार स्‍वीकार कर ली है।
मैं इस हार के संबंध में, इस निराशा के संबंध के, इस मान ली गई पराजय के संबंध में सबसे पहले चेतावनी यह देना चाहता हूं के जीवन मिटटी और पत्‍थर नहीं है। जीवन में बहुत कुछ है। जीवन मिटटी और पत्‍थर के बीच बहुत कुछ छिपा है। अगर खोजने वाली आंखें हो तो जीवन से वह सीढ़ी भी निकलती है, जो परमात्‍मा तक पहुँचती है। इस शरीर में भी,जो देखने पर हड्डी मांस और चमड़ी से ज्‍यादा नहीं है। वह छिपा है, जिसका हड्डी, मांस और चमड़ी से कोई संबंध नहीं है। इस साधारण सी देह में भी जो आज जन्‍मती है कल मर जाती है। और मिटटी हो जाती है। उसका वास है—जो अमृत है, जो कभी जन्‍मता नहीं और कभी समाप्‍त नहीं होता है।
रूप के भीतर अरूप छिपा है और दृश्‍य के भीतर अदृश्‍य का वास है। और मृत्‍यु के कुहासे में अमृत की ज्‍योति छीपी है। मृत्‍यु के धुएँ में अमृत की लौ भी छिपी हुई है। वह फ्लेम वह ज्‍योति भी छिपी है, जिसकी की कोई मृत्‍यु नहीं है।
यह यात्रा कैसे हो सकती है कि धुएँ के भीतर छिपी हुई ज्‍योति को जान सकें, शरीर के भीतर छिपी हुई आत्‍मा को पहचान सकें, प्रकृति के भीतर छिपे हुए परमात्‍मा के दर्शन कर सकें। उस संबंध में ही तीन चरणों में मुझे बातें करनी है।
पहली बात,हमने जीवन के संबंध में ऐसे दृष्‍टिकोण बना लिए है, हमने जीवन के संबंध में ऐसी धारणाएं बना ली है। हमने जीवन के संबंध में ऐसा फलसफा खड़ा कर रखा है कि उस दृष्‍टिकोण और धारणा के कारण ही जीवन के सत्‍य को देखने से हम वंचित रह जाते है। हमने मान ही लिया है कि जीवन क्‍या है—बिना खोजें, बिना पहचाने, बिना जिज्ञासा किये, हमने जीवन के संबंध में कोई निश्‍चित बात ही समझ रखी है
हजारों वर्षों से हमें एक बात मंत्र की तरह पढ़ाई जाती है। जीवन आसार है, जीवन व्‍यर्थ हे, जीवन दु:ख है। सम्‍मोहन की तरह हमारे प्राणों पर यह मंत्र दोहराया गया है कि जीवन व्‍यर्थ है, जीवन आसार है, जीवन छोड़ने योग्‍य है। यह बात सुन-सुन कर धीरे-धीरे हमारे प्राणों में पत्‍थर की तरह मजबूत होकर बैठ गयी है। इस बात के कारण जीवन आसार दिखाई पड़ने लगा है। जीवन दुःख दिखाई पड़ने लगा है। इस बात के कारण जीवन ने सारा आनंद, सारा प्रेम,सारा सौंदर्य खो दिया है। मनुष्‍य एक कुरूपता बन गया है। मनुष्‍य एक दुःख का अड्डा बन गया है।
और जब हमने यह मान ही लिया कि जीवन व्‍यर्थ, आसार है, तो उसे सार्थक बनाने की सारी चेष्‍टा भी बंद हो गयी हो तो आश्‍चर्य नहीं है। अगर हमने यह मान ही लिया है कि जीवन एक कुरूपता है ताक उसके भीतर सौंदर्य की खोज कैसे हो सकती है। और अगर हमने यह मान ही लिया है कि जीवन सिर्फ छोड़ देने योग्‍य है, तो जिसे छोड़ ही देना है। उसे सजाना, उसे खोजना, उसे निखारना,इसकी कोई भी जरूरत नहीं है।
हम जीवन के साथ वैसा व्‍यवहार कर रहे है, जैसा कोई आदमी स्‍टेशन पर विश्रामालय के साथ व्यवहार करता है। वेटिंग रूम के साथ व्‍यवहार करता है। वह जानता है कि क्षण भर हम इस वेटिंग में ठहरे हुए है। क्षण भर बाद छोड़ देना है, इस वेटिंग रूम का प्रयोजन क्‍या है? क्‍या अर्थ है? वह वहां मूंगफली के छिलके भी डालता है। पान भी थूक देता है। गंदा भी करता है और सोचता है मुझे क्‍या प्रयोजन। क्षण भर बाद मुझे चले जाना है।
जीवन के संबंध में भी हम इसी तरह का व्‍यवहार करते है। जहां से हमें क्षण भर बाद चले जाना है। वहां सुन्‍दर और सत्‍य की खोज और निर्माण करने की जरूरत क्‍या है?
लेकिन मैं आपसे कहना चाहता हूं, जिंदगी जरूर हमें छोड़ कर चले जाना है; लेकिन जो असली जिंदगी है, उसे हमें कभी भी छोड़ने का कोई उपाय नहीं है। हम घर छोड़ देंगे,यह स्‍थान छोड़ देंगे; लेकिन जो जिंदगी का सत्‍य है, वह सदा हमारे साथ होगा। वह हम स्‍वयं है। स्‍थान बदल जायेंगे बदल जायेंगे, लेकिन जिंदगी…जिंदगी हमारे साथ होगी। उसके बदलने का कोई उपाय नहीं है।
और सवाल यह नहीं है कि जहां हम ठहरे थे उसे हमनें सुंदर किया था, जहां हम रुके थे वहां हमने प्रीतिकर हवा पैदा की थी। जहां हम दो क्षण को ठहरे थे वहां हमने आनंद की गीत गाया था। सवाल यह नहीं है कि वहां आनंद का गीत हमने गाया था। सवाल यह है कि जिसने आनंद का गीत गया था, उसके भीतर आनंद के और बड़ी संभावनाओं के द्वार खोल लिए। जिसने उस मकान को सुंदर बनाया था। उसने और बड़े सौंदर्य को पाने की क्षमता उपलब्‍ध कर ली है। जिसने दो क्षण उस वेटिंग रूम में भी प्रेम के बीताये थे, उसने और बड़े पर को पाने की पात्रता अर्जित कर ली है।
हम जो करते है उसी से हम निर्मित होते है। हमारा कृत्‍य अंतत: हमें निर्मित करता है। हमें बनाता है। हम जो करते है, वहीं धीरे-धीरे हमारे प्राण और हमारी आत्‍मा का निर्माता हो जाता है। जीवन के साथ हम क्‍या कर रहे है,इस पर निर्भर करेगा कि हम कैसे निर्मित हो रहे है। जीवन के साथ हमारा क्‍या व्‍यवहार है, इस पर निर्भर होगा कि हमारी आत्‍मा किन दिशाओं में यात्रा करेगी। किन मार्गों पर जायेगी। किन नये जगत की खोज करेगी।
जीवन के साथ हमारा व्‍यवहार हमें निर्मित करता है—यह अगर स्‍मरण हो, तो शायद जीवन को आसार, व्‍यर्थ माने की दृष्‍टि हमें भ्रांत मालूम पड़ें; तो शायद हमें जीवन को दुःख पूर्ण मानने की बात गलत मालूम पड़े, तो शायद हमें जीवन से विरोध रूख अधार्मिक मालूम पड़े।
लेकिन अब तक धर्म के नाम पर जीवन का विरोध ही सिखाया गया है। सच तो यह है कि अब तक का सारा धर्म मृत्‍यु वादी है, जीवन वादी नहीं, उसकी दृष्‍टि में मृत्‍यु के बाद जो है, वहीं महत्‍वपूर्ण है, मृत्‍यु के पहले जो है वह महत्‍वपूर्ण नहीं है। अब तक के धर्म की दृष्‍टि में मृत्‍यु की पूजा है, जीवन का सम्‍मान नहीं। जीवन के फूलों का आदर नहीं, मृत्‍यु के कुम्‍हला गये, जा चुके, मिट गये, फूलों की क़ब्रों की , प्रशंसा और श्रद्धा है।
अब तक का सारा धर्म चिन्‍तन कहता है कि मृत्‍यु के बाद क्‍या है—स्‍वर्ग,मोक्ष, मृत्‍यु के पहले क्‍या है। उससे आज तक के धर्म को कोई संबंध नहीं रहा है।
और मैं आपसे कहना चाहता हूं कि मृत्‍यु के पहले जो है, अगर हम उसे ही संभालने मे असमर्थ है, तो मृत्‍यु के बाद जो है उसे हम संभालने में कभी भी समर्थ नहीं हो सकते। मृत्‍यु के पहले जो है अगर वहीं व्‍यर्थ छूट जाता है, तो मृत्‍यु के बाद कभी भी सार्थकता की कोई गुंजाइश कोई पात्रता, हम अपने में पैदा नहीं करा सकेंगे। मृत्‍यु की तैयारी भी इस जीवन में जो आसपास है मौजूद है उस के द्वारा करनी है। मृत्‍यु के बाद भी अगर कोई लोक है, तो उस लोक में हमें उसी का दर्शन होगा। जो हमने जीवन में अनुभव किया है। और निर्मित किया है। लेकिन जीवन को भुला देने की,जीवन को विस्‍मरण कर देने की बात ही अब तक नहीं की गई।
मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जीवन के अतिरिक्‍त न कोई परमात्‍मा है, न हो सकता है।
मैं आपसे यह भी कहना चाहता हूं कि जीवन को साध लेना ही धर्म की साधना है और जीवन में ही परम सत्‍य को अनुभव कर लेना मोक्ष को उपल्‍बध कर लेने की पहली सीढ़ी है।
जो जीवन को ही चूक जाते है वह और सब भी चूक जायेगा,यह निश्‍चित है।
लेकिन अब तक का रूख उलटा रहा है। वह रूख कहता है, जीवन को छोड़ो। वह रूख कहता है जीवन को त्‍यागों। वह यह नहीं कहता है कि जीवन में खोजों। वह यह नहीं कहता है कि जीवन को जीने की कला सीख़ों। वह यह भी नहीं कहता है कि जीवन को जीने पर निर्भर करता है कि जीवन कैसा मालुम पड़ता है। अगर जीवन अंधकार पूर्ण मालूम पड़ता है, तो वह जीने का गलत ढंग है। यही जीवन आनंद की वर्षा भी बन सकता है। आगर जीने का सही ढंग उपलब्‍ध हो जाये।
धर्म जीवन की तरफ पीठ कर लेना नहीं है, जीवन की तरफ पूरी तरह आँख खोलना है।
धर्म जीवन से भागना नहीं है, जीवन को पूरा आलिंगन में ले लेना है।
धर्म है जीवन का पूरा साक्षात्‍कार।
यही शायद कारण है कि आज तक के धर्म में सिर्फ बूढ़े लोग ही उत्‍सुक रहे है। मंदिरों में जायें, चर्चों में, गिरजा घरों में, गुरु द्वारों में—और वहां वृद्ध लोग दिखाई पड़ेंगे। वहां युवा दिखाई नहीं पड़ते, वहां बच्‍चे दिखाई नहीं पड़ते,क्‍या करण है?
एक ही कारण है। अब तक का हमारा धर्म सिर्फ बूढ़े लोगों का धर्म है। उन लोगों का धर्म है, जिनकी मौत करीब आ रही है। और अब मौत से भयभीत हो गये है, मौत के बाद की चिंता के संबंध में आतुर है, और जानना चाहते है कि मौत के बाद क्‍या है।
जो धर्म मौत पर आधारित है, वह धर्म पूरे जीवन को कैसे प्रभावित कर सकेगा। जो धर्म मौत का चिंतन करता है, वह पृथ्‍वी को धार्मिक कैसे बना सकता है।
वह नहीं बना सका। पाँच हजार वर्षों की धार्मिक शिक्षा के बाद भी पृथ्‍वी रोज-रोज अधार्मिक होती जा रही है। मंदिर है, मसजिदें है, चर्च है, पुजारी है, पुरोहित है, सन्‍यासी है, लेकिन पृथ्‍वी धार्मिक नहीं हो सकी है। और नहीं हो सकेगी। क्‍योंकि धर्म का आधार ही गलत है। धर्म कार आधार जीवन नहीं है, धर्म का आधार मृत्‍यु है। धर्म का आधार खिलते हुए फूल नहीं है, कब्र है। जिस धर्म का आधार मृत्‍यु है, वह धर्म अगर जीवन के प्राणों को स्‍पंदित न कर पाता हो, तो इसमें आश्‍चर्य क्‍या है? जिम्‍मेवारी किस की है?
मैं इन तीन दिनों में जीवन के धर्म के संबंध में बात करना चाहता हूं और इसीलिए पहला सूत्र समझ लेना जरूरी है। और इस सूत्र के संबंध में आज तक छिपाने की, दबाने की, भूल जाने की चेष्‍टा की गयी है। लेकिन जानने और खोजने की नहीं। और उस भूलने और विस्‍मृत कर देने की चेष्‍टा के दुष्‍परिणाम सारे जगत में व्‍याप्‍त हो गये है।
मनुष्‍य के सामान्‍य जीवन के में केंद्रीय तत्‍व क्‍या है—परमात्‍मा? आत्‍मा? सत्‍य?
नहीं,मनुष्‍य के प्राणों में, सामान्‍य मनुष्‍य के प्राणों में,जिसने कोई खोज नहीं की, जिसने कोई यात्रा नहीं की। जिसने कोई साधना नहीं की। उसके प्राणों की गहराई में क्‍या है—प्रार्थना? पूजा? नहीं,बिलकुल नहीं।
अगर हम सामान्‍य मनुष्‍य के जीवन-ऊर्जा में खोज करें,उसकी जीवन शक्‍ति को हम खोजने जायें तो न तो वहां परमात्‍मा है, न वहां पूजा है, न प्रार्थना है,न ध्‍यान है, वहां कुछ और ही दिखाई देता है, जो दिखाई पड़ता है उसे भूलने की चेष्‍टा की गई है। उसे जानने और समझने की नहीं।
वहां क्‍या दिखाई पड़ेगा अगर हम आदमी के प्राणों को चीरे और फाड़े और वहां खोजें? आदमी को छोड़ दें, अगर आदमी से इतन जगत की भी हम खोज-बीन करें तो वहां प्राणों की गहराईयों में क्‍या मिलेगा? अगर हम एक पौधे की जांच-बीन करें तो क्‍या मिलेगा? एक पौधा क्‍या कर रहा है?
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एक पौधा पूरी चेष्‍टा कर रहा है—नये बीज उत्पन्न करने की, एक पौधा के सारे प्राण,सारा रस , नये बीज इकट्ठे करने, जन्‍म नें की चेष्‍टा कर रहा है। एक पक्षी क्‍या कर रहा है। एक पशु क्‍या कर रहा है।
अगर हम सारी प्रकृति में खोजने जायें तो हम पायेंगे, सारी प्रकृति में एक ही, एक ही क्रिया जोर से प्राणों को घेर कर चल रही है। और वह क्रिया है सतत-सृजन की क्रिया। वह क्रिया है ‘’क्रिएशन’’ की क्रिया। वह क्रिया है जीवन को पुनरुज्जीवित, नये-नये रूपों में जीवन देने की क्रिया। फूल बीज को संभाल रहे है, फल बीज को संभाल रहे है। बीज क्‍या करेगा? बीज फिर पौधा बनेगा। फिर फल बनेगा।
अगर हम सारे जीवन को देखें, तो जीवन जन्म ने की एक अनंत क्रिया का नाम है। जीवन एक ऊर्जा है, जो स्‍वयं को पैदा करने के लिए सतत संलग्न है और सतत चेष्‍टा शील है।
आदमी के भीतर भी वहीं है। आदमी के भीतर उस सतत सृजन की चेष्‍टा का नाम हमने ‘सेक्‍स’ दे रखा है, काम दे रखा है। इस नाम के कारण उस ऊर्जा को एक गाली मिल गयी है। एक अपमान । इस नाम के कारण एक निंदा का भाव पैदा हो गया है। मनुष्‍य के भीतर भी जीवन को जन्‍म देने की सतत चेष्‍टा चल रही है। हम उसे सेक्‍स कहते है, हम उसे काम की शक्‍ति कहते है।
लेकिन काम की शक्‍ति क्‍या है?
समुद्र की लहरें आकर टकरा रही है समुद्र के तट से हजारों वर्षों से। लहरें चली आती है, टकराती है, लौट जाती है। फिर आती है, टकराती है लौट जाती है। जीवन भी हजारों वर्षों से अनंत-अनंत लहरों में टकरा रहा है। जरूर जीवन कहीं उठना चाहता होगा। यह समुद्र की लहरें, जीवन की ये लहरें कहीं ऊपर पहुंचना चाहती है; लेकिन किनारों से टकराती है और नष्ट हो जाती है। फिर नयी लहरें आती है, टकराती है और नष्‍ट हो जाती है। यह जीवन का सागर इतने अरबों बरसों से टकरा रहा है, संघर्ष ले रहा है। रोज उठता है, गिर जाता है, क्‍या होगा प्रयोजन इसके पीछे? जरूर इसके पीछे कोई बृहत्तर ऊँचाइयों को छूने का आयोजन चल रहा होगा। जरूर इसके पीछे कुछ और गहराइयों को जानने का प्रयोजन चल रहा है। जरूर जीवन की सतत प्रक्रिया के पीछे कुछ और महान तर जीवन पैदा करने का प्रयास चल रहा है।
मनुष्‍य को जमीन पर आये बहुत दिन नहीं हुए है, कुछ लाख वर्ष हुए। उसके पहले मनुष्‍य नहीं था। लेकिन पशु थे। पशु को आये हुए भी बहुत ज्‍यादा समय नहीं हुआ। एक जमाना था कि पशु भी नहीं था। लेकिन पौधे थे। पौधों को भी आये बहुत समय नहीं हुआ। एक समय था जब पौधे भी नहीं थे। पहाड़ थे। नदिया थी, सागर थे। पत्‍थर थे। पत्‍थर, पहाड़ और नदियों की जो दुनिया थी वह किस बात के लिए पीड़ित थी?
वह पौधों को पैदा करना चाहती थी। पौधे धीरे-धीरे पैदा हुए। जीवन ने एक नया रूप लिया। पृथ्‍वी हरियाली से भर गयी। फूल खिल गये।
लेकिन पौधे भी अपने से तृप्‍त नहीं थे। वे सतत जीवन को जन्‍म देते है। उसकी भी कोई चेष्‍टा चल रही थी। वे पशुओं को पक्षियों को जन्‍म देना चाहते है। पशु, पक्षी पैदा हुए।
हजारों लाखों बरसों तक पशु, पक्षियों से भरा था यह जगत, लेकिन मनुष्‍य को कोई पता नहीं था। पशुओं और पक्षियों के प्राणों के भीतर निरंतर मनुष्‍य भी निवास कर रहा था। पैदा होने की चेष्‍टा कर रहा था। फिर मनुष्‍य पैदा हुआ।
अब मनुष्‍य किस लिए?
मनुष्‍य निरंतर नये जीवन को पैदा करने के लिए आतुर है। हम उसे सेक्‍स कहते है, हम उसे काम की वासना कहते है। लेकिन उस वासना का मूल अर्थ क्‍या है? मूल अर्थ इतना है कि मनुष्‍य अपने पर समाप्‍त नहीं होना चाहता, आगे भी जीवन को पैदा करना चाहता है। लेकिन क्‍यों? क्‍या मनुष्‍य के प्राणों में, मनुष्‍य के ऊपर किसी ‘सुपरमैन’ को, किसी महा मानव को पैदा करने की कोई चेष्‍टा चल रही है?
निश्‍चित ही चल रही है। निश्‍चित ही मनुष्‍य के प्राण इस चेष्‍टा में संलग्‍न है कि मनुष्‍य से श्रेष्‍ठतर जीवन जन्‍म पा सके। मनुष्‍य से श्रेष्‍ठतर प्राणी आविर्भूत हो सके। नीत्से से लेकर अरविंद तक, पतंजलि से लेकिर बर ट्रेन्ड रसल तक। सारे मनुष्‍य के प्राणों में एक कल्‍पना, एक सपने की तरह बैठी रही कि मनुष्‍य से बड़ा प्राणी पैदा कैसे हो सके। लेकिन मनुष्‍य से बड़ा प्राणी पैदा कैसे होगा?
हमने तो हजारों वर्षों से इस पैदा होने की कामना को ही निंदित कर रखा है। हमने तो सेक्‍स को सिवाय गाली के आज तक दूसरा कोई सम्‍मान नहीं दिया। हम तो बात करने मैं भयभीत होते है। हमने तो सेक्‍स को इस भांति छिपा कर रख दिया है, जैसे वह है ही नहीं। जैसे उसका जीवन में कोई स्‍थान नहीं है। जब कि सच्‍चाई यह है कि उससे ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण मनुष्‍य के जीवन में ओर कुछ भी नहीं है। लेकिन उसको छिपाया है दबाया है, क्‍यों?
दबाने और छिपाने से मनुष्‍य सेक्‍स से मुक्‍त नहीं हो गया, बल्‍कि और भी बुरी तरह से सेक्‍स से ग्रसित हो गया। दमन उलटे परिणाम लाता है।
शायद आप में से किसी ने एक फ्रैंच वैज्ञानिक कुये के एक नियम के संबंध में सुना होगा। वह नियम है ’’लॉ ऑफ रिवर्स एफेक्ट’’। कुये ने एक नियम ईजाद किया है, ‘विपरीत परिणाम का’। हम जो करना चाहते है, हम इस ढंग से कर सकते है। कि जो हम परिणाम चाहते है, उसके उल्‍टा परिणाम हो जाये।
एक आदमी साइकिल चलाना सीखता है। बड़ा रास्‍ता है। चौड़ा रास्‍ता है। एक छोटा सा पत्‍थर रास्‍ते के किनारे पडा हुआ है। वह साइकिल चलाने वाला घबराता है। की मैं कहीं उस पत्‍थर से न टकरा जाऊँ। अब इतना चौड़ा रास्‍ता पडा है। वह साइकिल चलने वाला अगर आँख बंध कर के भी चलाना चाहे तो भी उस पत्‍थर से टकराने की संभावना न के बराबर है। इसका सौ में से एक ही मौका है वह पत्‍थर से टकराये। इतने चौड़े रास्‍ते पर कहीं से भी निकल सकता है लेकिन वह देखकर घबराता है। कि कहीं पत्‍थर से टकरा न जाऊँ। और जैसे ही वह घबराता है, मैं पत्‍थर से न टकरा जाऊँ। सारा रास्‍ता विलीन हो जाता है। केवल पत्‍थर ही दिखाई दिया। अब उसकी साइकिल का चाक पत्‍थर की और मुड़ने लगा। वह हाथ पैर से घबराता है। उसकी सारी चेतना उस पत्‍थर की और देखने लगती है। और एक सम्‍मोहित हिप्रोटाइज आदमी कि तरह वह पत्‍थर की तरफ खिंच जाता है। और जा कर पत्‍थर से टकरा जाता है। नया साईकिल सीखने वाला उसी से टकरा जाता है जिससे बचना चाहता है। लैम्‍पो से टकरा जाता है, खम्‍बों से टकरा जाता है, पत्‍थर से टकरा जाता है। इतना बड़ा रास्‍ता था कि अगर कोई निशानेबाज ही चलाने की कोशिश करता तो उस पत्‍थर से टकरा सकता था। लेकिन यह सिक्‍खड़ आदमी कैसे उस पत्‍थर से टकरा गया।
कुये कहता है कि हमारी चेतना का एक नियम है: लॉ ऑफ रिवर्स एफेक्ट, हम जिस चीज से बचना चाहते है, चेतना उसी पर केंद्रित हो जाती है। और परिणाम में हम उसी से टकरा जाते है। पाँच हजार साल से आदमी सेक्‍स से बचना चाह रहा है। और परिणाम इतना हुआ की गली कूचे हर जगह जहां भी आदमी जाता है वहीं सेक्‍स से टकरा जाता है। लॉ ऑफ रिवर्स एफेक्ट मनुष्‍य की आत्‍मा को पकड़े हुए है।
क्‍या कभी आपने वह सोचा है कि आप चित को जहां से बचाना चाहते है, चित वहीं आकर्षित हो जाता है। वहीं निमंत्रित हो जात है। जिन लोगो ने मनुष्‍य को सेक्‍स के विरोध में समझाया, उन लोगों ने ही मनुष्‍य को कामुक बनाने का जिम्‍मा भी अपने ऊपर ले लिया है।
मनुष्‍य की अति कामुकता गलत शिक्षाओं का परिणाम है।
और आज भी हम भयभीत होते है कि सेक्‍स की बात न की जाये। क्‍यों भयभीत होते है? भयभीत इसलिए होते है कि हमें डर है कि सेक्‍स के संबंध में बात करने से लोग और कामुक हो जायेंगे।
मैं आपको कहना चाहता हूं कि यह बिलकुल ही गलत भ्रम है। यह शत-प्रतिशत गलत है। पृथ्‍वी उसी दिन सेक्‍स से मुक्‍त होगी, जब हम सेक्‍स के संबंध में सामान्‍य, स्‍वास्‍थ बातचीत करने में समर्थ हो जायेंगे।
जब हम सेक्‍स को पूरी तरह से समझ सकेंगे, तो ही हम सेक्‍स का अतिक्रमण कर सकेंगे।
जगत में ब्रह्मचर्य का जन्‍म हो सकता है। मनुष्‍य सेक्‍स के ऊपर उठ सकता है। लेकिन सेक्‍स को समझकर, सेक्‍स को पूरी तरह पहचान कर, उस की ऊर्जा के पूरे अर्थ, मार्ग, व्‍यवस्‍था को जानकर, उसके मुक्‍त हो सकता है।
आंखे बंद कर लेने से कोई कभी मुक्‍त नहीं हो सकता। आंखें बंद कर लेने वाले सोचते हों कि आंखे बंद कर लेने से शत्रु समाप्‍त हो गया है। मरुस्थल में शुतुरमुर्ग भी ऐसा ही सोचता है। दुश्‍मन हमने करते है तो शुतुरमुर्ग रेत में सर छिपा कर खड़ा हो जाता है। और सोचता है कि जब दुश्‍मन मुझे दिखाई नहीं देता ताक मैं दुशमन को कैसे दिखाई दे नहीं सकता। लेकिन यह वर्क—शुतुरमुर्ग को हम क्षमा भी कर सकते है। आदमी को क्षमा नहीं किया जा सकता है।
सेक्‍स के संबंध में आदमी ने शुतुरमुर्ग का व्‍यवहार किया है। आज तक। वह सोचता है, आँख बंद कर लो सेक्‍स के प्रति तो सेक्‍स मिट गया। अगर आँख बंद कर लेने से चीजें मिटती तो बहुत आसान थी जिंदगी। बहुत आसान होती दुनिया। आँख बंद करने से कुछ मिटता नहीं है। बल्‍कि जिस चीज के संबंध में हम आँख बंद करते है। हम प्रमाण देते है कि हम उस से भयभीत है। हम डर गये है। वह हमसे ज्‍यादा मजबूत है। उससे हम जीत नहीं सकते है, इसलिए आँख बंद करते है। आँख बंद करना कमजोरी का लक्षण है।
और सेक्‍स के बाबत सारी मनुष्‍य जाति आँख बंद करके बैठ गयी है। न केवल आँख बंद करके बैठ गयी है, बल्‍कि उसने सब तरह की लड़ाई भी सेक्‍स से ली है। और उसके परिणाम, उसके दुष्‍परिणाम सारे जगत में ज्ञात है।
अगर सौ आदमी पागल होते है, तो उनमें से 98 आदमी सेक्‍स को दबाने की वजह से पागल होते है। अगर हजारों स्‍त्रियों हिस्‍टीरिया से परेशान है तो उसमें से सौ में से 99 स्‍त्रियों के पीछे हिस्‍टीरिया के मिरगी के बेहोशी के, सेक्‍स की मौजूदगी है। सेक्‍स का दमन मौजूद है।
अगर आदमी इतना बेचैन, अशांत इतना दुःखी और पीड़ित है तो इस पीडित होने के पीछे उसने जीवन की एक बड़ी शक्‍ति को बिना समझे उसकी तरफ पीठ खड़ी कर ली है। उसका कारण है। और परिणाम उलटे आते है।
अगर हम मनुष्‍य का साहित्‍य उठाकर कर देखें, अगर किसी देवलोक से कभी कोई देवता आये या चंद्रलोक से या मंगलग्रह से कभी कोई यात्री आये और हमारी किताबें पढ़े, हमारा साहित्‍य देखे, हमारी कविता पढ़, हमारे चित्र देखे तो बहुत हैरान हो जायेगा। वह हैरान हो जायेगा यह जानकर कि आदमी का सारा साहित्‍य सेक्‍स पर केंद्रित है? आदमी की हर कविताएं सेक्‍सुअल क्‍यों है? आदमियों की सारी कहानियां, सारे उपन्‍यास सेक्‍सुअल क्‍यों है। आदमी की हर किताब के उपर नंगी औरत की तस्वीर क्‍यों है? आदमी की हर फिल्‍म नंगे आदमी की फिल्‍म क्‍यों है। वह बहुत हैरान होगा। अगर कोई मंगल से आकर हमें इस हालत में देखेगा तो बहुत हैरान होगा। वह सोचगा, आदमी सेक्‍स के सिवाय क्‍या कुछ भी नहीं सोचता? और आदमी से अगर पूछेगा, बातचीत करेगा तो बहुत हैरान हो जायेगा।
आदमी बातचीत करेगा आत्‍मा की, परमात्‍मा की, स्‍वर्ग की, मोक्ष की, सेक्‍स की कभी कोई बात नहीं करेगा। और उसका सारा व्‍यक्‍तित्‍व चारों तरफ से सेक्‍स से भरा हुआ है। वह मंगलग्रह का वासी तो बहुत हैरान होगा। वह कहेगा, बात चीत कभी नहीं कि जाती जिस चीज की , उसको चारों तरफ से तृप्‍त करने की हजार-हजार पागल कोशिशें क्‍यों की जा रही है?
आदमी को हमने ‘’परवर्ट’’ किया है, विकृत किया है और अच्‍छे नामों के आधार पर विकृत किया है। ब्रह्मचर्य की बात हम करते है। लेकिन कभी इस बात की चेष्‍टा नहीं करते कि पहले मनुष्‍य की काम की ऊर्जा को समझा जाये, फिर उसे रूपान्‍तरित करने के प्रयोग भी किये जा सकते है। बिना उस ऊर्जा को समझे दमन की संयम की सारी शिक्षा, मनुष्‍य को पागल, विक्षिप्‍त और रूग्ण करेगी। इस संबंध में हमें कोई भी ध्‍यान नहीं है। यह मनुष्‍य इतना रूग्‍ण, इतना दीन-हीन कभी भी न था, इतना ‘पायजनस’ भी न था। इतना दुःखी भी न था।
मैं एक अस्‍पताल के पास से निकलता था। मैंने एक तख्‍ते पर अस्‍पताल के एक लिखी हुई सूचना पढ़ी। लिखा था तख्‍ती पर—‘’एक आदमी को बिच्‍छू ने काटा है, उसका इलाज किया गया है। वह एक दिन में ठीक होकर घर वापस चला गया। एक दूसरे आदमी को सांप ने काटा था। उसका तीन दिन में इलाज किया गया। और वह स्‍वास्‍थ हो कर घर वापिस चला गया। उस पर तीसरी सुचना थी कि एक और आदमी को पागल कुत्‍ते ने काट लिया था। उस का दस दिन में इलाज हो रहा है। वह काफी ठीक हो गया है और शीध्र ही उसके पूरी तरह ठीक हो जाने की उम्‍मीद है। और उस पर चौथी सूचना लिखी थी, कि एक आदमी को एक आदमी ने काट लिया था। उसे कई सप्‍ताह हो गये। वह बेहोश है, और उसके ठीक होने की कोई उम्‍मीद नहीं है।
मैं बहुत हैरान हुआ। आदमी का काटा हुआ इतना जहरीला हो सकता है।
लेकिन अगर हम आदमी की तरफ देखोगें तो दिखाई पड़ेगा—आदमी के भीतर बहुत जहर इकट्ठा हो गया है। और उस जहर के इकट्ठे हो जाने का पहला सुत्र यह है कि हमने आदमी के निसर्ग को, उसकी प्रकृति को स्‍वीकार नहीं किया है। उसकी प्रकृति को दबाने और जबरदस्‍ती तोड़ने की चेष्‍टा की है। मनुष्‍य के भीतर जो शक्‍ति है। उस शक्‍ति को रूपांतरित करने का, ऊंचा ले जाने का, आकाशगामी बनाने का हमने कोई प्रयास नहीं किया। उस शक्‍ति के ऊपर हम जबरदस्‍ती कब्‍जा करके बैठ गये है। वह शक्‍ति नीचे से ज्‍वालामुखी की तरह उबल रही है। और धक्‍के दे रही है। वह आदमी को किसी भी क्षण उलटा देने की चेष्‍टा कर रही है। और इसलिए जरा सा मौका मिल जाता है तो आपको पता है सबसे पहली बात क्‍या होती है।
अगर एक हवाई जहाज गिर पड़े तो आपको सबसे पहले उस हवाई जहाज में अगर पायलट हो ओर आप उसके पास जाएं—उसकी लाश के पास तो आपको पहला प्रश्‍न क्‍या उठेगा, मन में। क्‍या आपको ख्‍याल आयेगा—यह हिन्‍दू है या मुसलमान? नहीं। क्‍या आपको ख्‍याल आयेगा कि यह भारतीय है या कि चीनी? नहीं। आपको पहला ख्‍याल आयेगा—वह आदमी है या औरत? पहला प्रश्‍न आपके मन में उठेगा, वह स्‍त्री है या पुरूष? क्‍या आपको ख्‍याल है इस बात का कि वह प्रश्‍न क्‍यों सबसे पहले ख्‍याल में आता है? भीतर दबा हुआ सेक्‍स है। उस सेक्स के दमन की वजह से बाहर स्त्रीयां और पुरूष अतिशय उभर कर दिखायी पड़ती है।
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क्‍या आपने कभी सोचा है? आप किसी आदमी का नाम भूल सकते है, जाति भूल सकते है। चेहरा भूल सकते है? अगर मैं आप से मिलूं या मुझे आप मिलें तो मैं सब भूल सकता हूं—कि आपका नाम क्‍या था,आपका चेहरा क्‍या था, आपकी जाति क्‍या थी, उम्र क्‍या थी आप किस पद पर थे—सब भूल सकते है। लेकिन कभी आपको ख्‍याल आया कि आप यह भूल सके है कि जिस से आप मिले थे वह आदमी था या औरत? कभी आप भूल सकते है इस बात को कि जिससे आप मिले थे, वह पुरूष है या स्‍त्री? नहीं यह बात आप कभी नहीं भूल सके होगें। क्‍या लेकिन? जब सारी बातें भूल जाती है तो यह क्‍यों नहीं भूलता?
हमारे भीतर मन में कहीं सेक्‍स बहुत अतिशय हो बैठा है। वह चौबीस घंटे उबल रहा है। इसलिए सब बातें भूल जाती है। लेकिन यह बात नहीं भूलती है। हम सतत सचेष्‍ट है।
यह पृथ्‍वी तब तक स्‍वस्‍थ नहीं हो सकेगी, जब तक आदमी और स्‍त्रियों के बीच यह दीवार और यह फासला खड़ा हुआ है। यह पृथ्‍वी तब तक कभी भी शांत नहीं हो सकेगी,जब तक भीतर उबलती हुई आग है और उसके ऊपर हम जबरदस्‍ती बैठे हुए है। उस आग को रोज दबाना पड़ता है। उस आग को प्रतिक्षण दबाये रखना पड़ता है। वह आग हमको भी जला डालती है। सारा जीवन राख कर देती है। लेकिन फिर भी हम विचार करने को राज़ी नहीं होते। यह आग क्‍या थी?
और मैं आपसे कहता हूं अगर हम इस आग को समझ लें, तो यह आग दुश्‍मन नहीं दोस्‍त है। अगर हम इस आग को समझ लें तो यह हमें जलायेगी नहीं, हमारे घर को गर्म भी कर सकती है। सर्दियों में,और हमारी रोटियाँ भी सेक सकती है। और हमारी जिंदगी में सहयोगी और मित्र भी हो सकती है।
लाखों साल तक आकाश में बिजली चमकती थी। कभी किसी के ऊपर गिरती थी और जान ले लेती थी। कभी किसी ने सोचा भी नथा कि एक दिन घर के पंखा चलायेगी यह बिजली। कभी यह रोशनी करेगी अंधेरे में, यह किसी ने नहीं सोचा था। आज—आज वही बिजली हमारी साथी हो गयी है। क्‍यों?
बिजली की तरफ हम आँख मूंदकर खड़े हो जाते तो हम कभी बिजली के राज को न समझ पाते और न कभी उसका उपयोग कर पाते। वह हमारी दुश्‍मन ही बनी रहती। लेकिन नहीं, आदमी ने बिजली के प्रति दोस्‍ताना भाव बरता। उसने बिजली को समझने की कोशिश की, उसने प्रयास किया जानने के और धीरे-धीरे बिजली उसकी साथी हो गयी। आज बिना बिजली के क्षण भर जमीन पर रहना मुश्‍किल हो जाये।
मनुष्‍य के भीतर बिजली से भी अधिक ताकत है सेक्‍स की।
मनुष्‍य के भीतर अणु की शक्‍ति से भी बड़ी शक्‍ति है सेक्‍स की।
कभी आपने सोचा लेकिन, यह शक्‍ति क्‍या है और कैसे इसे रूपान्‍तरित करें? एक छोटे-से अणु में इतनी शक्‍ति है कि हिरोशिमा का पूरा का नगर जिस में एक लाख आदमी भस्‍म हो गये। लेकिन क्‍या आपने सोचा कि मनुष्‍य के काम की ऊर्जा का एक अणु एक नये व्‍यक्‍ति को जन्‍म देता है। उस व्‍यक्‍ति में गांधी पैदा हो सकता है, उस व्‍यक्‍ति में महावीर पैदा हो सकता है। उस व्‍यक्‍ति में बुद्ध पैदा हो सकता है, क्राइस्‍ट पैदा हो सकता है, उससे आइन्‍सटीन पैदा हो सकता है। और न्‍यूटन पैदा हो सकता है। एक छोटा सा अणु एक मनुष्‍य की काम ऊर्जा का, एक गांधी को छिपाये हुए है। गांधी जैसा विराट व्‍यक्‍ति पैदा हो सकता है।
लेकिन हम सेक्‍स को समझने को राज़ी नहीं है। लेकिन हम सेक्‍स की ऊर्जा के संबंध में बात करने की हिम्‍मत जुटाने को राज़ी नहीं है। कौन सा भय हमें पकड़े हुए है कि जिससे सारे जीवन का जन्‍म होता है। उस शक्‍ति को हम समझना नहीं चाहते?कौन सा डर है कौन सी घबराहट है?
मैंने पिछली बम्‍बई की सभा में इस संबंध में कुछ बातें कहीं थी। तो बड़ी घबराहट फैल गई। मुझे बहुत से पत्र पहुंचे कि आप इस तरह की बातें मत करें। इस तरह की बात ही मत करें। मैं बहुत हैरान हुआ कि इस तरह की बात क्‍यों न की जाये? अगर शक्‍ति है हमारे भीतर तो उसे जाना क्‍यों न जाये? क्‍यों ने पहचाना जाये? और बिना जाने पहचाने, बिना उसके नियम समझे,हम उस शक्‍ति को और ऊपर कैसे ले जा सकते है? पहचान से हम उसको जीत भी सकते है, बदल भी सकते है, लेकिन बिना पहचाने तो हम उसके हाथ में ही मरेंगे और सड़ेंगे, और कभी उससे मुक्‍त नहीं हो सकते।
जो लोग सेक्‍स क संबंध में बात करने की मनाही करते है, वे ही लोग पृथ्‍वी को सेक्‍स के गड्ढे में डाले हुए है। यह मैं आपसे कहना चाहता हूं, जो लोग घबराते है और जो समझते है कि धर्म का सेक्‍स से कोई संबंध नहीं, वह खुद तो पागल है ही, वे सारी पृथ्‍वी को पागल बनाने में सहयोग कर रहे है।
धर्म का संबंध मनुष्‍य की ऊर्जा के ‘’ट्रांसफॉर्मेशन’’ से है। धर्म का संबंध मनुष्‍य की शक्‍ति को रूपांतरित करने से है।
धर्म चाहता है कि मनुष्‍य के व्‍यक्‍तित्‍व में जो छिपा है, वह श्रेष्‍ठतम रूप से अभिव्‍यक्‍त हो जाये। धर्म चाहता है कि मनुष्‍य का जीवन निम्न से उच्‍च की एक यात्रा बने। पदार्थ से परमात्‍मा तक पहुंच जाये।
लेकिन यह चाह तभी पूरी हो सकती है…..हम जहां जाना चाहते है, उस स्‍थान को समझना उतना उपयोगी नहीं है। जितना उस स्‍थान को समझना उपयोगी है। क्‍योंकि यह यात्रा कहां से शुरू करनी है।
सेक्‍स है फैक्‍ट, सेक्‍स जो है वह तथ्‍य है मनुष्य के जीवन का। और परमात्‍मा अभी दूर है। सेक्‍स हमारे जीवन का तथ्‍य हे। इस तथ्‍य को समझ कर हम परमात्‍मा की यात्रा चल सकते है। लेकिन इसे बिना समझे एक इंच आगे नहीं जा सकते। कोल्‍हू के बेल कि तरह इसी के आप पास घूमते रहेंगे।
मैंने पिछली सभा में कहा था, कि मुझे ऐसा लगता है। हम जीवन की वास्‍तविकता को समझने की भी तैयारी नहीं दिखाते। तो फिर हम और क्‍या कर सकते है। और आगे क्‍या हो सकता है। फिर ईश्‍वर की परमात्‍मा की सारी बातें सान्‍त्‍वना ही, कोरी सान्‍त्‍वना की बातें है और झूठ है। क्‍योंकि जीवन के परम सत्‍य चाहे कितने ही नग्‍न क्‍यों न हो, उन्‍हें जानना ही पड़ेगा। समझना ही पड़ेगा।
तो पहली बात तो यह जान लेना जरूरी है कि मनुष्‍य का जन्‍म सेक्‍स में होता है। मनुष्‍य का सारा जीवन व्‍यक्‍तित्‍व सेक्‍स के अणुओं से बना हुआ है। मनुष्‍य का सारा प्राण सेक्‍स की उर्जा से भरा हुआ है। जीवन की उर्जा अर्थात काम की उर्जा। यह तो काम की ऊर्जा है, यह जा सेक्‍स की ऊर्जा है, यह क्‍या है? यह क्‍यों हमारे जीवन को इतने जोर से आंदोलित करती है? क्‍यों हमारे जीवन को इतना प्रभावित करती है? क्‍यों हम धूम-धूम कर सेक्‍स के आस-पास, उसके ईद-गिर्द ही चक्‍कर लगाते है। और समाप्‍त हो जाते है। कौन सा आकर्षण है इसका?
हजारों साल से ऋषि,मुनि इंकार कर रहे है, लेकिन आदमी प्रभावित नहीं हुआ मालूम पड़ता। हजारों साल से वे कह रहे है कि मुख मोड़ लो इससे। दूर हट जाओ इससे। सेक्‍स की कल्‍पना और काम वासना छोड़ दो। चित से निकाल डालों ये सारे सपने।
लेकिन आदमी के चित से यह सपने निकले ही नहीं। कभी निकल भी नहीं सकते है इस भांति। बल्‍कि मैं तो इतना हैरान हुआ हूं—इतना हैरान हुआ हूं। वेश्‍याओं से भी मिला हुं, लेकिन वेश्‍याओं ने मुझसे सेक्‍स की बात नहीं की। उन्‍होंने आत्‍म, परमात्‍मा के संबंध में पूछताछ की। और मैं साधु संन्यासियों से भी मिला हूं। वे जब भी अकेले में मिलते है तो सिवाये सेक्‍स के और किसी बात के संबंध में पूछताछ नहीं करते। मैं बहुत हैरान हुआ। मैं हैरान हुआ हूं इस बात को जानकर कि साधु-संन्‍यासियों को जो निरंतर इसके विरोध में बोल रहे है, वे खुद ही चितके तल पर वहीं ग्रसित है। वहीं परेशान है। तो जनता से आत्‍मा परमात्‍मा की बातें करते है, लेकिन भीतर उनके भी समस्‍या वही है।
होगी भी। स्‍वाभाविक है, क्‍योंकि हमने उस समस्‍या को समझने की भी चेष्‍टा नहीं की है। हमने उस ऊर्जा के नियम भी जानने नहीं चाहे है। हमने कभी यह भी नहीं पूछा कि मनुष्‍य का इतना आकर्षण क्‍यों है। कौन सिखाता है, सेक्‍स आपको।
सारी दूनिया तो सीखने के विरोध में सारे उपाय करती है। मॉं-बाप चेष्‍टा करते है कि बच्‍चे को पता न चल जाये। शिक्षक चेष्‍टा करता है। धर्म शास्‍त्र चेष्‍टा करते है कहीं स्‍कूल नहीं, कहीं कोई युनिवर्सिटी नहीं। लेकिन आदमी अचानक एक दिन पाता है कि सारे प्राण काम की आतुरता से भर गये है। यह कैसे हो जाता है। बिना सिखाये ये क्‍या होता है।
सत्‍य की शिक्षा दी जाती है। प्रेम की शिक्षा दी जाती है। उसका तो कोई पता नहीं चलता। सेक्‍स का आकर्षण इतना प्रबल है, इतना नैसर्गिक केंद्र क्‍या है, जरूर इसमें कोई रहस्‍य है और इसे समझना जरूरी है। तो शायद हम इससे मुक्‍त भी हो सकते है।
पहली बात तो यह है कि मनुष्‍य के प्राणों में जो सेक्‍स का आकर्षण है। वह वस्‍तुत: सेक्‍स का आकर्षण नहीं है। मनुष्‍य के प्राणों में जो काम वासना है, वह वस्‍तुत: काम की वासना नहीं है, इसलिए हर आदमी काम के कृत्‍य के बाद पछताता है। दुःखी होता है पीडित होता है। सोचता है कि इससे मुक्‍त हो जाऊँ। यह क्‍या है?
लेकिन आकर्षण शायद कोई दूसरा है। और वह आकर्षण बहुत रिलीजस, बहुत धार्मिक अर्थ रखता है। वह आकर्षण यह है…..कि मनुष्‍य के सामान्‍य जीवन में सिवाय सेक्‍स की अनुभूति के वह कभी भी अपने गहरे से गहरे प्राणों में नहीं उतर पाता है। और किसी क्षण में कभी गहरे नहीं उतरता है। दुकान करता है, धंधा करता है। यश कमाता है, पैसा कमाता है, लेकिन एक अनुभव काम का, संभोग का, उसे गहरे ले जाता है। और उसकी गहराई में दो घटनायें घटती है, एक संभोग के अनुभव में अहंकार विसर्जित हो जाता है। ‘’इगोलेसनेस’’ पैदा हो जाती है। एक क्षण के लिए अहंकार नहीं रह जाता, एक क्षण को यह याद भी नहीं रह जाता कि मैं हूं।
क्‍या आपको पता है, धर्म में श्रेष्‍ठतम अनुभव में ‘मैं’ बिलकुल मिट जाता है। अहंकार बिलकुल शून्‍य हो जाता है। सेक्‍स के अनुभव में क्षण भर को अहंकार मिटता है। लगता है कि हूं या नहीं। एक क्षण को विलीन हो जाता है मेरा पन का भाव।
दूसरी घटना घटती है। एक क्षण के लिए समय मट जाता है ‘’टाइमलेसनेस’’ पैदा हो जाती है। जीसस ने कहा है समाधि के संबंध में: ‘’देयर शैल बी टाईम नौ लांगर’’। समाधि का जो अनुभव है वहां समय नहीं रह जाता है। वह कालातीत है। समय बिलकुल विलीन हो जाता है। न कोई अतीत है, न कोई भविष्‍य—शुद्ध वर्तमान रह जाता है।
सेक्‍स के अनुभव में यह दूसरी घटना घटती है। न कोई अतीत रह जाता है , न कोई भविष्‍य। मिट जाता है, एक क्षण के लिए समय विलीन हो जाता है।
यह धर्म अनुभूति के लिए सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण तत्‍व है—इगोलेसनेस, टाइमलेसनेस।
दो तत्‍व है, जिसकी वजह से आदमी सेक्‍स की तरफ आतुर होता है और पागल होता है। वह आतुरता स्‍त्री के शरीर के लिए नहीं है पुरूष के शरीर के लिए स्‍त्री की है। वह आतुरता शरीर के लिए बिलकुल भी नहीं है। वह आतुरता किसी और ही बात के लिए है। वह आतुरता है—अहंकार शून्‍यता का अनुभव, समय शून्‍यता का अनुभव।
लेकिन समय-शून्‍य और अहंकार शून्‍य होने के लिए आतुरता क्‍यों है? क्‍योंकि जैसे ही अहंकार मिटता है, आत्‍मा की झलक उपलब्‍ध होती है। जैसे ही समय मिटता है, परमात्‍मा की झलक मिलनी शुरू हो जाती है।
एक क्षण की होती है यह घटना, लेकिन उस एक क्षण के लिए मनुष्‍य कितनी ही ऊर्जा, कितनी ही शक्‍ति खोने को तैयार है। शक्‍ति खोने के कारण पछतावा है बाद में कि शक्‍ति क्षीण हुई शक्‍ति का अपव्‍यय हुआ। और उसे पता हे कि शक्‍ति जितनी क्षीण होती है मौत उतनी करीब आती है।
कुछ पशुओं में तो एक ही संभोग के बाद नर की मृत्‍यु हो जाती है। कुछ कीड़े तो एक ही संभोग कर पाते है और संभोग करते ही समाप्‍त हो जाते है। अफ्रीका में एक मकड़ा होता है। वह एक ही संभोग कर पाता है और संभोग की हालत में ही मर जाता है। इतनी ऊर्जा क्षीण हो जाती है।
मनुष्‍य को यह अनुभव में आ गया बहुत पहले कि सेक्‍स का अनुभव शक्‍ति को क्षीण करता है। जीवन ऊर्जा कम होती है। और धीरे-धीरे मौत करीब आती है। पछतावा है आदमी के प्राणों में, पछताने के बाद फिर पाता है घड़ी भर बाद कि वही आतुरता है। निश्‍चित ही इस आतुरता में कुछ और अर्थ है, जो समझ लेना जरूरी है।
सेक्‍स की आतुरता में कोई ‘रिलीजस’ अनुभव है, कोई आत्‍मिक अनुभव हे। उस अनुभव को अगर हम देख पाये तो हम सेक्‍स के ऊपर उठ सकते है। अगर उस अनुभव को हम न देख पाये तो हम सेक्‍स में ही जियेंगे और मर जायेंगे। उस अनुभव को अगर हम देख पाये—अँधेरी रात है और अंधेरी रात में बिजली चमकती है। बिजली की चमक अगर हमें दिखाई पड़ जाये और बिजली को हम समझ लें तो अंधेरी रात को हम मिटा भी सकते है। लेकिन अगर हम यह समझ लें कि अंधेरी रात के कारण बिजली चमकती है तो फिर हम अंधेरी रात को और धना करने की कोशिश करेंगे, ताकि बिजली की चमक और गहरी हो।
मैं आपसे कहना चाहता हूं कि संभोग का इतना आकर्षण क्षणिक समाधि के लिए है। और संभोग से आप उस दिन मुक्त होंगे। जिस दिन आपको समाधि बिना संभोग के मिलना शुरू हो जायेगी। उसी दिन संभोग से आप मुक्‍त हो जायेंगे, सेक्‍स से मुक्‍त हो जायेंगे।
क्‍योंकि एक आदमी हजारा रूपये खोकर थोड़ा सा अनुभव पाता हो और कल हम उसे बता दें कि रूपये खोने की कोई जरूरत नहीं है, इस अनुभव की जो खदानें भरी पड़ी है। तुम चलो इस रास्‍ते से और उस अनुभव को पा लो। तो फिर वह हजार रूपये खोकर उस अनुभव को खरीदने बाजार में नहीं जायेगा।
सेक्‍स जिस अनुभूति को लाता है। अगर वह अनुभूति किन्‍हीं और मार्गों से उपलब्‍ध हो सके, तो आदमी को चित सेक्‍स की तरफ बढ़ना, अपने आप बंद हो जाता है। उसका चित एक नयी दिशा लेनी शुरू कर देता है।
इस लिए मैं कहता हूं कि जगत में समाधि का पहला अनुभव मनुष्‍य को सेक्स से ही उपलब्‍ध हुआ है।

संभोग से समाधि की और-1

मेरे प्रिय आत्‍मन,
प्रेम क्‍या है?
जीना और जानना तो आसान है, लेकिन कहना बहुत कठिन है। जैसे कोई मछली से पूछे कि सागर क्‍या है? तो मछली कह सकती है, यह है सागर, यह रहा चारों और , वही है। लेकिन कोई पूछे कि कहो क्‍या है, बताओ मत, तो बहुत कठिन हो जायेगा मछली को। आदमी के जीवन में जो भी श्रेष्‍ठ है, सुन्‍दर है, और सत्‍य है; उसे जिया जा सकता है, जाना जा सकता है। हुआ जा सकता है। लेकिन कहना बहुत कठिन बहुत मुश्‍किल है।/
और दुर्घटना और दुर्भाग्‍य यह है कि जिसमें जिया जाना चाहिए, जिसमें हुआ जाना चाहिए, उसके संबंध में मनुष्‍य जाति पाँच छह हजार साल से केवल बातें कर रही है। प्रेम की बात चल रही है, प्रेम के गीत गाये जा रहे है। प्रेम के भजन गाये जा रहे है। और प्रेम मनुष्‍य के जीवन में कोई स्‍थान नहीं है।
अगर आदमी के भीतर खोजने जायें तो प्रेम से ज्‍यादा असत्‍य शब्‍द दूसरा नहीं मिलेगा। और जिन लोगों ने प्रेम को असत्‍य सिद्ध कर दिया है और जिन्‍होंने प्रेम की समस्‍त धाराओं को अवरूद्ध कर दिया है…..ओर बड़ा दुर्भाग्‍य यह है कि लोग समझते है कि वे ही प्रेम के जन्‍मदाता है।
धर्म-प्रेम की बातें करता है, लेकिन आज तक जिस प्रकार का धर्म मनुष्‍य जाति के ऊपर दुर्भाग्‍य की भांति छाया हुआ है। उस धर्म ने मनुष्‍य के जीवन से प्रेम के सारे द्वार बंद कर दिये है। और न उस संबंध में पूरब और पश्‍चिम में फर्क है न हिन्‍दुस्‍तान और न अमरीका में कोई फर्क है।
मनुष्‍य के जीवन में प्रेम की धारा प्रकट ही पायी। और नहीं हो पायी तो हम दोष देते है कि मनुष्‍य ही बुरा है, इसलिए नहीं प्रकट हो पाया। हम दोष देते है कि यह मन ही जहर है, इसलिए प्रकट नहीं हो पायी। मन जहर नहीं है। और जो लोग मन को जहर कहते रहे है, उन्‍होंने ही प्रेम को जहरीला कर दिया,प्रेम को प्रकट नहीं होने दिया है।
मन जहर हो कैसे सकता है? इस जगत में कुछ भी जहर नहीं है। परमात्‍मा के इस सारे उपक्रम में कुछ भी विष नहीं है, सब अमृत है। लेकिन आदमी ने सारे अमृत को जहर कर लिया है और इस जहर करेने में शिक्षक, साधु, संत और तथाकथित धार्मिक लोगों का सबसे ज्‍यादा हाथ है।
इस बात को थोड़ा समझ लेना जरूरी है। क्‍योंकि अगर यह बात दिखाई न पड़े तो मनुष्‍य के जीवन में कभी भी प्रेम…भविष्‍य में भी नहीं हो सकेगा। क्‍योंकि जिन कारणों से प्रेम नहीं पैदा हो सका है, उन्‍ही कारणों को हम प्रेम प्रकट करने के आधार ओर कारण बना रहे है।
हालतें ऐसी है कि गलत सिद्धांतों को अगर हजार वर्षों तक दोहराया जाये तो फिर यह भूल ही जाते है कि सिद्धांत गलत है। और दिखाई पड़ने लगता है कि आदमी गलत है। क्‍योंकि वह उन सिद्धांतों को पूरा नहीं कर पा रहा है।
मैंने सुना है, एक सम्राट के महल के नीचे से एक पंखा बेचने वाला गुजरता था। और जोर से चिल्‍ला रहा था कि अनूठे और अद्भुत पंखे मैंने निर्मित किये है। ऐसे पंखे कभी नहीं बनाये गये। ये पंखे कभी देखे भी नहीं गये है। सम्राट ने खिड़की से झांक कर देखा कि कौन है। जो अनूठे पंखे ले आया है। सम्राट के पास सब तरह के पंखे थे—दुनिया के कोने-कोने में जो मिल सकते थे। और नीचे देखा, गलियारे में खड़ा हुआ एक आदमी है, साधारण दो-दो पैसे के पंखे होंगे और चिल्‍ला रहा है—अनूठे, अद्वितीय।
उस आदमी को ऊपर बुलाया गया और पूछा गया, इन पंखों में ऐसी क्‍या खूबी है? दाम क्‍या है इन पंखों के? उस पंखे वाले ने कहा कि महाराज, दाम ज्‍यादा नहीं है। पंखे को देखते हुए दाम कुछ भी नहीं है। सिर्फ सौ रूपये का पंखा है।
सम्राट ने कहा, सौ रूपये का, यह दो पैसे का पंखा, जो बजार में जगह-जगह मिलता है, और सौ रूपये दाम। क्‍या है इसकी खूबी?
उस आदमी ने कहां ये पंखा सौ वर्ष चलता है सौ वर्ष के लिए गारंटी है। सौ वर्ष से कम में खराब नहीं होता हे।
सम्राट ने कहा, इसको देख कर तो ऐसा नहीं लगता है, कि सप्‍ताह भी चल जाये पूरा तो मुश्‍किल है। धोखा देने की कोशिश कर रहे हो? सरासर बेईमानी और वह भी सम्राट के सामने।
उस आदमी ने कहा,आप मुझे भली भांति जानते है। इसी गलियारे में रोज पंखे बेचता हूं। सौ रूपये दाम है इसके और सौ वर्ष न चले तो जिम्‍मेदार मै हूं। रोज तो नीचे मौजूद होता हूं। फिर आप सम्राट है, आपको धोखा देकर जाऊँगा कहां?
वह पंखा खरीद लिया गया। सम्राट को विश्र्वास तो न था। लेकिन आश्‍चर्य भी था कि यह आदमी सरासर झूठ बोल रहा है, किस बल पर बोल रहा है। पंखा सौ रूपये में खरीद लिया गया और उससे कहा गया कि सातवें दिन तुम उपस्‍थित हो जाना।
दो चार दिन में पंखे की डंडी बहार निकल गई। सातवें दिन तो वह बिलकुल मुर्दा हो गया। लेकिन सम्राट ने सोचा शायद पंखे वाला आयेगा नहीं।
लेकिन ठीक सातवें दिन वह पंखे वाला हाजिर हो गया और उसने कहा: कहो महाराज, उन्‍होंने कहा: कहना नहीं है,यह पंखा पडा हुआ है टूटा हुआ। यह सात दिन में ही यह गति हो गयी। तुम कहते थे, सौ साल चलेगा। पागल हो या धोखेबाज? क्‍या हो?
उस आदमी ने कहा कि ‘मालूम होत है आपको पंखा झलना नहीं आता। पंखा तो सौ साल चलता ही। पंखा तो गारन्‍टीड है। आप पंखा झलते कैसे थे?
सम्राट ने कहा, और भी सुनो,अब मुझे यह भी सीखना पड़ेगा कि पंखा कैसे किया जाता है।
उस आदमी ने कहां की कृपा कर के बतलाईये की इस पंखे की ऐसी गति सात दिन में ऐसी कैसे बना दी आपने? किस भांति पंखा किया है?
सम्राट ने पंखा उठाकर करके दिखाया कि इस भांति मैंने पंखा किया है।
तो उस आदमी ने कहा कि समझ गया भूल। इस तरह नहीं किया जाता पंखा।
सम्राट ने कहा तो किस तरह किया जाता है। और क्‍या तरिका है पंखा झलने का?
उस आदमी ने कहां कि ‘पंखा पकड़ी ये सामने और सिर को हिलाइयें। पंखा सौ वर्ष चलेगा। आप समाप्‍त हो जायेंगे,लेकिन पंखा बचेगा। पंखा गलत नहीं है। आपके झलने का ढंग गलत है।
यह आदमी पैदा हुआ है—पाँच छह जार, दस हजार वर्ष की संस्‍कृति का यह आदमी फल है। लेकिन संस्कृति गलत नहीं है, यह आदमी गलत है। आदमी मरता जा रहा है रोज और संस्‍कृति की दुहाई चलती चली जाती है। कि महान संस्‍कृति महान धर्म, महान सब कुछ। और उसका यह फल है आदमी। और उसी संस्‍कृति से गुजरा है और परिणाम है उसका लेकिन नहीं आदमी गलत है और आदमी को बदलना चाहिए अपने को।
और कोई कहने की हिम्‍मत नहीं उठाता कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि दस हजार वर्षो में जो संस्‍कृति और धर्म आदमी को प्रेम से नहीं भर पाय, वह संस्‍कृति और धर्म गलत तो नहीं है। और अगर दस हजार वर्षों में आदमी प्रेम से नहीं भर पाया तो आगे कोई संभावना है, इस धर्म और इसी संस्‍कृति के आधार पर की आदमी कभी प्रेम से भा जाए?
दस हजार साल में जो नहीं हो पाय, वह आगे भी दस हजार वर्षों में होने वाला नहीं है। क्‍योंकि आदमी यही है, कल भी यही होगा आदमी हमेशा से यही है, और हमेशा यही होगा। और संस्‍कृति और धर्म जिनके हम नारे दिये चले जा रहे है, और संत और महात्‍मा जिनकी दुहाइयां दिये चले जा रहे है। सोचने के लिए भी तैयार नहीं है कि कहीं बुनियादी चिंतन की दिशा ही तो गलत नहीं है?
मैं कहना चाहता हूं कि वह गलत है। और गलत—सबूत है यह आदमी। और क्‍या सबूत होता है गलत का?
एक बीज को हम बोये और फल ज़हरीले और कड़वे हो तो क्‍या सिद्ध होता है? सिद्ध होता है कि वह बीज जहरीला और कड़वा रहा होगा। हालांकि बीज में पता लगाना मुश्‍किल है कि उससे जो फल पैदा होगें,वे कड़वे पैदा होंगे। बीज में कुछ खोजबीन नहीं की जा सकती। बीज को तोड़ो-फोड़ो कोई पता नहीं चल सकता है कि इससे जो फल पैदा होते होंगे। वे कड़वे होंगे। बीज को बोओ,सौ वर्ष लग जायेंगे—वृक्ष होगा, बड़ा होगा,आकाश में फैलेगा, तब फल आयेंगे और तब पता चलेगा कि वे कड़वे है।
दस हजार वर्ष में संस्‍कृति और धर्म के जो बीज बोये गये है, वह आदमी उसका फल है। और यह कड़वा है। और घृणा से भरा हुआ है। लेकिन उसी की दुहाई दिये चले जाते है हम और सोचते है उसमे प्रेम हो जायगा। मैं आपसे कहना चाहता हूं,उससे प्रेम नहीं हो सकता है। क्‍योंकि प्रेम के पैदा होने की जो बुनियादी संभावना है, धर्मों ने उसकी ही हत्‍या कर दी है। और उसमें जहर घोल दिया है।
मनुष्‍य से भी ज्‍यादा प्रेम पशु और पक्षियों और पौधों में दिखाई पड़ता है; जिनके पास न कोई संस्‍कृति है, न कोई धर्म है, संस्‍कृत और संस्‍कृति और सभ्‍य मनुष्‍यों की बजाय असभ्‍य और जंगल के आदमी में ज्‍यादा प्रेम दिखाई पड़ता है। जिसके पास न कोई विकसित धर्म है, न कोई सभ्‍यता है, न कोई संस्‍कृति है। जितना आदमी सभ्‍य, सुसंस्‍कृत और तथा कथित धर्मों के प्रभाव में मन्दिर ओर चर्च में पार्थना करने लगता है, उतना ही प्रेम से शून्‍य क्‍यों होता चला जाता है।
जरूर कुछ कारण है। और दो कारणों पर मैं विचार करना चाहता हूं। अगर वे ख्‍याल में आ जाएं तो प्रेम के अवरूद्ध स्‍त्रोत फूट सकते है। और प्रेम की गंगा बह सकती है। वह हर आदमी के भीतर है उसे कहीं से लाना नहीं है।
प्रेम कोई ऐसी बात नहीं है कि कहीं खोजने जाना है उसे। वह प्राणों की प्‍यास है प्रत्‍येक के भीतर, वह प्राणों की सुगंध है प्रत्‍येक के भीतर। लेकिन चारों तरफ परकोटा है उसके और वह प्रकट नहीं हो पाता। सब तरफ पत्‍थर की दीवाल है और वह झरने नहीं फूट पाते। तो प्रेम की खोज और प्रेम की साधना कोई पाजीटिव, कोई विधायक खोज और साधना नहीं है कि हम जायें और कही प्रेम सीख लें।
एक मूर्तिकार एक पत्‍थर को तोड़ रहा था। कोई देखने गया थ कि मूर्ति कैसे बनायी जाती है। उसने देखा कि मूर्ति तो बिलकुल नहीं बनायी जा रही है। सिर्फ छैनी और हथौड़े से पत्‍थर तोड़ा जा रहा था। उस आदमी ने पूछा ‘’यह क्‍या कर रहे हो, मूर्ति नहीं बनाओगे, मैं तो मूर्ति बनाते देखने के लिया आया था, आप तो केवल पत्‍थर तोड़ रहे है।‘’
और उस मूर्ति कार ने कहा कि मूर्ति तो पत्‍थर के भीतर छिपी है, उसे बनाने की जरूरत नहीं है, सिर्फ उसके ऊपर जो व्‍यर्थ पत्‍थर जुड़ा है उसे अलग कर देने की जरूरत है और मूर्ति प्रकट हो जायेगी। मूर्ति बनायी नही जाती है मूर्ति सिर्फ आविष्‍कृत होती है। डिस्क वर होती है। अनावृत होती है, उघाड़ी जाती है।
मनुष्‍य के भीतर प्रेम छिपा है, सिर्फ उघाड़ने की बात है। उसे पैदा करने का सवाल नहीं है। अनावृत करने की बात है। कुछ है, जो हमने ऊपर ओढा हुआ है। जो उसे प्रकट नहीं होने देता?
एक चिकित्‍सक से जाकर आप पूछे कि स्‍वास्‍थ क्‍या है? और दुनियां का कोई चिकित्‍सक नहीं बता सकता है कि स्‍वास्‍थ क्‍या है। बड़े आश्‍चर्य कि बात है। स्‍वास्‍थ पर ही तो सारा चिकित्‍सा शास्‍त्र खड़ा है। सारी मेडिकल साइंस खड़ी है। और कोई नहीं बात सकता है कि स्‍वास्‍थ क्‍या है। लेकिन चिकित्‍सक से पूछो कि स्‍वास्‍थ क्‍या है। तो वह कहेगा, बीमारियों के बाबत हम बात सकते है कि बीमारियां क्‍या है, उनके लक्षण हमें पता है। एक-एक बीमारी की अलग-अलग परिभाषा हमें पता है। स्‍वास्‍थ? स्‍वास्‍थ का हमें कोई भी पता नहीं है। इतना हम कहा सकते है कि जब कोई बीमारी नहीं होती है। वह स्‍वास्‍थ्‍य है। स्‍वास्‍थ्‍य तो मनुष्‍य के भीतर छिपा है। इसलिए मनुष्‍य की परिभाषा के बाहर है। बीमारी बहार से आती है। इसलिए बाहर से परिभाषा की जा सकती है। स्‍वास्‍थ्‍य भीतर से आता है। कोई भी परिभाषा नहीं की जा सकती है। इतना ही हम कह सकते है कि बीमारियों का अभाव स्‍वास्‍थ्‍य है। लेकिन यह क्‍या स्‍वास्‍थ्‍य कि परिभाषा हुई? स्‍वास्‍थ्‍य के संबंध में तो हमने कुछ भी नहीं कहा। कहा है बीमारियां नहीं है। तो बीमारियों के संबंध में कहा। सच यह है कि स्‍वास्‍थ्‍य पैदा नहीं करना होता हे। यह तो छिप जाता है बीमारियों में या हट जात है तो प्रकट हो जाता है। स्‍वास्‍थ्‍य हममें हे।
स्‍वास्‍थ्‍य हमारा स्‍वभाव है।
प्रेम हममें है, प्रेम हमारा स्‍वभाव है।
इसलिए यह बात गलत है कि मनुष्‍य को समझाया जाए कि तुम प्रेम पैदा करो। सोचना यह है कि प्रेम पैदा क्‍यों नहीं हो पा रहा है। क्‍या बाधा है, अड़चन क्‍या है, रूकावट कहां डाल दी गई है। अगर कोई भी रूकावट न हो तो प्रेम प्रगट होता ही, उसे सिखाने की और समझाने की कोई भी जरूरत नहीं है।
अगर मनुष्‍य के ऊपर गलत संस्‍कृति और गलत संस्‍कार की धाराएं और बाधाएं न हों, तो हर आदमी प्रेम को उपलब्‍ध होगा ही। यह अनिवार्यता है। प्रेम से कोई बच ही नहीं सकता। प्रेम स्‍वभाव है।
गंगा बहती है हिमालय से। बहेगी गंगा, उसके प्राण है। उसके पास जल है। वह बहेगी और सागर को खोज ही लेगी। न किसी पुलिस वाले से पूछेगी, न किसी पुरोहित से पूछेगी कि सागर कहां है। देखा किसी गंगा को चौरास्‍ते पर खड़े होकर पुलिस वाले से पूछते कि सागर कहां है? उसके प्राणों में ही छिपी है सागर की खोज। और ऊर्जा है तो पहाड़ तोड़गी, मैदान तोड़गी, और पहुंच जायेगी सागर तक। सागर कितना ही दूर हो, कितना ही छिपा हो, खोज ही लेगी। और कोई रास्‍ता नहीं है। कोई गाईड़ बुक नहीं है। कि जिससे पता लगा ले कि कहां से जान है। लेकिन पहुंच जाती है।
लेकिन बाँध बना दिये जाएं,चारों और परकोटे उठा दिये जाएं? प्रकृति की बाधाओं को तो तोड़कर गंगा सागर तक पहुंच जाती है। लेकिन आदमी की इंजीनियरिंग की बाधाएं खड़ी कर दी जाएं तो हो सकता है कि गंगा सागर तक न पहुंच पाए यह भेद समझ लेना जरूरी है।
प्रकृति की कोई भी बाधा असल में बाधा नहीं है, इसलिए गंगा सागर तक पहुंच जाती है। हिमालय को काटकर पहुंच जाती है। लेकिन अगर आदमी ईजाद करे,इंतजाम करे,तो गंगा को सागर तक नहीं भी पहुंचने दे सकता है।
प्रकृति को तो एक सहयोग है, प्रकृति तो एक हार्मनी हे। वहां जो बाधा भी दिखाई पड़ती है, वह भी शायद शक्‍ति को जगाने के लिए चुनौती है। वह जो विरोध भी दिखाई पड़ता है, वह भी शायद भीतर प्राणों में जो छिपा है, उसे प्रकट करने के लिए बुलावा है। वहां हम बीज को दबाते हैं जमीन में। दिखाई पड़ता है कि जमीन की एक पर्त बीज के ऊपर पड़ी है, बाधा दे रही है। अगर वह पर्त न हो ती तो बीज अंकुरित भी नहीं हो पाएगा। ऐसा दिखाई पड़ता है कि एक पर्त जमीन की बीज को नीचे दबा रही है। लेकिन वह पर्त दबा इसलिए रही है। ताकि बीज दबे, गले और टूट जाये और अंकुरित हो जाये। ऊपर से दिखायी पड़ता है कि वह जमीन बाधा दे रही है। लेकिन वह जमीन मित्र है और सहयोग कर रही है बीज को प्रकट करने में।
प्रकृति तो एक हार्मनी है, एक संगीत पूर्ण लयबद्धता है।

लेकिन आदमी ने जो-जो निसर्ग के ऊपर इंजीनियरिंग की है, जो-जो उसने अपने अपनी यांत्रिक धारणाओं को ठोकने की और बिठाने की कोशिश की है, उससे गंगाए रूक गयी है। जगह-जगह अवरूद्ध हो गयी है। और फिर आदमी को दोष दिया जा रहा है। किसी बीज को दोष देने की जरूरत नहीं है। अगर वह पौधा न बन पाया, तो हम कहेंगे कि जमीन नहीं मिली होगी ठीक से, पानी नहीं मिला होगा ठीक से। सूरज की रोशनी नहीं मिली होगी ठीक से।
लेकिन आदमी के जीवन में खिल न पाये फूल प्रेम का तो हम कहते है कि तुम हो जिम्‍मेदार। और कोई नहीं कहता कि भूमि नहीं मिली होगी, पानी नहीं मिला होगा ठीक से, सूरज की रोशनी नहीं मिली होगी ठीक से। इस लिए वह आदमी का पौधा अवरूद्ध हो गया, विकसित नहीं हो पाया, फूल तक नहीं पहुंच पाया।
मैं आपसे कहना चाहता हूं कि बुनियादी बाधाएं आदमी ने खड़ी की है। प्रेम की गंगा तो बह सकती है और परमात्‍मा के सागर तक पहुंच सकती है। आदमी बना इसलिए है कि वह बहे और प्रेम बढ़े और परमात्‍मा तक पहुंच जाये। लेकिन हमने कौन सी बाधाएं खड़ी कर ली?
पहली बात, आज तक मनुष्‍य की सारी संस्कृति यों ने सेक्‍स का, काम का, वासना का विरोध किया है। इस विरोध ने मनुष्‍य के भीतर प्रेम के जन्‍म की संभावना तोड़ दी, नष्‍ट कर दी। इस निषेध ने….क्‍योंकि सचाई यह है कि प्रेम की सारी यात्रा का प्राथमिक बिन्‍दु काम है, सेक्‍स है।
प्रेम की यात्रा का जन्‍म, गंगो त्री—जहां से गंगा पैदा होगी प्रेम की—वह सेक्‍स है, वह काम है।
और उसके सब दुश्‍मन है। सारी संस्‍कृतियां,और सारे धर्म, और सारे गुरु और सारे महात्‍मा–तो गंगो त्री पर ही चोट कर दी। वहां रोक दिया। पाप है काम, जहर है काम, अधम है काम। और हमने सोचा भी नहीं कि काम की ऊर्जा ही, सेक्‍स एनर्जी ही, अंतत: प्रेम में परिवर्तित होती है और रूपांतरित होती है।
प्रेम का जो विकास है, वह काम की शक्‍ति का ही ट्रांसफॉमेंशन है। वह उसी का रूपांतरण है।
एक कोयला पडा हो और आपको ख्‍याल भी नहीं आयेगा कि कोयला ही रूपांतरित होकर हीरा बन जाता है। हीरे और कोयले में बुनियादी रूप से कोई फर्क नहीं है। हीरे में भी वे ही तत्‍व है, जो कोयले में है। और कोयला ही हजारों साल की प्रक्रिया से गुजर कर हीरा बन जाता है। लेकिन कोयले की कोई कीमत नहीं है, उसे कोई घर में रखता भी है तो ऐसी जगह जहां कि दिखाई न पड़े। और हीरे को लोग छातियों पर लटकाकर घूमते है। जिससे की वह दिखाई पड़े। और हीरा और कोयला एक ही है, लेकिन कोई दिखाई नहीं पड़ता है कि इन दोनों के बीच अंतर-संबंध है, एक यात्रा है। कोयले की शक्‍ति ही हीरा बनती है। अगर आप कोयले के दुश्‍मन हो गये—जो कि हो जाना बिलकुल आसान है। क्‍योंकि कोयले में कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता है—तो हीरे के पैदा होने की संभावना भी समाप्‍त हो गयी, क्‍योंकि कोयला ही हीरा बन सकता है।
सेक्‍स की शक्‍ति ही, काम की शक्‍ति ही प्रेम बनती है।
लेकिन उसके विरोध में—सारे दुश्‍मन है उसके, अच्‍छे आदमी उसके दुश्‍मन है। और उसके विरोध में प्रेम के अंकुर भी नहीं फूटने दिये है। और जमीन से, प्रथम से, पहली सीढ़ी से नष्‍ट कर दिया भवन को। फिर वह हीरा नहीं पाता कोयला, क्‍योंकि उसके बनने के लिए जो स्‍वीकृति चाहिए,जो उसका विकास चाहिए जो उसको रूपांतरित करने की प्रक्रिया चाहिए, उसका सवाल ही नहीं उठता। जिसके हम दुश्‍मन हो गये, जिसके हम शत्रु हो गये, जिससे हमारी द्वंद्व की स्‍थिति बन गयी हो और जिससे हम निरंतर लड़ने लगे—अपनी ही शक्‍ति से आदमी को लड़ा दिया गया है। सेक्‍स की शक्‍ति से आदमी को लड़ा दिया गया है। और शिक्षाऐं दी जाती है कि द्वंद्व छोड़ना चाहिए, कानफ्लिक्‍ट्स छोड़नी चाहिए, लड़ना नहीं चाहिए। और सारी शिक्षाऐं बुनियाद में सिखा रही है कि लड़ों।
मन जहर है तो मन से लड़ों। जहर से तो लड़ना पड़ेगा। सेक्‍स पाप है तो उससे लड़ों। और ऊपर से कहा जा रहा है कि द्वंद्व छोड़ो। जिन शिक्षाओं के आधार पर मनुष्‍य द्वंद्व से भर रहा है। वे ही शिक्षाऐं दूसरी तरफ कह रही है कि द्वंद्व छोड़ो। एक तरफ आदमी को पागल बनाओ और दूसरी तरफ पागलख़ाने खोलों कि बीमारियों का इलाज यहां किया जाता है। एक बात समझ लेना जरूरी है इस संबंध।
मनुष्‍य कभी भी काम से मुक्‍त नहीं हो सकता। काम उसके जीवन का प्राथमिक बिन्‍दु है। उसी से जन्‍म होता है। परमात्‍मा ने काम की शक्‍ति को ही, सेक्‍स को ही सृष्‍टि का मूल बिंदू स्‍वीकार किया है। और परमात्‍मा जिसे पाप नहीं समझ रहा है, महात्‍मा उसे पाप बात रहे है। अगर परमात्‍मा उसे पाप समझता है तो परमात्‍मा से बड़ा पापी इस पृथ्‍वी पर, इस जगत में इस विश्‍व में कोई नहीं है।
फूल खिला हुआ दिखाई पड़ रहा है। कभी सोचा है कि फूल का खिल जाना भी सेक्‍सुअल ऐक्‍ट है, फूल का खिल जाना भी काम की एक घटना है, वासना की एक घटना है। फूल में है क्‍या—उसके खिल जाने में? उसके खिल जाने में कुछ भी नहीं है। वे बिंदु है पराग के, वीर्य के कण है जिन्‍हें तितलियों उड़ा कर दूसरे फूलों पर ले जाएंगी और नया जन्‍म देगी।
एक मोर नाच रहा है—और कवि गीत गा रहा है। और संत भी देख कर प्रसन्‍न हो रहा हे—लेकिन उन्‍हें ख्‍याल नहीं कि नृत्‍य एक सेक्‍सुअल ऐक्‍ट है। मोर पुकार रहा है अपनी प्रेयसी को या अपने प्रेमी को। वह नृत्‍य किसी को रिझाने के लिए है? पपीहा गीत गा रहा है, कोयल बोल रही है, एक आदमी जवान हो गया है, एक युवती सुन्‍दर होकर विकसित हो गयी है। ये सब की सब सेक्सुअल एनर्जी की अभिव्‍यंजना है। यह सब का सब काम का ही रूपांतरण है। यह सब का सब काम की ही अभिव्‍यक्‍त,काम की ही अभिव्‍यंजना है।
सारा जीवन, सारी अभिव्‍यक्‍ति सारी फ्लावरिगं काम की है।
और उस काम के खिलाफ संस्‍कृति और धर्म आदमी के मन में जहर डाल रहे है। उससे लड़ाने की कोशिश कर रहे है। मौलिक शक्‍ति से मनुष्‍य को उलझा दिया है। लड़ने के लिए, इसलिए मनुष्‍य दीन-हीन, प्रेम से रिक्‍त और खोटा और ना-कुछ हो गया है।
काम से लड़ना नहीं है, काम के साथ मैत्री स्‍थापित करनी है और काम की धारा को और ऊचाई यों तक ले जाना है।
किसी ऋषि ने किसी बधू को नव वर और वधू को आशीर्वाद देते हुए कहा था कि तेरे दस पुत्र पैदा हो और अंतत: तेरा पति ग्यारहवां पुत्र बन जाये।
वासना रूपांतरित हो तो पत्‍नी मां बन सकती है।
वासना रूपांतरित हो तो काम प्रेम बन सकता है।
लेकिन काम ही प्रेम बनता है, काम की ऊर्जा ही प्रेम की ऊर्जा में विकसित होती है।
लेकिन हमने मनुष्‍य को भर दिया है, काम के विरोध में। इसका परिणाम यह हुआ है कि प्रेम तो पैदा नहीं हो सका, क्‍योंकि वह तो आगे का विकास था, काम की स्‍वीकृति से आता है। प्रेम तो विकसित नहीं हुआ और काम के विरोध में खड़े होने के कारण मनुष्‍य का चित ज्‍यादा कामुक हो गया, और सेक्‍सुअल होता चला गया। हमारे सारे गीत हमारी सारी कविताएं हमारे चित्र, हमारी पेंटिंग, हमारे मंदिर, हमारी मूर्तियां सब घूम फिर कर सेक्‍स के आस पास केंद्रित हो गयी है। हमार मन ही सेक्‍स के आसपास केंद्रित हो गया है। इस जगत में कोई भी पशु मनुष्‍य की भांति सेक्‍सुअल नही है। मनुष्‍य चौबीस घंटे सेक्‍सुअल हो गया है। उठते-बैठते, सोते जागते,सेक्‍स ही सब कुछ हो गया है। उसके प्राण में एक घाव हो गया है—विरोध के कारण, दुश्‍मनी के कारण, शत्रुता के कारण। जो जीवन का मूल था, उससे मुक्‍त तो हुआ नहीं जा सकता था। लेकिन उससे लड़ने की चेष्‍टा में सारा जीवन रूग्‍ण जरूर हो सकता था, वह रूग्‍ण हो गया है।
और यह जो मनुष्‍य जाति इतनी कामुक दिखाई पड़ रही है, इसके पीछे तथाकथित धर्मों और संस्‍कृति का बुनियादी हाथ है। इसके पीछे बुरे लोगों का नहीं, सज्‍जनों और संतों का हाथ है। और जब तक मनुष्‍य जाति सज्‍जनों और संतों के अनाचार से मुक्‍त नहीं होगी तब तक प्रेम के विकास की कोई संभावना नहीं है।
मुझे एक घटना याद आती है। एक फकीर अपने घर से निकला था। किसी मित्र के पास मिलने जा रहा था। निकला है घोड़े पर चढ़ा हुआ है, अचानक उसके बचपन का एक दोस्‍त घर आकर सामने खड़ा हो गया है। उसने कहा कि दोस्‍त, तुम घर पर रुको, बरसों से प्रतीक्षा करता था कि तुम आओगे तो बैठेंगे और बात करेंगे। और दुर्भाग्‍य कि मुझे किसी मित्र से मिलने जाना है। मैं वचन दे चुका हूं। वो वहां मेरी राह ताकता होगा। मुझे वहां जाना ही होगा। घण्‍टे भर में जल्‍दी से जल्‍दी लोट कर आने की कोशिश करूंगा। तुम तब तक थोड़ा विश्राम कर लो।
उसके मित्र ने कहा मुझे तो चैन नहीं है, अच्‍छा होगा कि मैं तुम्‍हारे साथ ही चला चलू। लेकिन उसने कहा कि मेरे कपड़े गंदे हो गये है। रास्‍ते की धूल के कारण, अगर तुम्‍हारे पास कुछ अच्‍छे कपड़े हो तो दे दो मैं पहन लूं। और साथ हो जाऊँ।
निश्‍चित था उस फकीर के पास। किसी सम्राट ने उसे एक बहुमूल्‍य कोट, एक पगड़ी और एक धोती भेंट की थी। उसने संभाल कर रखी थी कि कभी जरूरत पड़ेगी तो पहनूंगा। वह जरूरत नहीं आयी। निकाल कर ले आया खुशी में।
मित्र ने जब पहन लिए तब उसे थोड़ी ईर्ष्‍या पैदा हुई। मित्र ने पहनी तो मित्र सम्राट मालूम होने लगा। बहुमूल्‍य कोट था, पगड़ी थी, धोती थी, शानदार जूते थे। और उसके सामने ही वह फकीर बिलकुल नौकर-चाकर दीन-हीन दिखाई पड़ने लगा। और उसने सोचा कि यह तो बड़ी मुशिकल हो गई, यह तो गलत हो गया। जिनके घर मैं जा रहा हूं,उन सब का ध्‍यान इसी पर जायेगा। मेरी तरह तो कोई देखेगा भी नहीं। अपने ही कपड़े….ओर आज अपने ही कपड़ों के कारण मैं दीन-हीन हो जाऊँगा। लेकिन बार-बार मन को समझाता कि मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए मैं तो एक फकीर हूं—आत्‍मा परमात्‍मा की बातें करने वाला। क्‍या रखा है कोट में,पगड़ी में,पगड़ी में छोड़ो। पहने रहने दो। कितना फर्क पड़ता है। लेकिन जितना समझाने की कोशिश की ,कोट-पगड़ी, में क्‍या रखा है—कोट,पगड़ी,कोट पगड़ी ही उसके मन में घूमने लगी।
मित्र दूसरी बात करने लगा। लेकिन वह भीतर तो….ऊपर कुछ और दूसरी बातें कर रहा है,लेकिन वहां उसका मन नहीं है। भीतर उसके बस कोट और पगड़ी। रास्‍ते पर जो भी आदमी देखता, उसको कोई नहीं देखता। मित्र की तरफ सबकी आंखें जाती। वह बड़ी मुश्‍किल में पड़ गया यह तो आज भूल कर ली—अपने हाथों से भूल कर ली।
जिनके घर जाना था, वहां पहुंचा। जाकर परिचय दिया कि मेरे मित्र है जमाल, बचपन के हम दोस्‍त हे, बहुत प्‍यारे आदमी है। और फिर अचानक अनजाने मुंह से निकल गया कि रह गये कपड़े मेरे है। क्‍योंकि मित्र भी, जिनके घर गये थे, वह भी उसके कपड़ों को देख रहा था। और भीतर उसके चल रहा था कोट-पगड़ी,मेरी कोट-पगड़ी। और उन्‍हीं की वजह से मैं परेशान हो रहा हूं। निकल गया मुंह से की रह गये कपड़े, कपड़े मेरे है।
मित्र भी हैरान हुआ। घर के लोग भी हैरान हुए कि यह क्‍या पागलपन की बात है। ख्‍याल उसको भी आया बोल जाने के बाद। तब पछताया कि ये तो भूल हो गई। पछताया तो और दबाया अपने मन को। बाहर निकल कर क्षमा मांगने लगा कि क्षमा कर दो, गलती हो गयी। मित्र ने कहा, कि मैं तो हैरान हुआ कि तुमसे निकल कैसे गया। उसने कहा कुछ नहीं, सिर्फ जूबान थी चुक गई। हालांकि की जबान की चूक कभी भी नहीं होती। भीतर कुछ चलता होता है, तो कभी-कभी बेमौके जबान से निकल जाता है। चुक कभी नहीं होती है, माफ कर दो, भूल हो गई। कैसे यह क्‍या ख्‍याल आ गया, कुछ समझ में नहीं आता है। हालांकि पूरी तरह समझ में आ रहा था ख्‍याल कैसे आया है।
दूसरे मित्र के घर गये। अब वह तय करता है रास्‍ते में कि अब चाहे कुछ भी हो जाये, यह नहीं कहना है कि कपड़े मेरे है। पक्‍का कर लेता है अपने मन को। घर के द्वार पर उसने जाकर बिल्‍कुल दृढ़ संकल्‍प कर लिया कि यह बात नहीं उठानी है कि कपड़े मेरे है। लेकिन उस पागल को पता नहीं कि वह जितना ही दृढ़ संकल्‍प कर रहा है इस बात का, वह दृढ़ संकल्‍प बता रहा है, इस बात को कि उतने ही जोर से उसके भीतर यह भावना घर कर रही है कि ये कपड़े मेरे है।
आखिर दृढ़ संकल्‍प किया क्‍यों जाता है?
एक आदमी कहता है कि मैं ब्रह्मचर्य का दृढ़ व्रत लेता हूं, उसका मतलब है कि उसके भीतर कामुकता दृढता से धक्‍के मार रही है। नहीं तो और कारण क्‍या है? एक आदमी कहता है कि मैं कसम खाता हूं कि आज से कम खाना खाऊंगा। उसका मतलब है कि कसम खानी पड़ रही है। ज्‍यादा खानें का मन है उसका। और तब अनिवार्य रूपेण द्वंद्व पैदा होता है। जिससे हम लड़ना चाहते है, वहीं हमारी कमजोरी है। और तब द्वंद्व पैदा हो जाना स्‍वाभाविक है।
वह लड़ता हुआ दरवाजे के भीतर गया, संभल-संभल कर बोला कि मेरे मित्र है। लेकिन जब वह बोल रहा है, तब उसको कोई भी नहीं देख रहा है। उसके मित्र को उस धर के लोग देख रहे है। तब फिर उसे ख्‍याल आया—मेरा कोट, मेरी पगड़ी। उसने कहा कि दृढ़ता से कसम खायी है। इसकी बात ही नहीं उठानी है। मेरा क्‍या है—कपड़ा-लत्‍ता। कपड़े लत्‍ते किसी के होत है। यह तो सब संसार है, सब तो माया है। लेकिन यह सब समझ रहा है। लेकिन असलियत तो बाहर से भीतर,भीतर से बाहर हो रही है। समझाया कि मेरे मित्र है, बचपन के दोस्‍त है, बहुत प्‍यारे आदमी है। रह गये कपड़े उन्‍ही के है, मेरे नहीं है। पर घर के लोगो को ख्‍याल आया कि ये क्‍या–-‘’कपड़े उन्‍हीं के है, मेरे नहीं है’’ —आज तक ऐसा परिचय कभी देखा नही गया था।
बाहर निकल कर माफ़ी मांगने लगा कि बड़ी भूल हुई जो रही है, मैं क्‍या करूं, क्‍या न करूं, यह क्‍या हो गया है मुझे। आज तक मेरी जिंदगी में कपड़ों ने इस तरह से मुझे पकड़ लिया है। पहले तो ऐसे कभी नहीं पकड़ा था। लेकिन अगर तरकीब उपयोग में करें तो कपड़े भी पकड़ सकते है। मित्र ने कहा, मैं जाता नहीं तुम्‍हारे साथ। पर वह हाथ जोड़ने लगा कि नहीं ऐसा मत करो। जीवन भर के लिए दुःख रह जायेगा की मैंने क्‍या दुर्व्‍यवहार किया। अब मैं कसम खाता हूं की कपड़े की बात ही नहीं उठाऊंगा। मैं बिलकुल भगवान की कसम खाता हूं। कपड़ों की बात ही नहीं उठानी।
आकर कसम खाने वालों से हमेशा सावधान रहना जरूरी है, क्‍योंकि जो भी कसम खाता है, उसके भीतर उस कसम से भी मजबूत कोई बैठा है। जिसके खिलाफ वह कसम खा रहा है। और वह जो भीतर बैठा है, वह ज्‍यादा भीतर है। कसम ऊपर है और बाहर है। कसम चेतन मन से खायी गयी है। ओ जो भीतर बैठा है हव अचेतन की परतों तक समाया हुआ है। अगर मन के दस हिस्‍से कर दें तो कसम एक हिस्‍से ने खाई है। नौ हिस्‍सा उलटा भीतर खड़ा हुआ है। ब्रह्मचर्य की कसमें एक हिस्‍सा खा रहा है मन का और नौ हिस्‍सा परमात्‍मा की दुहाई दे रहा है। वह जो परमात्‍मा ने बनाया है, वह उसके लिए ही कहे चले जा रहा है।
गये तीसरे मित्र के घर। अब उसने बिलकुल ही अपनी सांसों तक का संयम कर रखा है।
संयम आदमी बड़े खतरनाक होते है। क्‍योंकि उनके भीतर ज्‍वालामुखी उबल रहा है, ऊपर से वह संयम साधे हुए है।
और इस बात को स्‍मरण रखना कि जिस चीज को साधना पड़ता है—साधने में इतना श्रम लग जाता है कि साधना पूरे वक्‍त हो नहीं सकती। फिर शिथिल होना पड़ेगा, विश्राम करना पड़ेगा। अगर मैं जोर से मुट्ठी बाँध लूं तो कितनी देर बाँधे रह सकता हूं। चौबीस घंटे, जितनी जोर से बाधूंगा उतना ही जल्‍दी थक जाऊँगा और मुट्ठी खुल जायेगी। जिस चीज में भी श्रम करना पड़ता है जितना ज्‍यादा श्रम करना पड़ता है उतनी जल्‍दी थकान आ जाती है। शक्‍ति खत्‍म हो जाती है। और उल्‍टा होना शुरू हो जाता है। मुट्ठी बांधी जितनी जोर से , उतनी ही जल्‍दी मुट्ठी खुल जायेगी। मुट्ठी खुली रखी जा सकती है। लेकिन बाँध कर नहीं रखी जा सकती है। जिस काम में श्रम पड़ता है उस काम को आप जीवन नहीं बना सकते। कभी सहज नहीं हो सकता है वह काम। श्रम पड़ेगा तो फिर विश्राम का वक्‍त आयेगा ही।
इसलिए जितना सधा संत है उतना ही खतरनाक आदमी होता है। क्‍योंकि उसके विश्राम का वक्‍त आयेगा। चौबीस घंटे भी तो उसे शिथिल होना ही पड़ेगा। उसी बीच दुनिया भी के पाप उसके भीतर खड़े हो जायेंगे। नर्क सामने आ जायेगा।
तो उसने बिलकुल ही अपने को सांस-सांस रोक लिया और कहा कि अब कसम खाता हूं इन कपड़ों की बात ही नहीं करनी।
लेकिन आप सोच लें उसकी हालत, अगर आप थोड़े बहुत भी धार्मिक आदमी होंगे, तो आपको अपने अनुभव से भी पता चल सकता है। उसकी क्‍या हालत हुई होगी। अगर आपने कसम खायी हो, व्रत लिए हों संकल्‍प साधे हों तो आपको भली भांति पता होगा कि भीतर क्‍या हालत हो जाती है।
भीतर गया। उसके माथे से पसीना चूँ रहा था। इतना श्रम पड़ रहा है। मित्र डरा हुआ है उसके पसीने को देखकर। उसकी सब नसें खिंची हुई है। वह बाल रहा है एक-एक शब्‍द कि मेरे मित्र है, बड़े पुराने दोस्‍त है। बहुत अच्‍छे आदमी है। और एक क्षण को वह रुका। जैसे भीतर से कोई जोर का धक्‍का आया हो और सब बह गया। बाढ़ आ गयी हो और सब बह गया हो। और उसने कहा कि रह गयी कपड़ों की बात, तो मैंने कसम खा ली है कि कपड़ों की बात ही नहीं करनी है।
तो यह जो आदमी के साथ हुआ है वह पूरी मनुष्‍य जाति के साथ सेक्‍स के संबंध में हो गया है। सेक्‍स को औब्सैशन बना दिया है। सेक्‍स को रोग बना दिया है, धाव बना दिया है और सब विषाक्‍त कर दिया है।
छोटे-छोटे बच्‍चों को समझाया जा रहा है कि सेक्‍स पाप है। लड़कियों को समझाया जा रहा है, लड़कों को समझाया जो रहा के सेक्‍स पाप है। फिर वह लड़की जवान होती है। इसकी शादी होती है, सेक्‍स की दुनिया शुरू होती है। और इन दोनों के भीतर यह भाव है कि यह पाप है। और फिर कहा जायेगा स्‍त्री को कि पति को परमात्‍मा मानों। जो पाप में ले जा रहा है। उसे परमात्‍मा कैसे माना जा सकता है। यह कैसे संभव है कि जो पाप में घसीट रहा है वह परमात्‍मा है। और उस लड़के से कहा जायेगा उस युवक को कहा जायेगा कि तेरी पत्‍नी है, तेरी साथिन है, तेरी संगिनी है। लेकिन वह नर्क में ले जा रही है। शास्‍त्रों में लिखा है कि स्‍त्री नर्क का द्वार है। यह नर्क का द्वार संगी और साथिनी, यह मेरा आधा अंग—यह नर्क का द्वार। मुझे उसे में धकेल रहा है। मेरा आधा अंग। इस के साथ कौन सा सामंजस्‍य बन सकता है।
सारी दुनिया का दाम्‍पत्‍य जीवन नष्‍ट किया है इस शिक्षा ने। और जब दम्‍पति का जीवन नष्‍ट हो जाये तो प्रेम की कोई संभावना नहीं है। क्‍योंकि वह पति और पत्‍नी प्रेम न करें सकें एक दूसरे को जो कि अत्‍यन्‍त सहज और नैसर्गिक प्रेम है। तो फिर कौन और किसको प्रेम कर सकेगा। इस प्रेम को बढ़ाया जा सकता है। कि पत्‍नी और पति का प्रेम इतना विकसित हो, इतना उदित हो इतना ऊंचा बने कि धीरे-धीरे बाँध तोड़ दे और दूसरों तक फैल जाये। यह हो सकता है। लेकिन इसको समाप्‍त ही कर दिया जाये,तोड़ ही दिया जाये, विषाक्‍त कर दिया जाये तो फैलेगा क्‍या, बढ़ेगा क्‍या?

रामानुज एक गांव से गुजर रहे थे। एक आदमी ने आकर कहा कि मुझे परमात्‍मा को पाना है। तो उन्‍होंने कहां कि तूने कभी किसी से प्रेम किया है? उस आदमी ने कहा की इस झंझट में कभी पडा ही नहीं। प्रेम वगैरह की झंझट में नहीं पडा। मुझे तो परमात्‍मा का खोजना है।
रामानुज ने कहा: तूने झंझट ही नहीं की प्रेम की? उसने कहा, मैं बिलकुल सच कहता हूं आपसे।
वह बेचारा ठीक ही कहा रहा था। क्‍योंकि धर्म की दुनिया में प्रेम एक डिस्‍कवालिफिकेशन है। एक अयोग्‍यता है।
तो उसने सोचा की मैं कहूं कि किसी को प्रेम किया था, तो शायद वे कहेंगे कि अभी प्रेम-व्रेम छोड़, वह राग-वाग छोड़,पहले इन सबको छोड़ कर आ, तब इधर आना। तो उस बेचारे ने किया भी हो तो वह कहता गया कि मैंने नहीं किया है। ऐसा कौन आदमी होगा,जिसने थोड़ा बहुत प्रेम नहीं किया हो?
रामानुज ने तीसरी बार पूछा कि तू कुछ तो बता, थोड़ा बहुत भी, कभी किसी को? उसने कहा, माफ करिए आप क्‍यों बार-बार वही बातें पूछे चले जा रहे है? मैंने प्रेम की तरफ आँख उठा कर नहीं देखा। मुझे तो परमात्‍मा को खोजना है।
तो रामानुज ने कहा: मुझे क्षमा कर, तू कहीं और खोज। क्‍योंकि मेरा अनुभव यह है कि अगर तूने किसी को प्रेम किया हो तो उस प्रेम को फिर इतना बड़ा जरूर किया जा सकता है कि वह परमात्‍मा तक पहुंच जाए। लेकिन अगर तूने प्रेम ही नहीं किया है तो तेरे पास कुछ है नहीं जिसको बड़ा किया जा सके। बीज ही नहीं है तेरे पास जो वृक्ष बन सके। तो तू जा कहीं और पूछ।
और जब पति और पत्‍नी में प्रेम न हो, जिस पत्‍नी ने अपने पति को प्रेम न किया हो और जिस पति ने अपनी पत्‍नी को प्रेम न किया हो, वे बेटों को, बच्‍चों को प्रेम कर सकते है। तो आप गलत सोच रहे है। पत्‍नी उसी मात्रा में बेटे को प्रेम करेगी, जिस मात्रा में उसने अपने पति को प्रेम किया है। क्‍योंकि यह बेटा पति का फल है: उसका ही प्रति फलन है, उसका ही रीफ्लैक्शन है। यह एक बेटे के प्रति जो प्रेम होने वाला है, वह उतना ही होगा,जितना उसके पति को चहा और प्रेम किया है। यह पति की मूर्ति है, जो फिर से नई होकर वापस लौट आयी है। अगर पति के प्रति प्रेम नहीं है, तो बेटे के प्रति प्रेम सच्‍चा कभी भी नहीं हो सकता है। और अगर बेटे को प्रेम नहीं किया गया—पालन पोसना और बड़ा कर देना प्रेम नहीं है—तो बेटा मां को कैसे कर सकता है। बाप को कैसे कर सकता है।
यह जो यूनिट है जीवन का—परिवा, वह विषाक्‍त हो गया है। सेक्‍स को दूषित कहने से, कण्‍डेम करने से, निन्‍दित करने से।
और परिवार ही फैल कर पुरा जगत है विश्‍व है।
और फिर हम कहते है कि प्रेम बिलकुल दिखाई नहीं पड़ता है। प्रेम कैसे दिखाई पड़ेगा? हालांकि हर आदमी कहता है कि मैं प्रेम करता हूं। मां कहती है, पत्‍नी कहती है, बाप कहता है, भाई कहता है। बहन कहती है। मित्र कहते है। कि हम प्रेम करते है। सारी दुनिया में हर आदमी कहता है कि हम प्रेम करते है। दुनिया में इकट्ठा देखो तो प्रेम कहीं दिखाई ही नहीं पड़ता। इतने लोग अगर प्रेम करते है। तो दुनिया में प्रेम की वर्षा हो जानी चाहिए, प्रेम की बाढ़ आ जानी चाहिए, प्रेम के फूल खिल जाने चाहिए थे। प्रेम के दिये ही दिये जल जाते। घर-घर प्रेम का दीया होता तो दूनिया में इकट्ठी इतनी प्रेम की रोशनी होती की मार्ग आनंद उत्‍सव से भरे होते।
लेकिन वहां तो घृणा की रोशनी दिखाई पड़ती है। क्रोध की रोशनी दिखाई पड़ती है। युद्धों की रोशनी दिखाई पड़ती है। प्रेम का तो कोई पता नहीं चलता। झूठी है यह बात और यह झूठ जब तक हम मानते चले जायेंगे,जब तक सत्‍य की दिशा में खोज भी नहीं हो सकती। कोई किसी को प्रेम नहीं कर रहा।
और जब तक काम के निसर्ग को परिपूर्ण आत्‍मा से स्‍वीकृति नहीं मिल जाती है, तब तक कोई किसी को प्रेम कर ही नहीं सकता। मैं आपसे कहाना चाहता हूं कि काम दिव्‍य है, डिवाइन है।
सेक्‍स की शक्‍ति परमात्‍मा की शक्‍ति है, ईश्‍वर की शक्‍ति है।
और इसलिए तो उससे ऊर्जा पैदा होती है। और नये जीवन विकसित होते है। वही तो सबसे रहस्‍यपूर्ण शक्‍ति है, वहीं तो सबसे ज्‍यादा मिस्‍टीरियस फोर्स है। उससे दुश्‍मनी छोड़ दें। अगर आप चाहते है कि कभी आपके जीवन में प्रेम की वर्षा हो जाये तो उससे दुश्‍मनी छोड़ दे। उसे आनंद से स्‍वीकार करें। उसकी पवित्रता को स्‍वीकार करें, उसकी धन्‍यता को स्‍वीकार करें। और खोजें उसमें और गहरे और गहरे—तो आप हैरान हो जायेंगे। जितनी पवित्रता से काम की स्‍वीकृति होगी, उतना ही काम पवित्र होता हुआ चला जायेगा। और जितना अपवित्रता और पाप की दृष्‍टि से काम का विरोध होगा, काम उतना ही पाप-पूर्ण और कुरूप होता चला जायेगा।
जब कोई अपनी पत्‍नी के पास ऐसे जाये जैसे कोई मंदिर के पास जा रहा है। जब कोई पत्‍नी अपने पति के पास ऐसे जाये जैसे सच में कोई परमात्‍मा के पास जा रहा हो। क्‍योंकि जब दो प्रेमी काम से निकट आते है जब वे संभोग से गुजरते है तब सच में ही वे परमात्‍मा के मंदिर के निकट से गुजर रह है। वहीं परमात्‍मा काम कर रहा है, उनकी उस निकटता में। वही परमात्‍मा की सृजन-शक्‍ति काम कर रही है।
और मेरी अपनी दृष्‍टि यह है कि मनुष्‍य को समाधि का, ध्‍यान का जो पहला अनुभव मिला है कभी भी इतिहास में,तो वह संभोग के क्षण में मिला है और कभी नहीं। संभोग के क्षण में ही पहली बार यह स्‍मरण आया है आदमी को कि इतने आनंद की वर्षा हो सकती है।
और जिन्‍होंने सोचा, जिन्‍होंने मेडिटेट किया, जिन लोगों ने काम के संबंध पर और मैथुन पर चिंतन किया और ध्‍यान किया, उन्‍हें यह दिखाई पडा कि काम के क्षण में, मैथुन के क्षण में मन विचारों से शून्‍य हो जाता है। एक क्षण को मन के सारे विचार रूक जाते है। और वह विचारों का रूक जाना और वह मन का ठहर जाना ही आनंद की वर्षा का कारण होता है।
तब उन्‍हें सीक्रेट मिल गया, राज मिल गया कि अगर मन को विचारों से मुक्‍त किया जा सके किसी और विधि से तो भी इतना ही आनंद मिल सकता है। और तब समाधि और योग की सारी व्‍यवस्‍थाएं विकसित हुई। जिनमें ध्‍यान और सामायिक और मेडिटेशन और प्रेयर (प्रार्थना) इनकी सारी व्‍यवस्‍थाएं विकसित हुई। इन सबके मूल में संभोग का अनुभव है। और फिर मनुष्‍य को अनुभव हुआ कि बिना संभोग में जाये भी चित शून्‍य हो सकता है। और जा रस की अनुभूति संभोग में हुई थी। वह बिना संभोग के भी बरस सकती है। फिर संभोग क्षणिक हो सकता है। क्‍योंकि शक्‍ति और उर्जा का वहाँ बहाव और निकास है। लेकिन ध्‍यान सतत हो सकता है।
तो मैं आपसे कहना चाहता हूं, कि एक युगल संभोग के क्षण में जिस आनंद को अनुभव करता है, उस आनंद को एक योगी चौबीस घंटे अनुभव कर सकता है। लेकिन इन दोनों आनंद में बुनियादी विरोध नहीं है। और इसलिए जिन्‍होंने कहा कि विषया नंद और ब्रह्मानंद भाई-भाई है। उन्‍होंने जरूर सत्‍य कहा है। वह सहोदर है, एक ही उदर से पैदा हुए है, एक ही अनुभव से विकसित हुए है। उन्‍होंने निश्‍चित ही सत्‍य कहां है।
तो पहला सूत्र आपसे कहना चाहता हूं। अगर चाहते है कि पता चले कि प्रेम क्‍या है—तो पहला सूत्र है काम की पवित्रता, दिव्‍यता, उसकी ईश्वरीय अनुभूति की स्‍वीकृति होगी। उतने ही आप काम से मुक्त होते चले जायेगे। जितना अस्‍वीकार होता है, उतना ही हम बँधते है। जैसा वह फकीर कपड़ों से बंध गया था।
जितना स्‍वीकार होता है उतने हम मुक्‍त होते है।
अगर परिपूर्ण स्‍वीकार है, टोटल एक्‍सेप्‍टेबिलिटी है जीवन की, जो निसर्ग है उसकी तो आप पाएंगे…..वह परिपूर्ण स्‍वीकृति को मैं आस्‍तिकता व्‍यक्‍ति को मुक्‍त करती है।
नास्‍तिक मैं उनको कहता हूं, जो जीवन के निसर्ग को अस्‍वीकार करते है, निषेध करते है। यह बुरा है, पाप है, यह विष है, यह छोड़ो , वह छोड़ो। जो छोड़ने की बातें कर रहे है, वह ही नास्‍तिक है।
जीवन जैसा है, उसे स्‍वीकार करो और जीओं उसकी परिपूर्णता में। वही परिपूर्णता रोज-रोज सीढ़ियां ऊपर उठती जाती है। वही स्‍वीकृति मनुष्‍य को ऊपर ले जाती है। और एक दिन उसके दर्शन होते है,जिसका काम में पता भी नहीं चलता था। काम अगर कोयला था तो एक दिन हीरा भी प्रकट होता है प्रेम का। तो पहला सूत्र यह है।
दूसरा सूत्र आपसे कहना चाहता हूं, और वह दूसरा सूत्र संस्‍कृति ने, आज तक की सभ्‍यता ने और धर्मों ने हमारे भीतर मजबूत किया है। दूसरा सूत्र भी स्‍मरणीय है, क्‍योंकि पहला सूत्र तो काम की ऊर्जा को प्रेम बना देगा। और दूसरा सूत्र द्वार की तरह रोके हुए है उस ऊर्जा को बहने से—वह बह नहीं पायेगी।

इस्लामी शरीअत में समलैंगिकता

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खाने और कपड़े की तरह काम वासना भी मनुष्य की मौलिक आवश्यकता है, जिसकी पूर्ति मनुष्य की स्वाभाविक मांग है । ईश्वर ने मनुष्य के लिए जो जीवन व्यवस्था निर्धारित की है उसमें उसकी इस स्वाभाविक मांग की पूर्ति की भी विशेष व्यवस्था की है । ईश्वर ने अपनी अन्तिम पुस्तक में मनुष्य को कई स्थानों पर निकाह करने के आदेश दिये हैं । ईश्वरीय मार्गदर्शन को मनुष्यों तक पहुंचाने वाले अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने भी निकाह को अपना तरीक़ा बताया है और कहा है कि जो ऐसा नहीं करता है वह हम में से नहीं । इतना ही नहीं ईश्वरीय जीवन व्यवस्था में इसका भी ध्यान रखा गया है कि कुछ लोगों की कामवासना की तृप्ति एक निकाह से नहीं हो सकती है, तो उनके लिए कुछ शर्तों के साथ एक से अधिक (अधिकतम चार) निकाह करने के द्वारा भी खुले रखे गये हैं । इतना कुछ करने के बाद दूसरे सभी यौनाचारों को अवैध और अक्षम्य अपराध ठहराया गया है ।
सम्पूर्ण मानवता के लिए सर्वाधिक अनुकूल ईश्वरीय विधन में अनुचित हस्तक्षेप करते हुए यौन दुराचार के कई रूपों को पश्चिमी देशों ने अपने यहां वैध ठहरा लिया है, जिनमें से समलैंगिक व्यवहार विशेष रूप से उल्लेखनीय है । पश्चिम के अंधनुकरण की परम्परा को बनाए रखते हुए हमारे देश में भी समलैंगिकता को वैध ठहराये जाने की दिशा में पहला क़दम उठाया जा चुका है। दिल्ली हाईकोर्ट का फै़सला आते ही देश में कोई दर्जन भर समलिंगी विवाह हो चुके हैं, जिससे यहां का सामाजिक, नैतिक एवं सांस्कृतिक ढांचे के चरमरा जाने का भय उत्पन्न हो गया है और प्रबुद्ध समाज स्वाभाविक रूप से बहुत चिंतित हो गया है।
समलैंगिकता को एक घिनौना और आपत्तिजनक कृत्य बताते हुए ईश्वर ने मानवता को इससे बचने के आदेश दिये हैं—
‘‘क्या तुम संसार वालों में से पुरुषों के पास जाते हो और तुम्हारी पत्नियों में तुम्हारे रब ने तुम्हारे लिए जो कुछ बनाया है उसे छोड़ देते हो । तुम लोग तो सीमा से आगे बढ़ गये हो ।’’ (क़ुरआन, 26:165-166)
क्या तुम आंखों देखते अश्लील कर्म करते हो? तुम्हारा यही चलन है कि स्त्रियों को छोड़कर पुरुषों के पास काम वासना की पूर्ति के लिए जाते हो? वास्तविकता यह है कि तुम लोग घोर अज्ञानता का कर्म करते हो । (क़ुरआन, 27:54-55)
इस संबंध में क़ुरआन में और भी स्पष्ट आदेश मौजूद हैं—
‘‘क्या तुम ऐसे निर्लज्ज हो गए हो कि वह प्रत्यक्ष अश्लील कर्म करते हो जिसे दुनिया में तुम से पहले किसी ने नहीं किया? तुम स्त्रियों को छोड़कर मर्दों से कामेच्छा पूरी करते हो, वास्तव में तुम नितांत मर्यादाहीन लोग हो।’’
(क़ुरआन, 7:80-81)
‘‘वह अल्लाह ही है, जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया और उसी की जाति से उसका जोड़ा पैदा किया ताकि उसकी ओर प्रवृत होकर शान्ति और चैन प्राप्त करे।’’ (क़ुरआन, 7:189)
‘‘तुम तो वह अश्लील कर्म करते हो जो तुम से पहले दुनिया वालों में से किसी ने नहीं किया। तुम्हारा हाल यह है कि तुम मर्दों के पास जाते हो और बटमारी करते हो। (अर्थात् प्रकृति के मार्ग को छोड़ रहो हो।)’’ (क़ुरआन, 29:28-29)
‘‘और यह भी उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हारी ही सहजाति से तुम्हारे लिए जोड़े पैदा किए ताकि तुम उनके पास शान्ति प्राप्त करो और उसने तुम्हारे बीच प्रेम और दयालुता पैदा की। निश्चय ही इसमें बहुत-सी निशानियां हैं उन लोगों के लिए जो सोच-विचार करते हैं।’’ (क़ुरआन, 30:21)
इसके अलावा अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) ने भी समलैंगिकता को एक अनैतिक और आपराधिक कार्य बताते हुए इससे बचने के आदेश दिये हैं। अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) ने कहा है कि—‘‘एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के गुप्तांग नहीं देखने चाहिए और एक महिला को दूसरी महिला के गुप्तांग नहीं देखने चाहिए । किसी व्यक्ति को बिना वस्त्र के दूसरे व्यक्ति के साथ एक चादर में नहीं लेटना चाहिए और इस प्रकार एक महिला को बिना वस्त्र के दूसरी महिला के साथ एक चादर में नहीं लेटना चाहिए ।’’ (अबू दाऊद)
अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) ने कहा कि उस पर अल्लाह की लानत हो जो वह काम करे जो हज़रत लूत (अलैहि॰) की क़ौम किया करती थी, अर्थात समलैंगिकता (हदीस: इब्ने हिब्बान) दूसरे स्थान पर आप (सल्ल॰) ने फ़रमाया—समलैंगिकता में लिप्त दोनों पक्षों को जान से मार दो। (तिरमिज़ी) यह आदेश सरकार के लिए है किसी व्यक्ति के लिए नहीं । इसके अलावा समलैंगिकता में लिप्त महिलाओं के बारे में अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) का कथन है कि यह औरतों का ज़िना (बलात्कार) है । (तबरानी)
इस्लामी शरीअत (Law) में समलैंगिकता को एक ऐसा अपराध माना गया है, जिसकी सज़ा मौत है, यदि यह लिवात (दो पुरुषों के बीच समलिंगी संबंध) हो । सिहाक़ (दो महिलाओं के बीच समलिंगी संबंध) को चूंकि ज़िना (बलात्कार) माना गया है, इसलिए इसकी सज़ा वही है, जो ज़िना की है अर्थात इसमें लिप्त महिला यदि विवाहित है तो उसे मौत की सज़ा दी जाए और यदि अविवाहित है तो उसे कोड़े लगाए जाएं । ये सज़ाएं व्यक्ति के लिए हैं यानी व्यक्तिगत रूप से जब कोई इस अपराध में लिप्त पाया जाए, लेकिन यदि सम्पूर्ण समाज इस कुकृत्य में लिप्त हो तो उसकी सज़ा ख़ुद क़ुरआन ने निर्धारित कर दी है—
‘‘और लूत को हमने पैग़म्बर बनाकर भेजा, फिर याद करो जब उसने अपनी क़ौम से कहा क्या तुम ऐसे निर्लज्ज हो गये हो…तुम स्त्रियों को छोड़ कर पुरुषों से काम वासना पूरी करते हो । वास्तव में तुम नितांत मर्यादाहीन लोग हो । किन्तु उसकी क़ौम का उत्तर इसके सिवा कुछ नहीं था कि निकालो इन लोगों को अपनी बस्तियों से ये बड़े पवित्रचारी बनते हैं । अंततः हमने लूत और उसके घर वालों को (और उसके साथ ईमान लाने वालों को) सिवाय उसकी पत्नी के जो पीछे रह जाने वालों में थी, बचाकर निकाल दिया और उस क़ौम पर बरसायी (पत्थरों की) एक वर्षा। फिर देखो उन अपराधियों का क्या परिणाम हुआ ।’’ (क़ुरआन, 7:80-84)
हज़रत लूत (अलैहिस्सलाम) की क़ौम पर अज़ाब की इस घटना को क़ुरआन दो अन्य स्थानों पर इस शब्दों में प्रस्तुत करता है :
‘‘फिर जब हमारा आदेश आ पहुंचा तो हमने उसको (बस्ती को) तलपट कर दिया और उस पर कंकरीले पत्थर ताबड़-तोड़ बरसाए।’’ (क़ुरआन, 11:82)
‘‘अंततः पौ फटते-फटते एक भयंकर आवाज़ ने उन्हें आ लिया और हमने उस बस्ती को तलपट कर दिया और उस पर कंकरीले पत्थर बरसाए।’’
(क़ुरआन, 15:73-74)
समलैंगिकता एक नैतिक असंतुलन है, एक अपराध और दुराचार है । इसमें संदेह नहीं कि यह बुराई मानव समाज में सदियों से मौजूद है, वैसे ही जैसे, चोरी, झूठ, हत्या आदि दूसरे अपराध समाज में सदियों से मौजूद हैं । इनके उन्मूलन के प्रयास किये जाने चाहिएं न कि इन्हें सामाजिक स्वीकृति प्रदान की जानी चाहिए । कोई भी व्यक्ति जन्म से ही समलैंगिक नहीं होता है, जैसे कोई भी जन्म से चोर या हत्यारा नहीं होता, बल्कि लोग उचित मार्गदर्शन के अभाव में ये बुराइयां सीखते हैं । किशोरावस्था में अपनी नवीन और तीव्र कामेच्छा पर नियंत्रण न पाने के कारण ही लोग समलिंगी दुराचारों का शिकार हो जाते हैं ।
समलैंगिकता को एक जन्मजात शारीरिक दोष और मानसिक रोग भी बताया जाता है। जो लोग इसमें लिप्त हैं या इसे सही समझते हैं वे ये कुतर्क देते हैं कि हमें ईश्वर ने ऐसा ही बनाकर पैदा किया है अर्थात् यह हमारा स्वभाव है जिससे हम छुटकारा नहीं पा सकते हैं। लेकिन वे अपने विचार के पक्ष में कोई तर्क देने में असमर्थ हैं। दूसरी ओर इसका विरोध करने वाले लोगों का एक वर्ग इसे एक मानसिक रोग बताता है, लेकिन उसका यह सिद्धांत भी निराधार है, तर्कविहीन है। सच्चाई यह है कि समलैंगिकता सामान्य व्यक्तियों का असामान्य व्यवहार है और कुछ नहीं।
क़ुरआन ने जिस प्रकार लूत की क़ौम की घटना प्रस्तुत की है उससे भी स्पष्ट होता है कि यह न तो शारीरिक दोष है और न मानसिक रोग, क्योंकि शारीरिक दोष या मानसिक रोग का एक-दो लोग शिकार हो सकते हैं, एक साथ सारी की सारी क़ौम नहीं। यह भी कि ईश्वर अपने दूत लोगों के शारीरिक या मानसिक रोगों के उपचार के लिए नहीं भेजता और न ही उपदेश या मार्गदर्शन देने या अपने अच्छे आचरण का व्यावहारिक नमूना प्रस्तुत करने से ऐसे रोग दूर हो सकते हैं। यह मात्र एक दुराचार है, जिस प्रकार नशे की लत, गाली-गलौज, और झगड़े-लड़ाई की प्रवृत्ति और अन्य दुराचार।
समलैंगिकता व्यक्ति और समाज दोनों के लिए ख़तरनाक है। यह एक घातक रोग (एड्स) का मुख्य कारण है। इसके अलावा यह महिला और पुरुष दोनों के लिए अपमानजनक भी है। इस्लाम एक पुरुष को पुरुष और एक महिला को महिला बने रहने की शिक्षा देता है, जबकि समलैंगिकता एक पुरुष से उसका पुरुषत्व और एक महिला से उसका स्त्रीत्व छीन लेता है। यह अत्यंत अस्वाभाविक जीवनशैली है। समलैंगिकता पारिवारिक जीवन को विघटन की ओर ले जाता है।
इन्हीं कारणों से इस्लाम समलैंगिकता को एक अक्षम्य अपराध मानते हुए समाज में इसके लिए कोई स्थान नहीं छोड़ता है। और यदि समाज में यह अपना कोई स्थान बनाने लगे तो उसे रोकने के लिए या अगर कोई स्थान बना ले तो उसके उन्मूलन के लिए पूरी निष्ठा और गंभीरता के साथ आवश्यक और कड़े क़दम भी उठाता है।

मानवता के विरुद्ध २० घोर अपराध


http://rajeevdubey.jagranjunction.com/2011/10/25/20worstnsc/



न्यू साइंटिस्ट की वेबसाइट पर एक सारगर्भित लेख है. संभवतः पाठकों का ह्रदय विषयवस्तु देख कर उद्वेलित हो उठे .
http://www.newscientist.com/embedded/20worst
इस वेबसाइट को और फिर हमारे देश में पढाये जा रहे इतिहास को देखकर आप पायेंगे कि किस तरह से हमारे देश में इतिहास को तोड़ मरोड़ कर हमारी त्रासद मध्यकालीन परिस्थितियों को सामान्य दर्शाने की कोशिश की जा रही है.
सत्य को नकार कर नयी नींव नहीं रखी जा सकती और न ही शान्ति स्थापित की जा सकती है. सत्य को स्वीकार कर ही नया युग आ सकता है.
सुल्तानों और मुगलों के क्रूर शासन काल के अलावा बीच-बीच में अन्य आक्रान्ताओं के बर्बर हमले भी हुए. इन्हीं में से एक तैमूर लंग ने अपने हिन्दू विरोधी अभियान में दिल्ली में ई. १३९८ में दिसंबर के महीने में एक ही दिन में यूं ही १००,००० हिन्दू मार डाले, युद्धों में तथा अन्य स्थानों पर जो मारे सो अलग. इसके अलावा तैमूर ने उन मुसलमानों को भी मारा जो उसके अनुसार हिन्दुओं के प्रति जितने होने चाहिए उससे थोड़ा कम क्रूर थे.
इसी तैमूर के वंशजों ने मुग़ल साम्राज्य बनाया . आज विकृत इतिहास के द्वारा इन्हीं सबको भारत के बढ़िया जन प्रिय शासकों के रूप में पुस्तकों में परोसा जा रहा है. अब ज़रा तैमूर की पीढियां देखिये …
तैमूर -> मिरान शाह -> अब्दुल सईद मिर्ज़ा -> उमर शेख मिर्ज़ा -> बाबर (और फिर आगे के नाम तो पता ही हैं).
इन बर्बर शासकों के नाम पर सड़कें बनाई जा रही हैं, और भी न जाने क्या क्या आगे होगा.
क्या इस्लाम को मानने वाले हिन्दुओं से भाईचारा तभी बनाएंगे जब हिन्दूओं पर अत्याचार करने वालों का महिमा मंडन किया जाए?
ऐसा नहीं लगता.
किन्तु जोड़ तोड़ और फूट डालने की राजनीति करने वाले कुछ और सोचते हैं.


बलात्कार से पहले


http://islamisanskar.jagranjunction.com/2011/05/21/%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%87-jagran-junction-forum/





लोगों ने बलात्कार के संदर्भ में अपने अपने तरीके से प्रतिभाव देना शुरू कर दीये लेकिन ये देखलें कि इस्लाम बलात्कार को रोकने के लिए क्या कहता है?
इस्लाम ने बलात्कार से बचने का आसान सा सोल्यूशन दीया है. कुरान शरीफ में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है कि पुरुष अपनी निगाहें नीची रखें ओर ओरतों से भी निगाहें नीचे रखने को कहा गया(सूरए नूर,आयात-३०,३१) कोई माने या न माने लेकिन बलात्कार की पहली मंज़िल(स्टेप) “नज़र” है.इन्सान की नज़र ज़बरदस्त तीर दिल पर फेंकती है.पैगम्बर हज़रत ईसा अयहिस्सलाम ने फरमाया ‘अय लोगों बद निगाही(हवस वाली नज़र) से बचो क्यूँ की ग़लत नज़र से देखने से दिल में हवस पैदा होती हे जो बलात्कार के लिए काफी है’. पैगम्बर दाउद अयहिस्सलाम ने अपने बेटे से फरमाया ‘बेटा! तू शेर के पीछे जा सकता है,काले नाग के पीछे जा सकता है लेकिन औरत के पीछे न जाना क्यूँ कि सांप का डंसा हुए का इलाज है लेकिन बद-निगाही का डंस ऐसा ज़ालिम है कि उस से पीछा छुड़ाना मुश्किल है’.आखरी पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम ने उम्मुल मोमिनीन आयशा सिद्दीका रदिअल्लाहोअन्हो से किसी नाबीना(अंध) पुरुष से परदे का हुक्म दीया तो उन्हों ने कहा कि ये तो नाबीना हे, तो मुहम्मद सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम ने फरमाया वोह नाबीना है तुम तो नहीं.इस बात से आपको इस्लाम में परदे की हकीकत का काफी अंदाजा आ जायेगा.
शुरुआत नज़र से होती है, यहाँ पर  एक बात नोट करने जैसी है कि पुरुष को निगाहें नीचे रखने का हुक्म दीया साथ में औरतों को ये हुक्म क्यूँ? मेरी नज़र में इस का जवाब यह हो सकता है कि “सिग्नल देती है” जैसी नौबत ही न आये. क्यूँ कि ताली एक हाथ से नहीं बजती बलात्कार में जितने पुरुष ज़िम्मेदार हैं उतनी औरत भी है कुछ अपवादों को छोड़ कर.
बलात्कार को या हवस वाली नज़र पैदा करने में फ़िल्में बहुत बड़ा किरदार निभा रही है. ओर हर तरह का मीडिया,कोई भी टीवी चैनल,न्यूज़ चैनल,न्यूज़ पेपर हो या मेगेज़ीन जिस में छपने वाली नग्न या अर्ध-नग्न तस्वीरें हवस को बढाने में आग में पेट्रोल की तरह काम करती हैं लेकिन इसकी तरफ कोई कुछ नहीं बोलता क्यूँ कि उन्हें खुद मज़ा आता है.”सेक्स समस्या” या यौन सम्बन्ध से रिलेटेड आर्टिकल की न्यूज़ पेपर में कोई ज़रुरत नहीं क्यूँ की वैसे भी उन गंभीर बीमारियों का इलाज कोई पर्सनली डॉक्टर की सलाह के बगैर नहीं करता.एक तरफ बलात्कार को रोकने कि बातें होती है ओर दूसरी तरफ टीवी पर नन्गे प्रोग्राम दिखाये जाते हैं या न्यूज़ पेपर में नग्न तस्वीरें छापी जाती (ताकि बिज़नेस बढे) है ओर उधर बलात्कार को रोकने की  सिर्फ बातें होती हैं.शायद यह बातें पढ़ कर आप लोगों को एसा भी लगेगा कि आया बड़ा शरीफ! लेकिन सभी बातें गौर करने जैसी हैं.
आज के इस दौर में बे-पर्दगी से फिरने को आज़ादी कहा जा रहा है. ओर परदे को औरत का दुश्मन जाना जा रहा है. इस्लाम के विरोधी परदा करने वाली औरत को मज़लूम समझते हैं ओर आधे या आधे से कम कपडे पहेन ने को आज़ादी कहते हैं. वोह समझते हैं की हम मुसलामानों को बेवक़ूफ़ बना रहे हैं लेकिन असल में वो ख़ुद बेवक़ूफ़ बन रहे हैं बलात्कार जैसे गुनाह कर के.

क्या कहता है कुरान हिन्दुओं के बारे में (भाग -१)



http://atharvavedamanoj.jagranjunction.com/2010/10/30/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%81/
आदिकाल से मानव के मन मेँ जड़ और चेतन सभी पर शासन करने की इच्छा रही है। इस शासन करने की मानसिकता ने ही संसार मेँ विभिन्न प्रकार की विचारधाराओँ को जन्म दिया। विजेता को संसार की समस्त संस्कृतियोँ ने पूजा, सराहा और सिर माथे बिठाया।पराजितोँ की सर्वत्र निँदा की गई, किँतु भारतीय संस्कृति मेँ दूसरोँ के जय की अपेक्षा स्वयं के जय को अधिक महत्व दिया गया। संसार की एकमात्र यही संस्कृति जितेन्द्रिय होने को ही सबसे बड़ा आदर्श मानती है। इसके विपरीत इस्लाम जिसको हम अमन, मोहब्बत और भाईचारे का धर्म मानते है, खुल्लमखुल्ला रक्तपात, हिँसा और व्यभिचार की ही शिक्षा देता है। इसमेँ कोई दो राय नहीँ।
मैँ अपने इस ब्लाँग के माध्यम से देश के समस्त मुस्लिम बुद्धिजीवियोँ, मानवाधिकारवादियोँ और छद्म सेकुलर राजनेताओँ को ताल ठोँककर रमजान के इस तथाकथित मुकद्दस महीने मेँ दावती जेहाद का आमंत्रण देता हूँ कि वे इस मंच पर आयेँ और सिद्ध करेँ कि इस्लाम का भातृत्व सार्वभौम भातृत्व है, वह शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व मेँ आस्था रखता है और उसका अन्य धर्मोँ के अनुयायियोँ से कोई द्वेष नहीँ है. आतंकवाद और इस्लाम दो अलग अलग चीजे हैँ।मैँ विश्वास दिलाता हूँ कि जिस दिन भी यह सिद्ध हो गया मैँ फिर कभी कोई ब्लाँग नहीँ लिखूँगा। लेकिन मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि ऐसा कभी हो ही नही सकता, और हाँ, यही मेरे अंतरात्मा की आवाज है।
जो लोग कहते हैँ कि हिन्दु, मुस्लिम और ईसाई मेँ कोई अन्तर नहीँ उनके लिये अल्लाह का स्पष्ट आदेश है -
और यहूद कहते हैँ उजैर अल्लाह के बेटे हैँ और ईसाई कहते हैँ कि मसीह अल्लाह के बेटे हैँ। यह उनके मुँह की बाते हैँ। उन्हीँ काफिरोँ जैसी बातेँ बनाने लगे, जो इनसे पहले के हैँ (हिन्दु, बौद्ध, जैन)। अल्लाह इनको गारत करे, किधर को भटके चले जा रहे हैँ? (सूरा तौबा 9, पारा 10, आयत 30 )
हुआ न स्पष्ट अंतर। इसके विपरीत हिन्दु कहता है ‘सर्वदेव नमस्कारं केशवं प्रति गच्छति’ अर्थात किसी भी देवता (अल्लाह, ईसा, मूसा, मार्क्स) को प्रणाम किया जाय, तो वह केवल केशव (विष्णु) को ही प्राप्त होगा, इनमेँ कोई अन्तर नहीँ।
अब इन Non believers अर्थात इस्लाम को न मानने वाले काफिरोँ के साथ कैसा सलूक किया जाये इस बारे मेँ कुरआन का कहना है -
जिन मुशरिक़ोँ के साथ तुम (मुसलमानोँ) ने अहद (सुलह) कर रखा था, अल्लाह और उसके पैगम्बर की तरफ से उनको जबाव है -
(सूरा तौबा 9, पारा 10, आयत 1 )

तो चार महीने (जिकाद, जिलहिज्ज, मुहर्रम और रज्जब) मुल्क मेँ चल फिर लो, और जाने रहो कि तुम अल्लाह को हरा नहीँ सकोगे और अल्लाह काफिरोँ को जिल्लत देता है। (2)और हज्जे अकबर (बड़े हज) के दिन अल्लाह और उसके पैगम्बर की तरफ से लोगो को मुनादी की जाती है कि अल्लाह और उसका पैगम्बर मुशरिकोँ (हिन्दु, सिक्ख, यहूदी, ईसाई, बौद्ध, जैन, कम्यूनिष्ट) से अलग है।
(
2) अर्थात अल्लाह और उसका पैगम्बर सिर्फ और सिर्फ मुसलमान है।
हुआ न स्पष्ट अंतर -
पर अगर तुम तौबा करो (अर्थात मुसलमान हो जाओ) तो यह तुम्हारे लिये भला है, और अगर मुख मोड़ो (दीन इस्लाम से) तो जान रखो कि तुम अल्लाह को हरा नहीँ सकोगे, और काफिरोँ को दुखदाई सजा (वर्ल्ड ट्रेड सेँटर, मुम्बई, बामियान आदि) की खुशखबरी सुना दो।
(3) फिर जब अदब के महीने (जिकाद, जिलहिज्ज, मुहर्रम और रज्जब) बीत जायेँ तो उन मुशरिकोँ को जहाँ पाओ कत्ल करो, और उनको गिरफ्तार करो, उनको घेर लो, और हर घात की जगह उनकी ताक मे बैठो। फिर अगर वह लोग तौबा कर लेँ और नमाज कायम करेँ, और जकात दे तो उनका रास्ता छोड़ दो (क्योँकि तब वे मुसलमान हो जायेगेँ) बेशक अल्लाह माफ करने वाला बेहद मेहरबान है।स्पष्ट है कि अल्लाह किसी देश की सेना का मुखिया है, जो अपने सैनिकोँ (मुसलमानोँ) को अपने शत्रुओँ के विरुद्ध मार काट की शिक्षा देता है और तभी छोड़ता है, जब वे सेनापति के गुलाम बन जाते हैँ।


क्योँ गाँधी कुरआन नहीँ पढ़ी क्या?
और इकबाल क्या यही है, मजहब नहीँ सिखाता आपस मेँ बैर रखना।
क्रमशः
इस श्रृंखला के अन्य लेखों में क्या कहता है कुरान हिन्दुओं के बारे में भाग १ से लेकर भाग १५५ तक
और क्या हता है हदीस मुहम्मद के बारे में भाग १ से लेकर २४० तक तथा क्यों हिन्दू एक धर्म तथा आचार पद्धति है तथा इस्लाम मात्र एक राजनैतिक विचारधारा भाग १ से लेकर ५०० तक शामिल है मैं चाहता हूँ की इस पर एक स्वस्थ बहस की परम्परा प्रारम्भ हो और सत्य को सार्थक रूप से स्वीकार करने हेतु पत्रकारिता सन्नद्ध रहे| केवल सामाजिक सद्भाव बना रहे इस निमित्त मैंने पूर्व में लिखे गए इस ब्लॉग को deleat कर दिया था, यहाँ यह बात स्मरणीय है की इसी ब्लॉग ने मुझे पूर्व में मोस्ट viewed ब्लॉगर ऑफ़ the वीक भी बनाया था| मैं अभी तक रुका हुआ था तो सिर्फ इसलिए की मैं वाजपेयी जी का ह्रदय से सम्मान करता हूँ किन्तु गंगा से गटर की तुलना करने वाली उनकी इस ऊँटपटाँग प्रवृत्ति ने मुझे इस चिट्ठे को पुनः मूल रूप में प्रस्तुत करने को विवश कर दिया और यदि सार्थक ढंग से बिना प्रतिबंधित किये मेरे ब्लॉग सृजन का कार्य चलता रहा तो मैं उनकी इस गैरजिम्मेदाराना सदृश्यता को मात्र १० ब्लॉग में ही धुल बना कर उडा दूंगा… इसमें कोई संशय नहीं हाँ, धैर्य बनाये रखे इस्लाम के दार्शनिक आधारों का भी चर्चा किया जायेगा|
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132 प्रतिक्रिया
MmagadhRaj के द्वारा
August 30, 2010
duniya ki ek matra dharma hai manavta………..or nothing…….jis din hum manavta ko dharma maan ney lagein gein……..oos din koi doowesh hi nahin rahega……dharm ki vatwara manata ki batwara hai……..ya yoon kahein ki manav ka batwara hi dharm ka batwara hai.jiska karan hai vichaar ka alag hona.hum apne poorane dharm mein panhoonche.hamein koi dikkat nahin hogi.kiya alag alag phool mil k ek mala nahin bana sakti…ek khoobsoorat mala ka nirmaan karein.har manusya mein kuch na kuch bura e hoti bura e ko hata e a bhaiyon acha e ko samaj mein la e a haan jineinh jo phool ho pasan karne diji a humein mala se matlab honi cha hi a mein toh khood dwesh ka shikaar hoon issi par mera blog hai…………..bhaiyon mera blog padhein” jago badho jiyo zindagi……….jai bihari” aap k comment ka intazar rahe gi .humein khusi hogi ki aap hamara blog padheingein toh….mai jald hi ek or blog likhne ja raha hoon ki kaise hum ladhak cloudbrust effected people ko madad kar saktein hein kam se kam parisram kar k……..likhne ka toh bahoot kuch likh saktein hei dharm par lekin kabhi or……….mein hindu dharma ka hi hoon koyal meetha hi bolega na bhai……dhnyabaad intazaar rahega aap k comments ka mere blog par ..jai bihar,jai bharat ,jai bishwa……………
gaurav2911 के द्वारा
August 27, 2010
वह सिरजी मन की बात सुनकर आचा लगा I दिल को शुकून मिलता है यह जानकर की आज भी हिंदुत्व की आग थमी बुजी नहीं है I आज भी यह एक चिंगारी के रूप में है जिसे एक हवा की जरुरत है जिस दिन यह हवा उसे मिल गयी उसदिन हमको काफ़िर कहने वाले खुद ही गायब हो जायेगे और उनके जूते रहनुमा भी ओज़ल हो जायेगे I जय श्रीराम I
vaibhav के द्वारा
August 27, 2010
सभी हिन्दुस्तानी भाइयों को नमस्कार , सबके विचार पढ़े बहुत अच्छा लगा / एक बात से आप सभी अनजान हैं की मुस्लमान ओउर हिन्दुस्तानी मुस्लमान में बहुत अंतर है / साडी दुनिया के मुसलमान हिंदों को दुश्मन समझते हैं जबकि हिन्दुस्तानी मुसलमान मिल जुल कर ही रहना छाहते है / बजह साफ़ है / इनका रुजगार hinduon के बिना चल नहीं सकता
atharvavedamanoj के द्वारा
August 27, 2010
ऐसा नहीं है वैभव जी.
मनोविज्ञान के अनुसार किसी भी मनुष्य की अभिवृत्ति के affective,behavoural and cognitive तीन components होते हैं. जिनका बदलना इतना सहज नहीं हुआ करता और अगर अभिवृत्तियां परिवर्तित हो भी गयी तो mental framework बदलना तो नितांत ही दुसाध्य काम हैं|
पूरी दुनिया के communist एक ही नारा लगाते हैं…स्थान के परिवर्तन से मानसिकताएं नहीं बदलती|
Mahendra Mishra के द्वारा
August 31, 2010
बिलकूल सही आखिर इनहॆ पैसा और ज्ञान (जेहादी) तॊ अऱब से ही आता है ।
aakash1992 के द्वारा
August 26, 2010
सत्यमेव JAYTE
atharvavedamanoj के द्वारा
August 27, 2010
सत्यमेव जयते नानृतम..
vijendrasingh के द्वारा
August 25, 2010
मनोज जी मंच पर बहस हो मगर तर्कसंगत इसके लिए अब जरूरी हो गया है की आप approval option का इस्तेमाल करें , क्यूंकि कुछ लोग गाली गलोज के बिना बात ही नहीं करना चाहते !आपका लेख सिर्फ जानकारी दे रहा है जो बिना कुरआन पढ़े नहीं मिलती , मेरा निवेदन है की अगले लेख में आप कुरआन के दुसरे पहलुओं पर भी प्रकाश डालना ,ताकि हमें और भी बेशकीमती जानकारी मिल सके और सुन्दर बहस हो ना की नकारात्मक चलती रहे.
atharvavedamanoj के द्वारा
August 25, 2010
धन्यवाद विजेंद्र जी..
मैं येसा करने का प्रयास कर रहा हूँ किन्तु हम सभी शब्द ब्रम्ह के साधक हैं…आप जानते हैं न..अक्षर,
जिसका की कभी क्षरण नहीं होता अजन्मा हैं…अपौरुषेय हैं.प्रिय मित्र यह नई बात नहीं है जब..धर्म पर संकट आया हो और लोग सार्थक बहस करते करते मरने मारने पर उतारू न हो गए हों..
मैं आपको एक दृष्टान्त बताता हूँ …कृष्ण द्वैपायन व्यास ने एक जगह कहा भी है…
उर्ध्व बाहुं विरोम्येष न हि कश्चित श्रुनोतु माम|धर्मादार्थ्श्च कामश्च स धर्मं किं न सेव्व्यते ||
अर्थात दोनों हाँथ उठा कर कहता हूँ,लेकिन कोई मेरी सुनता नहीं हैं की धर्म से हि अर्थ और कामनाओं की प्राप्ति होती है, फिर लोग धर्म का सेवन क्यों नहीं करते?
जब उस समय व्यास की बात नहीं सुनी गयी थी तो मैंने तो केवल कुछ अनुवाद प्रस्तुत किये हैं?
atharvavedamanoj के द्वारा
August 25, 2010
हमारा धर्म किताबों में नहीं मिलता, उसके तत्व को तो गुरु से समझना पड़ता है..वे वेद फूँक दे चाहे गीता…श्रीमद्भगवद गीता में कहा गया है …’त्रैगुन्यविषयः वेदः निःस्त्रैगुन्यो भवार्जुन’ अर्थात वेद केवल सत्व रज और तम की ही चर्चा करते हैं, हे अर्जुन तू इससे ऊपर हो जा|
फिर हम तो सनातनी हैं,धृष्ट और अधृष्ट दोनों का स्वागत है|
किसी ने मुझसे मुस्लिम संतों की चर्चा की थी…व्यस्तता के चलते उत्तर देना भूल गया….
चातक जी. सत्येन्द्र जी, मिश्रा जी, और भी प्रिय सत्यान्वेषी मित्रों का स्नेह प्राप्त होता ही रहता है,
औरंगजेब अपनी असहिष्णुता के लिए जगत विख्यात हैं…हिरान्य्क्षिपू के घर में प्रह्लाद कैसे पैदा होते हैं यह बता रहा हूँ..
औरंगजेब की बेटी जैबुन्निसा बेगम और भतीजी ताज बेगम महान कृष्ण भक्त हुई हैं,
इन्होने कुरान पढ़ा तो इनका मन वितृष्णा से भर गया और उसे उठा कर फ़ेंक दिया..
हिंदुत्व की ओर उन्मुख हुई तो भगवन कृष्ण दिखाई पड़े.. खुद ही देखिये कितना सुन्दर पद कहा गया है ..
सुनों दिल जानी मेरे दिल की कहानी तुम,दस्त ही बिकानी बदनामी भी सहूँगी मैं|
देवपूजा ठानी, मैं नमाज हूँ भुलानी, तजे कलमा कुरान सांडे गुनानी गहूंगी मैं|
नन्द के कुमार कुर्बान तेरी सूरत पै,हौं तो मुगलानी हिन्दुआनि ह्वैं रहूंगी मैं||
इसी तरह की स्थितियों ने तत्कालीन मुस्लिम बुद्धिजीवियों में कोरान के प्रति वितृष्णा भर दी….शेष कल
vijendra singh bhadoria के द्वारा
August 27, 2010
मनोज जी मई और अधिक जानने के लिए उत्सुक हूँ ………..
atharvavedamanoj के द्वारा
August 27, 2010
माननीय विजेंद्र जी.
कुरान के अध्ययन ने मुझे मेरी नौकरी से वंचित कर दिया है| मुझे नीड़ का पुनर्निर्माण करना है|
धैर्य बनाये रखे..शीघ्र ही लव जेहाद का दूसरा भाग प्रस्तुत करने वाला हूँ| अभी मेरे पास १२०० से अधिक आयतें है,जो वैमनस्यता फैलाती हैं|
August 28, 2010
मनोज जी मेरा निवेदन है की आप आपके अगले लेख भाग ३ में हज के विषय में भी लिखे वहां क्या है ?मेरी (अपूर्ण)जानकारी के अनुसार हज में एक शिवलिंग है|
malik saima के द्वारा
August 25, 2010
मयंक जी,सर्वप्रथम आपको इस लेख के लिए साधुबाद देता हूँ,निश्चय ही आपने इस्लाम और कुरआन के विषय में वृहद अध्ययन किया है,और सारगर्भित जानकारी देने का प्रयास किया है,जिसके लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं.
परन्तु मयंक जी,आपको संभवता स्तरीय साहित्य एवं विश्वसनीय साहित्य अभी उपलव्ध नहीं हो पाया है,और मात्र कुछेक पुस्तकों के पड़ने से कोई पंडित अथवा विद्वान पुरोधा नहीं बन जाता.यदि हमें किसी विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करने हों,तो सर्वप्रथम उससे संवंधित साहित्य पड़ने से पूर्व ही हमें कोई पूर्व परिकल्पना का निर्धारण नहीं कर लेना चाहिए,वल्कि हमें अपने विषय से सम्भित पूर्व ज्ञान को भी अपने मष्तिष्क से निकाल देना चाहिय,तदुपरांत निष्पक्ष रूप से विषय से सम्बंधित अधिकतम साहित्य का गहन व् सूक्षम अध्ययन कर,एक समीक्षक की भांति विवेचन कर,अंतिम विन्दुओं को निर्धारित करना चाहिय,विषय से सम्बंधित सकारात्मक एवं नकारात्मक विन्दुओं पर विचार उपरांत सटीक एवं पुष्ट विचार ही अपने लेखों में प्रस्तुत करचाहिय.
रही बात इस्लाम और कुरआन की,तो आपके द्वारा प्रस्तुत उद्यरण से विदित होता है की आपका लेख स्तरीय एवं विश्वसनीय साहित्य पर आधारित नहीं है.सम्पूर्ण कुरआन में हिन्दू अथवा हिंदुत्व का कहीं वर्णन नहीं है. और ये भी स्पष्ट है हिन्दू के साथ साथ सिख,बौध,यहूदी,ईसाई,आदि किसी धर्म अथवा सम्प्रदाय का वर्णन भी कुरआन में नहीं है.
और आपकी जानकारी के लिए बता दूं,कि हिन्दू और हिन्दुस्तान दोनों ही शब्द इस्लाम और मुसलमान कि दें हैं,और ये उर्दू भाषा के शव्द हैं,जिनकी उत्पत्ति अरेबिक और फ़ारसी भाषा के शब्दों से हुई है,और ये भी आपको जानकर आश्चर्य होगा,कि आपके प्रस्तुत लेख में आपने अपनी बात कहने के लिए सेकड़ों उर्दू शब्दों (माथे,देश,पूजा,महीने,सलूक,दिन,खुद,शामिल आदि) का प्रयोग अपनी बात कहने के करना पड़ा है,
कुरआन का अक्षरशा अनुवाद तो संभवता आपको समझ ही न आएगा,इसलिय अनुवादक उसमें अपनी और से स्पष्टीकरण हेतु विवरण जोड़तें हैं,जोकि अलग अलग विद्यनों के विचारों के अनुरूप अलग अलग होता है,जिसके प्रमाणिक नहीं माना जा सकता,
atharvavedamanoj के द्वारा
August 25, 2010
श्रीमान मलिक सेमा जी…
आपका सन्देश मिला प्रसन्नता हुई.. आप समझदार प्रतीत होते हैं…इस बात को तो मैं भी स्वीकार करता हूँ की अक्षरसः अनुवाद और भावानुवाद में जमीं असमान का अंतर होता है किन्तु मैंने जिस भी पुस्तक का उल्लेख किया है…उसको मुस्लिम विद्वानों ने भी सम्मति दी है….हाँ हिन्दू जीवन पद्धति को मैंने उसमें अपनी तरफ से जरूर घुसाया हैं किन्तु मैं पहले भी इस आशय का प्रश्न उठा चूका हूँ की यदि बुतों को पूजने वाले काफ़िर हैं? तो हिंदुस्तान में बुत ही पूजे जाते हैं और इसके प्रमाण में हमारे पास स्पष्ट दर्शन है..आशा है इसी तरह मार्गदर्शन करते रहेंगे …इस मंच पर आने के लिए आपको ढेरों बधाईयाँ…इश्वर की कृपा हुई तो आप निश्चित मेरी शंकाओं का समाधान करेंगे…..कहा भी गया है ”बिनु हरी कृपा मिलही नहीं संता”
आपका आभारी|
K M Mishra के द्वारा
August 24, 2010
कड़ुवा सत्य ।
atharvavedamanoj के द्वारा
August 25, 2010
धन्यवाद मिश्र जी…..इश्वर जानता है की मैंने इस मुद्दे को मात्र प्रचार के निमित्त नहीं उठाया था…
जय श्री राम
music के द्वारा
August 24, 2010
वाह बेटा तो यह अब मंच की गरिमा के अनुरूप नहीं है. और जो तुमलोगों ने शुरू किया है शायद वोह मंच के लिए सही है. अब ले मैं यह सारी बात हिंदी शब्दों में लिख देता हूँ. तब शायद समझ में आ जाएगा.
अगर तुम हिन्दुओं के हिसाब से लोग चलने लगे तो साले तुम्हारे जैसे लोग तो औरतों को फिर से सटी यानि जिन्दा जलने लगोगे. क्या यही हक दिया है तुम्हारे धर्म ने औरतों को जीने का. पत्नी के मरने पर पति को क्यूँ नहीं जिन्दा जलाते ? येही धर्म है तुम्हारा.
औरतें पवित्र हैं या नहीं इसके लिए तुम्हारे राम ने भी उसे आग पर चलने के लिए मजबूर कर दिया . क्या पत्नी पर विस्वास नहीं रहा तुम्हारा. ऐसी एक घटना हाल ही मैं घटी है. तो क्या तुम्हारे धर्म में मर्दों को ऐसे आग से गुज़ारना पड़ता है. नहीं !. पर क्यूँ. तुमलोगों का बस चले तो हर औरत को आग पर चलवाओ.
अगर औरत को स्तन नहीं हो रहा है तो वोह किसी के साथ भी सो सकती है बच्चा पैदा करने के लिए. क्या येही तुम्हारे धर्म में है. अब ऐसा करने के लिए कहा जाता है तुम्हारे धर्म में औरतों को . क्या येही हिन्दू धर्म है.?
जगह जगह नंगी औरतों की मूर्तियाँ और फोटो बनके तुमलोग क्या साबित करना चाहते हो की औरतों की तुम बहुत इज्ज़त करते हो. सरे अजंता और अल्लोरा की मूर्तियों को देखो, और दुसरे मूर्तियों को भी तो मालूम चलेगा ही यह सब ब्लू फिल्म के स्चेने हैं यानी बिलकुल 100 % porn हैं. क्या ऐसे ही खोल कर रखने की इज़ाज़त देता है तुम्हारा धर्म औरतों के बारे में.
जिस को मान कहते हो ऐसी देवी की मूर्ति बनाते हो. उसके आगे पीछे बार बार हाथ लगते हो. ऊपर नीचे सब जगहों को देखते हो. शर्म नहीं आती तुमलोगों को मान के बदन पर हाथ फेरते हो. और तो और पीछे से डंडा भी लगा देते हो. और कितनी इज्ज़त देना चाहते हो तुमलोग. बंद करो औरतों की अपने धर्म में बेईज्ज़ती . औरतों को सम्मान देना सीखो बेटा.
येही कारण है के हिन्दू औरतें दुसरे धाम के साथ जा रही हैं. क्यूंकि उन्हें वहां इज्ज़त , सम्मान और ज़िन्दगी सभी कुछ मिलता है. सुधर जाओ रे. औरतों की इज्ज़त को नीलम मत करो.
फ़ेंक दो अपने उन किताबों को जिसमें यह सारे गलत बातें लिखी हैं. सुधारो अपने साधू संतों को जो आये दिन रपे और लड़कियों का धंधा करते रहते है. वोह तो वास्तव में दलाल है. कुछ तो शर्म करो.
वोह विष्णु कितना अच्छा था सभी जानते हैं जिसने बलात्कार किया स्त्री का. पवन देवता ने भी ऐसे ही बलात्कार किया जिसका नतीजा हनुमान हुआ. न इधर का रहा न उधर का. एक औरत के साथ पांच पांच मर्द महाभारत में दिखाया. यह तो हद हो गयी.
और तो और सालों ने जुआ में अपने बीवी को ही लगा दिया. यह कौन से इज्ज़त दी है तुमलोगों ने स्त्री को. कृष्ण जहाँ रहा उनकी ही घर में सेंध लगा कर उनकी ही घर के लड़की को भगा ले गया. शर्म करो रे. सुधर जा अभी भी.
जिस लिंग की पूजा करते हो वोह है क्या जानते हो. वोह कुछ और नहीं वोह लिंग ही है. ऐसे स्त्रियों को खेलो मत तुमलोग.
atharvavedamanoj के द्वारा
August 24, 2010
ishwar tumhe sadbuddhi de….taki tum apne panth ke baare main uchit dhang se jaan sakon
anand kumar के द्वारा
August 31, 2010
ये सटी प्रथा पहले अपने मन से लडकिय करती थी.बाद में इसको बंद करा दिया gaya
इस्लाम धर्म चोधकर किसी भी के धर्म ग्रन्थ में दुसरे के मजहब के बारे में उल्टा नहीं लिखा.हिन्दू में कंही ये नहीं लिखा की गई गैर हिन्दू को मारो,यहूदी में नहीं लिखा गैर यहूदी को क़त्ल करो ,निचे एक से मेने कुछ पढ़ा था जो कुछ लिख रहा हु.मुझे मालूम नहीं ये सच है या झूट
काफिरों पर हमेशा रौब डालते रहो .और मौक़ा मिलकर सर काट दो .सूरा अनफाल -8 :112

2 -काफिरों को फिरौती लेकर छोड़ दो या क़त्ल कर दो .
“अगर काफिरों से मुकाबला हो ,तो उनकी गर्दनें काट देना ,उन्हें बुरी तरह कुचल देना .फिर उनको बंधन में जकड लेना .यदि वह फिरौती दे दें तो उनपर अहसान दिखाना,ताकि वह फिर हथियार न उठा सकें .सूरा मुहम्मद -47 :14
3 -गैर मुसलमानों को घात लगा कर धोखे से मार डालना .
‘मुशरिक जहां भी मिलें ,उनको क़त्ल कर देना ,उनकी घात में चुप कर बैठे रहना .जब तक वह मुसलमान नहीं होते सूरा तौबा -9 :5
4 -हरदम लड़ाई की तयारी में लगे रहो .
“तुम हमेशा अपनी संख्या और ताकत इकट्ठी करते रहो.ताकि लोग तुमसे भयभीत रहें .जिनके बारेमे तुम नहीं जानते समझ लो वह भी तुम्हारे दुश्मन ही हैं .अलाह की राह में तुम जो भी खर्च करोगे उसका बदला जरुर मिलेगा .सूरा अन फाल-8 :60
5 -लूट का माल हलाल समझ कर खाओ .
“तुम्हें जो भी लूट में माले -गनीमत मिले उसे हलाल समझ कर खाओ ,और अपने परिवार को खिलाओ .सूरा अन फाल-8 :69
6 -छोटी बच्ची से भी शादी कर लो .
“अगर तुम्हें कोई ऎसी स्त्री नहीं मिले जो मासिक से निवृत्त हो चुकी हो ,तो ऎसी बालिका से शादी कर लो जो अभी छोटी हो और अबतक रजस्वला नही हो .सूरा अत तलाक -65 :4
7 -जो भी औरत कब्जे में आये उससे सम्भोग कर लो.
“जो लौंडी तुम्हारे कब्जे या हिस्से में आये उस से सम्भोग कर लो.यह तुम्हारे लिए वैध है.जिनको तुमने माल देकर खरीदा है ,उनके साथ जीवन का आनंद उठाओ.इस से तुम पर कोई गुनाह नहीं होगा .सूरा अन निसा -4 :3 और 4 :24
8 -जिसको अपनी माँ मानते हो ,उस से भी शादी कर लो .
“इनको तुम अपनी माँ मानते हो ,उन से भी शादी कर सकते हो .मान तो वह हैं जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया .सूरा अल मुजादिला 58 :2
9 -पकड़ी गई ,लूटी गयीं मजबूर लौंडियाँ तुम्हारे लिए हलाल हैं .
“हमने तुम्हारे लिए वह वह औरते -लौंडियाँ हलाल करदी हैं ,जिनको अलाह ने तुम्हें लूट में दिया हो .सूरा अल अह्जाब -33 :50
10 -बलात्कार की पीड़ित महिला पहले चार गवाह लाये .
“यदि पीड़ित औरत अपने पक्ष में चार गवाह न ला सके तो वह अलाह की नजर में झूठ होगा .सूरा अन नूर -24 :१३
11 -लूट में मिले माल में पांचवां हिस्सा मुहम्मद का होगा .
“तुम्हें लूट में जो भी माले गनीमत मिले ,उसमे पांचवां हिस्सा रसूल का होगा .सूरा अन फाल- 8 :40
12 -इतनी लड़ाई करो कि दुनियामे सिर्फ इस्लाम ही बाकी रहे .
“यहांतक लड़ते रहो ,जब तक दुनिया से सारे धर्मों का नामोनिशान मिट जाये .केवल अल्लाह का धर्म बाक़ी रहे.सूरा अन फाल-8 :39
13 -अवसर आने पर अपने वादे से मुकर जाओ .
“मौक़ा पड़ने पर तुम अपना वादा तोड़ दो ,अगर तुमने अलाह की कसम तोड़ दी ,तो इसका प्रायश्चित यह है कि तुम किसी मोहताज को औसत दर्जे का साधारण सा खाना खिला दो .सूरा अल मायदा -5 :89
14 – इस्लाम छोड़ने की भारी सजा दी जायेगी .
“यदि किसी ने इस्लाम लेने के बाद कुफ्र किया यानी वापस अपना धर्म स्वीकार किया तो उसको भारी यातना दो .सूरा अन नहल -16 :106
15 – जो मुहम्मद का आदर न करे उसे भारी यातना दो
“जो अल्लाह के रसूल की बात न माने ,उसका आदर न करे,उसको अपमानजनक यातनाएं दो .सूरा अल अहजाब -33 :57
16 -मुसलमान अल्लाह के खरीदे हुए हत्यारे हैं .
“अल्लाह ने ईमान वालों के प्राण खरीद रखे हैं ,इसलिए वह लड़ाई में क़त्ल करते हैं और क़त्ल होते हैं .अल्लाह ने उनके लिए जन्नत में पक्का वादा किया है .अल्लाह के अलावा कौन है जो ऐसा वादा कर सके .सूरा अत तौबा -9 :111
17 -जो अल्लाह के लिए युद्ध नहीं करेगा ,जहन्नम में जाएगा .
“अल्लाह की राह में युद्ध से रोकना रक्तपात से बढ़कर अपराध है.जो युद्ध से रोकेंगे वह वह जहन्नम में पड़ने वाले हैं और वे उसमे सदैव के लिए रहेंगे .सूरा अल बकरा -2 :217
18 -जो अल्लाह की राह में हिजरत न करे उसे क़त्ल करदो
जो अल्लाह कि राह में हिजरत न करे और फिर जाए ,तो उसे जहां पाओ ,पकड़ो ,और क़त्ल कर दो .सूरा अन निसा -4 :89
19 -अपनी औरतों को पीटो.
“अगर तुम्हारी औरतें नहीं मानें तो पहले उनको बिस्तर पर छोड़ दो ,फिर उनको पीटो ,और मारो सूरा अन निसा – 4 :34
20 -काफिरों के साथ चाल चलो .
“मैं एक चाल चल रहा हूँ तुम काफिरों को कुछ देर के लिए छूट देदो .ताकि वह धोखे में रहें अत ता.सूरा रिक -86 :16 ,17
21 -अधेड़ औरतें अपने कपडे उतार कर रहें .
“जो औरतें अपनी जवानी के दिन गुजार चुकी हैं और जब उनकी शादी की कोई आशा नहीं हो ,तो अगर वह अपने कपडे उतार कर रख दें तो इसके लिए उन पर कोई गुनाह नहीं होगा .सूरा अन नूर -24 :60
Raaz के द्वारा
August 24, 2010
Dear All,
maine yahan per sabhi comments or wichar padhe. pahle to mai is mudde pe aana nahi chahta tha or koi comment nahi karna chahta tha lekin fir mujhse raha nahi gaya is liye agar kisi ko mai takleef pahunchaya ye comments likh ker ke to i m really sorry,
mujhe aisa lagta hai ki hamare samaj me Videndersingh jaise ghatiya admi koi ho hi nahi sakta jo hamein ek dusre se ladana chahta hai. khun kharaba karana chahta hai. Iski maksad hai hum sabhi bharat wasiyon ko alag alag baant dena lekin afsos is kamine ki ye koshish kabhi poori nahi ho sakti kyun ki hamare yahan ke log itne bewkoof nahi hai..wo time or tha jab british aye or hamare ander foot dalo rajniti karo jaisi radnity apnaye…….or raaj kiye…..mai ye poochta hun ki kya is mudde ko utha kar hum kya karenege…….agar itna hi mardangi hai iske ander to jaye or or atankwadiyon se ladein….isme kisi dharm ko galat sahi likhne ka kya matlab hai. Isse to yahi baat samne aati hai ki ye admi sirf shabdo ki ladayee kar raha hai or muslim hindu ko ladana chahta hai……..2 ayat padh liye samajhta hai ye kamina ki mai bahut bada vidwan ho gaya……….are jaow ki aise pandit ke paas jo 4 ved padha ho usse poocho hindu musalman ke bare………tumhari kya aowkat jab geeta nahi kahta ramayan nahi kahta apas me bair karo tum tum kyun kar rahe ho……..or rahi terrorism ki baat to isse kisi dharm ka koi matlab nahi hona chahiye terrorism koi dharm nahi….kisi dharm me ye nahi likha ki bekasoor ki jaan li jayein,.,. tumhari itni samajh kaha jo tum quraan samajhne chale…….tum to wo anaadi ho jisko ye bhi nahi pata hoga ki tum paisa kyun kiye gaye………tumhare jaise log to paida hi nahi hone chahiye……….mai quraaan ke hawale se tumhe kuch kahna nahi chahunga kyun ki kuraan ki hawala dene lagun to tum jindagi bhar islam ke bare me kuch galat soch bhi nahi paowge……..2 ayat padhke bada widyan ban gaye……..adhuri shiksha bahut buri hoti hai padhna hi hai to poora kuraan padho fir pata chalega tumhe Islam kya chiz hai…….mujhe to afsos hai ki jagran walen ne itna ghatiyan blog tumhe likhne kaise diya…….tumhare jaise user ko to kabhi kisi site pe blog hi nahi likhne deni chahiye tum to dubara se Hindu musalman ko ladane ka kaam kar rahe ho…….or yaad rakho agar aisi soch rakhoge to tumhe koi hindu hi marega kyun koi bhi samajhdaar insan pahle tumhare jaise logo ka khatma karna chahega taki hum sukoon se rah sake…tumhare jaise log hamare samaj ke gande kidein hai. jo samajh ko khokhla kar rahe hai…..तुम तो गाँधी और इकबाल को बुरा भला कह सकते हो तो फिर किसी को भी कह सकते हो…..नफरत पैदा मत करो हमारे बिच दूर हो जो यहाँ से!

atharvavedamanoj के द्वारा
August 24, 2010
iqbal wahi n jo vibhajan ke vakt paakistan chala gya tha ya koi aur mitra
VS के द्वारा
August 24, 2010
आप की जानकारी के लिए इकबाल 1938 में ही मर गए थे, तब पाकिस्तान तो था ही नहीं,, कितना झूठ लिखोगे यार !! पहले मौ में हजारो यादवो को मारने को झूठा समाचार दिया ,, फिर खुद ही लिखा दर्जनों अब डॉ इकबाल को पाकिस्तान भेज दिया.. अब बस भी करो
vijendrasingh के द्वारा
August 25, 2010
राज जी मुझे घटिया और कमीना जैसी उपाधि देने के लिए धन्यवाद , क्यूंकि मुझे दी गई उपाधियों ने सिद्ध कर दिया जो लेख है उस पर और मेरे द्वारा लिखे गए शब्दों पर आपके पास कोई जवाब नहीं है मै फिर से दोहराता हूँ मै किसी भी मज़हब के खिलाफ नहीं हूँ मै सिर्फ देशद्रोहियों के खिलाफ हूँ और रहूँगा,देशद्रोहियों में आतंकवादी ,नक्सली ,और हर वो संगठन जो किसी भी प्रकार से देश को नुक्सान पहुंचा रहा है
atharvavedamanoj के द्वारा
August 25, 2010
समझ में नहीं आता की इस देश के विभाजन अथवा सत्ता हस्तानान्तरण के बारे में आपके क्या विचार हैं.और न मैं इस बारे मैं जानना ही चाहता हूँ. इतिहास की कुछ घटनाओं की और ध्यान दिलाना चाहूँगा| १९०५ में बंगाल का सांप्रदायिक विभाजन हुआ| १९०६ में मुस्लिम लीग का गठन हुआ और १९०८ में मोहम्मद इकबाल ने लीग का ब्रिटिश चप्टर तैयार किया और आप किस इकबाल के बारे में बात कर रहे हो…….अल्लामा इकबाल,इकबाल ए लाहौरी, रमुज ए बेहूदी, मुफाकिरे पाकिस्तान,शेर ए मशरिक हकीम उल उम्मत वाले इकबाल अथवा जिनकी याद में आज भी पाकिस्तान में प्रत्येक ९ नवम्बर को यौमे वालादत ए मुहम्मद इकबाल मनाया जाता है….उस इकबाल के बारे में|
भारत का विभाजन तो २९ दिसम्बर १९३० को ही हो चुका था, जब लीग के मंच से मोहम्मद हाली को उद्धृत करते हुए कहा गया था….
वो दीने हिजाजी का बेबाक बेडा…निशां जिसका अक्साए आलम में पहुंचा|
महाजिम हुआ कोई खतरा न जिसका …न अम्मा में झिझका न कुल्जुम में ठिठका|
किये पै सिपर जिसने सातों समंदर…वो डूबा दहाने में गंगा के आकर||
सारे जहाँ से अच्छा तो आपको याद होगा….दो लाइने और बताना चाहूँगा..
ये आब्रूये गंगा वो दिन है याद तुझको…उतरा तेरे किनारे जब कारवां हमारा|
किसका कारवां ( गंगा की आबरू से खेलने वाले लुटेरों का कारवां)
और भी एक लाइन है जो पाकिस्तान का बच्चा बच्चा जनता है लेकिन हिंदुस्तान में नहीं बताया जाता|
चीनो अरब हमारा,पाकीस्ता हमारा…मुस्लिम हैं हम वतन हैं …सारा जहाँ हमारा|
atharvavedamanoj के द्वारा
August 25, 2010
अल्लामा इकबाल ने ही लीग का संविधान तैयार किया था…..विभाजन १९३० में और सत्ता हतानान्तरण १९४७ में freedom at midnight के समय समझ गए न आप?
और हाँ आपने कहा इकबाल ने मर्यादा पुरुषोत्तम को इमामे हिंद कहा…मैंने भी वह कविता पढ़ी है जिसका प्रारम्भ शराब से होता है ….क्या जानते हैं आप इमाम के बारे में, क्या जानते हैं आप हाजी के बारे में, क्या जानते हैं आप गाजी के बारे में, क्या जानते हैं आप काजी के बारे में,मुफ्ती के बारे में,,नबाब के बारे में the list is endless.
और उन्होंने इमाम कह दिया तो आप ख़ुशी से झूम उठे…राम इमामे हिंद नहीं रसूले हिंद हैं..खुदाए हिंद हैं….और यही नहीं भारतीय संस्कृति के शलाका पुरुष हैं….राम हमारे बेटे हैं…हमारे भाई हैं हमारे…हमारी बहन हैं…हमारी पत्नी हैं…हमारे माता हैं…हमारे पिता है…हमारें सब कुछ हैं ..
now i dont want to discuss more because this is irrelevant….and out of the topic…thank you for visiting here and giving your nice comments
abodh के द्वारा
August 23, 2010
प्रिय मित्र
आप जो कह रहे हैं उस पर मई कुछ तिपद्दी नहीं करना चाहूँगा, केवल इतना की क्या इस विषय को छेड़ कर आपको लगता है की आज के समय में कुछ फायदा है?
आजके ज्वलंत विषयों पर लिखिए नआ महाराज, आजका सबसे बड़ा विषय है महंगाई, आम आदमी मर रहा है इस महंगाई के दानव के कारण.
आपने जो विषय उठाया है उसपर केवल समाज में विष फ़ैलाने की अतिरिक्त और कुछह नहीं होगा.

अगर आपका अभिप्राय केवल ज्यादा हित पाना था तो निश्चित तौर पर आप सफल हुए.
आपसे प्रार्थना है की अपने लेखन का उपयोग प्रेम को फैलने में करें न की घृणा के विस्तार में.
atharvavedamanoj के द्वारा
August 24, 2010
mitra main itna asamvedi nahi haan ki mujhe mahgaai, ashiksha,berojgaari ityadi muddon
ki koi chinta nahi hain.kintu jab astitwa par sankat madrane lagen…aur ek vichardhara mukhar hokar is aniti ko niti, adharm ko dharm aur anyay ko nayay batane lage….to kya iske viruddh awaj bhi nahi uthai ja sakti…. main koi aslaha lekar to aaya nahi hoon…maine koran ko bhali bhanti udhrit kiya hai..ghrina kaun faila raha hai aap dekh rahen hain…kahane ki awashyakta nahi…
vandemataram
bhagwanbabu के द्वारा
August 23, 2010
मुझे अब ये आभास हो गया है की आपने न तो गीता पढ़ा है न ही कुरआन. इसलिए मुझे आपसे कोई बहस नहीं करना है
क्योंकि अगर आपने गीता या कुरआन पढ़ा होता तो किसी और ग्रन्थ को गटर आप कह ही नहीं सकते.
और हिंदुत्व और गीता के बारे में बतानेवाले आप कौन होते है, पहले आप खुद को समझिए. एक इंसान बनिए फिर दुसरे को समझाने निकलिएगा, आपकी सोच अभी साफ़ नहीं है, गंदगी भर रखा है आपने अपने दिमाग में, कूड़ा भर रखा आपने, पहले उसे साफ़ कीजिये, किसी और की ग़लतफ़हमी बाद में दूर कीजियेगा. क्योंकि अगर किसी और की ग़लतफ़हमी दूर करने के वजाय उसे भी गन्दा कर देंगे आप.
कृपया अपनी ग़लतफ़हमी दूर करें, ये मेरा आपसे सलाह है
धन्यवाद

atharvavedamanoj के द्वारा
August 24, 2010
bhagwan babu ji.
maine apne ek priya mitra dwara kiyen gaye comment ko hata diya hain…lekin meri bhi manyata shayad wahi hai….tulana karte samay mere mitra ne shayad patrata ya apatrata ka dhyan nahi diya….aapke lekh me maine ek gaali padhi thi..khair main aapko ek kahani sunata hoon
ek raja the unki gita par apar shraddha thi….aur yahan tak kaha jaata hai ki geeta padhate padhate we samadhistha bhi ho jaya karaten the…..ek din ki baat hain unke paas ek vyakti aaya aur usne kaha rajan main aapko gita sunana chahata hoon…raja ne kaha nahi abhi nahi…pahale tum ek baar aur gita padh kar aao…roj ka yahi kram ho gaya….vyakti aata…raja taal dete…..vyakti aata…raja taal dete…..aise hi kai mahine ho gayen…vyakti ne aana band kar diya…..bahut dinon baad raja ko usaki yaad aayi…raja chintit ho gaye aur unhone apne logon se us vyakti ke baare main puchcha….kisi tarah se gyat hua ki vah kisi jangal main kutiyan banakar rahata hai….bhitar se gita ke shlok gunj rahen the….us vyakti ke rom rom se swayam jagdishwar bol rahen the….raja uske charanon me gir pade aur kaha maharaj ab kripa kar aap mujhe gita ka updesh karen….vyakti ne kaha rajan maine kai baar aap se gita sunane ki prarthana ki tab to aap ne dhyan nahi diya aj aap khud mujhse gita sunana chahten hain yaisa kyon….raja ne kaha maharaj pahale aap mujhe gita sunate….aaj gita swyam mujhe sunaigi….age aap khud samajhdar ho….dharm ke baare main aapka gyan atyan samriddh hai. dhanyawad.
शशिकांत ओक के द्वारा
August 23, 2010
“आज जो 52 इस्लामिक मुल्क है वहाँ तो किसी ग़ैर मुस्लिम को बाकी ही नहीं बचना चाहिए जब की है इसके उल्टा,, लाखो / करोड़ो की तादाद मे यह ग़ैर मुस्लिम्स ( जिसमे हिंदु ज़्यादा है ) इन मुल्को मे रहते है और बहुत अच्छे से और शांति से रहते है,, ऐसा क्यो है !! ”
उस का श्रेय वहां रहने वाले हिंदुओं के है जो शांती पुर्वक वहां रहते है तथा अपने धर्म का प्रचार नही करते। अगर उनमें से एक भी वहांके धर्म के खिलाफ बात भी करेगा  तो उसका परिणाम क्या होगा यह कहने की बात नहीं।
जिस तरह वहा हिंदू शांती से रहते है वैसेही अन्य गैरमुस्लिमदेशों में मुस्लिम लोग रहे तो कोई समस्याही नही परंतु जो आप कल अनुभव हो रहा है वह विपरीत होने के कारण पुरे विश्व को भयभीत होकर जीना पड़ रहा है।
Abuzar osmani के द्वारा
August 23, 2010
सही कहा आपने शशिकांत जी,पैर भारत में न हिन्दुओं को प्रचार करना चाहिए न मुस्लिमो को ,भारत में तो डेमोक्रेसी है
atharvavedamanoj के द्वारा
August 24, 2010
dhanyawad shashikant ji.
kya karen aap to aankhe khol rahen hain kintu logon ki khulati hi nahi.
devendra के द्वारा
August 22, 2010
लेख बहुत ही सटीक व प्रमाणिक है . इस तरह के लेख लिखने की हिम्मत इस जूठे सेकूलर लोंगों के बीच मैं बहुत कम लोग कर पते हैं , आप को साधुबाद
atharvavedamanoj के द्वारा
August 22, 2010
धन्यवाद देवेद्र जी .
अगर आइना दिखाने में अन्य लोगों को डर लगता हैं तो उसमे क्या किया जा सकता है? केवल लिखने का ही नहीं पढने और समझने की भी हिम्मत बहुत कम लोगों को होती है|
Abuzar osmani के द्वारा
August 22, 2010
I do not go say anything rgarding topic,You are not the first who had said it…you and many minds are alike…..they been answered as well …..I know you would not be last answered,But you need to study more about Islam……you have quoted aayat 3 but you should go ahead and read aayat 4,5,6 …..It will be clare to you in which perspective these were releavent,you named many organisations as terrorist Yes they are but terrorism is not restrictive to them many hindu orgnisations are terrorify iinnocent people ….they plant bombs to kill their own people Like Gowa ..you know…..There are a group of people who yearn to set fire between hindus and muslims…..so we should care of both of them…..you replied on first comment “mau me hazaron yadao bandhu mare gaye the” you must not try to lie like this big,there were 7 people killed 4 of muslims ad 3 are of hindus,You know What is your problme and people alike you?You all are Not in the search of truth,You all are finding wrong in everything ..if you get nothing,you make it wrong by erroneous in your mind,There are for everything an equal and against criticize,……….If you sqaint a bit ,everything is beautyful
atharvavedamanoj के द्वारा
August 22, 2010
i have already answered it and now i dont think it to be just for me to repeat the same thing over and over again.
go to mau police station and you will find two dozens of unclaimed empty milk vessels.
all of these vessels belong to those milkman who were killed or disappeared during mau riots. now how can you say only 3 hindus were killed.
Abuzar osmani के द्वारा
August 23, 2010
WOW …..amazing to listen it that the two dozen is considered to you thousands…..Yes this is amazing mathematics….The present mathematics need you to find the new rules…You say “I have already answered”and you dont want to repeat it again and again…..But I say Whatever you have answered is Not releated to topic ……..Why do you not understand that the Aayat of surah tauba concerning musrikeen of makka…….It is about to war between muslims and mushrikeen for that time…
MOHIT JAIN के द्वारा
August 22, 2010
priya mitra…Manojji… aapne jo kaha vo yathasatya hai.. isme koi sandeh nahi.. aur sabse badi baat to yeh hai ki… muslim dharm ka koi poranik tatav hamare desh me aaj tak kahi bhi khanan me nahi mila…. matlab saaf hai… muslim dharm arab countri se aaya hua.. hai…. aaj kitne dukh ka karan hai.. ki… Bhagwan ram ko apni hi janmbhumi ke liye.. desh ki adalto.. ke nirnayo.. ka intezaar karna pad raha hai… vo ram… jiska janm bharat me hua… aur janm se lekar moksha tak ke sare tathya hamare shastro me varnit hai… aur tathyo ke sabut khanan me paye bhi gaye hai… RAM, Krishna, Mahaveer, Goutambudh.. aadi kai mahapurush.. is Bharatbhumi ki hi den hai… parantu aaj vidambana hai ki.. .. kuch lalu.. mulayam… mayavati.. jaise seculler neta… us dharm ko vishesh mahatv dete hai.. jiska koi itihas bharitya sanskruti me nahi paya gaya… vo dharm jo dusri jagah se aaya hai.. aur ek khaas baat aur…. hamari yaha ki mahilo ko.. mandiro,, gurudwaro.. matho me jaane ki anumati hai… parantu… muslim mahilao ko.. aaj tak maszido me jakar khuda ki ebadat karna koi adhikar nahi.. esa que… Quoki… jitni bhi mahilaye.. muslim hai.. vo sab bharat ki hi betiya thi…. is dharm me.. jab chahe jab mahilo ke liye fatwa jari kar dete hai… uske viprit… hamari aarya sanskruti me… mahilo.. ko mahatvapurna sthan diya gaya haii.. usse jannani kaha gaya hai… vartman me sabse badi agar koi samsya hai.. to vo hai aatankwad…… aur is aatankwad se ab vo log bhi trast hote nazar aa rahe hai… jinhone isko banaya hai.. as like the contry pakistan (aatankwadi nirmata sponser) agar aatanwad ko jad se khatm karna hai to…. uska ek hi rasta hai.. aur vo hai… find and shoot… aur saath me un logo ko bhi pakdna hai.. jo in logo ko chorichhupe madad karte hai….
mera aapse anurodh hai.. ki.. app is maamle par ed kada aur man ko jhakjhor dene wala lekh likhe.. jiski gunj sampurn bharat me uthe… aur ham chand aatankwadi sanghthano ko hamare desh se mukt kar sake…

\”JAI HIND\”
\”JAI BHARAT\”

Abuzar osmani के द्वारा
August 22, 2010
अगर मुस्लिम अरब से आये हैं तो क्या आर्य यहीं पैदा हुए थे ……..जो वेदा आप मानते हो क्या हिंदुस्तान में पैदा हुई थी,आर्य ने तो सबको बाँट दिया था ब्रह्मण जो की सारा का खुद हड़पना चाहता था और सबको बेवकूफ बना कर रख दिया…….सोचो और खूब सोचो
atharvavedamanoj के द्वारा
August 22, 2010
ब्राम्हणों ने क्या पाया और शूद्रों ने क्या खो दिया? अगर यह इतिहास मैं बताने लगा तो यकीं जानिये कलेजा मुहं को आ जायेगा. आरक्षण के नाम पर जो राजनीती इस देश में उसमे तो अब मुस्लिम भी भागीदार होंगे? और इस राजनीति ने ही हम हिन्दुओं को बाट दिया है| वर्णाश्रम व्यवस्था ने जाती का रूप कैसे धारण किया ? क्या आपको पता है ? १००० जातियां न तो वेदों में है और न ही पुरानों में इनका कोई उल्लेख मिलता है ? क्या आप जानते हैं? डोमों या महारों की उत्पत्ति कैसे हुई? उन्ही राजपूतों से जिन्होंने मल उठाना कबूल क्र लिया लेकिन उपना धर्म नहीं बदला? धन्य है महार जाति तेरे चरणों में शत शत प्रणाम|
chaatak के द्वारा
August 21, 2010
प्रिय बंधु मनोज, आपका लेख पढ़ा और इस पर आई हुई सभी प्रतिक्रियाओं को भी| ऐसा लगा जैसे बार-बार अभिमन्यु को चारों और से घेरने की नाकाम कोशिश हो रही हो| घेरने वाले घात तो लगाये रहे लेकिन किसी के पास सटीक तीर नहीं निकला कि पंडित की चोटी क़तर दे (माफ़ करना भाई मैं ऐसे ही कमेन्ट करता हूँ और मुझे पता है कि आप बखूबी समझते हैं कि मेरा मतलब क्या है), मतलब बाल भी बांका कर पाए| राजिंदर कौर जी पूरे दम-ख़म से लगी रहीं लेकिन पंडित की बात थी कि अंगद का पाँव! भाई राजिंदर कौर जी को भी मानना पड़ेगा बिलकुल \’धम-धम धडम धडैया रे\’ कर लिया जबकि तर्क कोई नहीं| क्या बात है! विजेंद्र जी की पैनी नज़र हर कमेन्ट पर कृष्ण जी की भाँती लगी थीं| विजेंद्र जी भी बधाई के पात्र हैं| एक बात समझ में नहीं आई कई लोगों ने भरपूर विरोध किया लेकिन मनोज जी के तर्कों का कोई सही जवाब नहीं दिखा इससे थोड़ी निराशा हुई| बुरा लगा कि कुछ लोगों ने मनोज पर बेतुके आरोप भी लगा मारे| जबकि हर बार जवाब देते समय वो पूरी तरह तर्कसंगत थे और उन्होंने बाकायदा पेज, पारा, आयत संख्या सहित उदाहरण दिए हैं| \’कुछ ने कहा गड़े मुर्दे न उखाड़ो\’ क्या बेतुकी बात है, भाई मुकदमा और बहस क्या मकतूल के लिए नहीं होती? इसका मतलब आदमी ख़तम तो काम ख़तम! दुसरे शब्दों में कहो क़त्ल का मतलब कातिल बेगुनाह! भाई एक सीधा सा तर्क था जिसे मनोज जी ने अपनी आक्रोशित शैली में रख कर जवाब माँगा अगर आप दे सकते हो तो दो वर्ना किनारा लो| मेरे पास अगर कुरआन की थोड़ी भी जानकारी होती तो मैं मनोज को जरूर जवाब देता क्योंकि किसी भी मानवीय धर्म या पंथ या विश्वास या परंपरा की निंदा मुझे गवारा नहीं|
मनोज जी, मैं एक बात का जवाब आपको जरूर दूंगा कि गांधी और इकबाल ही वे दो रास्ते हैं जिनसे दुनिया सम्मानपूर्वक आगे चलेगी और ये दोनों हमारे हैं क्योंकि गांधी किसी हिन्दू का नहीं और इकबाल किसी मुसलमान का नहीं| हमें ये दोनों ही चाहिए भले ही इनमे लाख कमी हो लेकिन दोनों देशभक्त थे और सही मायनों में हिन्दुस्तानी किसी का अहित करना इनका उद्देश्य नहीं था शायद हम अभागे हैं कि उन्हें समझ न पाए| गांधी जी को लेकर शायद आपके जेहन में बहुत प्रश्न हैं क्योंकि आपने गहन अध्ययन किया है लेकिन कुछ तो है जो बार बार उनसे खिन्न होने के बाद मेरे जैसा गांधी विरोधी भी गांधी के समक्ष नतमस्तक हो जाता है|
मनोज जी आपने जिस साहस के साथ हर तर्क-कुतर्क का सामना किया है उसकी जितनी भी प्रशंसा करूँ कम है| इकबाल साहब के शब्दों में ही आपके लिए लिखता हूँ
\’कुछ ख़ास है के हस्ती मिटती नहीं हमारी,
गो कि रहा है दुश्मन दौर-ए-जहां हमारा|\’

vijendrasingh के द्वारा
August 22, 2010
चातक जी प्रशंसा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! आजकल आप हैं कहाँ ?
atharvavedamanoj के द्वारा
August 22, 2010
प्रिय मित्र चातक जी,
वंदेमातरम .
आपके सन्देश ने मुझमें एक नयी उर्जा का संचार किया है. मित्र मैं जिस विचारधारा को लेकर चल रहा हूँ उसमे अब चाहे मेरी भर्त्सना हो अथवा मानवर्धन कोई फर्क नहीं पड़ता| जिन्होंने हिन्दुवों को आतंकवादी कह कर पुकारा है उन्होंने मेरे अंदर आक्रोश की चिगारी धधका दी है अब अगर यह ज्वालामुखी बनकर विस्फोट करने पर आमादा है तो तकलीफ किस बात की| न तो मुझे जीने का फिक्र है न तो मुझे मरने की चिंता| मैं जनता हूँ और मुझे कोई राजनीती नहीं करनी है सभी को जानने का हक है तो मुझे सत्य बात को कहने से रोक कैसे सकते हैं? मैं वही कह रहा हूँ जो अम्बेडकर ने कहा था (दुसरे तरीके से) thoughts on pakistan | और सलमान रश्दी ने कहा तो उसके सर पर इनाम रख दिया गया| क्या इससे आवाज दब जाएगी?
मैं आपकी अभिव्यक्ति कौशल का कायल हूँ.
मित्र मोहम्मद इकबाल ने ही पाकिस्तान का प्रस्ताव रखा और पाकिस्तान चले गए . गाँधी ने पाकिस्तान को विभाजित होते ही आर्थिक सहायता उपलब्ध कराइ.
मैं इन्टरनेट पर कम ही आता हूँ क्योंकि मुझे रोटी दाल का भी इंतजाम करना पड़ता है. इन कुतार्कवादियों का आप बेहतर मुकाबला कर सकते है…. और वैसे भी सांच को आंच क्या….जो कुछ भी मैं कह रहा हूँ वह दिख रहा है.वन्देमातरम
atharvavedamanoj के द्वारा
August 22, 2010
विजेंद्र सिंह जी की कभी पराजय हो ही नहीं सकती. चातक जी आपने उन्हें कृष्ण कहा मैं उन्हें परशुराम भी कहना चाहूंगा| साथ ही मोहित जैन जी, विक्रम सिंह जी, डॉ सत्येन्द्र सिंह जी, राजन जी , रूद्र नाथ त्रिपाठी पुंज जी, अनीता पॉल जी भी देव शक्तियों के रूप में नजर आयें.
सब ने सत्य को अनावृत करने में मेरी सहायता की…..राजिंदर कुअर जी का मैं बहुत बहुत आभारी हूँ जिन्होंने कदम कदम पर मेरी सहायता की. जलाल जी एक सच्चे भारतीय मुसलमान हैं और राशिद जी की भी भारतीयता और देश प्रेम सराहनीय है. मैं आप सभी का आभारी हूँ
vijendrasingh के द्वारा
August 23, 2010
मनोज जी सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ,साथ ही कहना चाहूँगा की सच को सच कहने और झूट को झूट कहने का साहस हर किसी मैं नहीं होता और ना ही सच को सुनने और समझे की समझ हर किसी में होती है जो लोग यहाँ पर प्रेम की बात कर रहें हैं वो अगर देशप्रेम की नजर से देखें तो उनकी सोच का दायरा भी उपरोक्त लेख को समझने के काबिल बन पायेगा , अगर कोई सम्प्रदाय अपनी एकता की बात करता है और पूरे विश्व में अपनी धर्म पताका फहराना चाहता है अगर हिन्दू ने अपनी एकता और धर्म की बात की तो कुछ(भीरु) लोगों को मूर्खता नजर आती है ऐसे लोग अपने घर पर आई हुई मुसीबत के लिए भी पडोसी का मुंह ताकते होंगे, आज ईसाई मिशनरी अपना धर्म फैला रहें हैं इस्लाम धर्मावलम्बी भी अपना धर्म (कश्मीर ) में अपना धर्म फैला रहे हैं तो हमने अपने धर्म की बात की तो क्या गलत किया !गर्व से कहो हम हिन्दू है जय भारत -जय हिंद -वन्दे मातरम् !
VS के द्वारा
August 24, 2010
चातक जी ,, कहाँ इसकी बातो में आते हो.. इकबाल 1938 में ही मर गए थे, तब पाकिस्तान तो था ही नहीं,, कितना झूठ लिखोगे यार !! पहले मौ में हजारो यादवो को मारने को झूठा समाचार दिया ,, फिर खुद ही लिखा दर्जनों अब डॉ इकबाल को पाकिस्तान भेज दिया.. अब बस भी करो
chaatak के द्वारा
August 24, 2010
प्रिय VS जी, क्या आपको लगता है की मैं किसी के बहकावे में आ सकता हूँ? मुझे जिस बात का तनिक भी संदेह हो उस पर मैं अपनी राय कभी नहीं देता | मुझे कुरआन की जानकारी नहीं इसलिए मैंने मनोज जी के द्वारा दिए गए तथ्यों पर कोई टिप्पड़ी नहीं की लेकिन इकबाल साहब और गांधी जी के बारे में बहुत कुछ पढ़ रखा है और मैं इन दोनों की इज्ज़त करता हूँ | लेकिन इसका मतलब ये कतई मत निकालिएगा कि मैं इनकी सभी बातों का पक्षधर हूँ | अभी तक मैंने अगर मनोज की सराहना की है तो सिर्फ इसलिए कि बन्दे की study कमाल की है | अक्सर लोग इकबाल साहब के नाम पर धोखा खा जाते हैं लेकिन मनोज ने पलक झपकते जवाब दिया| एक बार और इतिहास पर गौर करें भारत पाकिस्तान विभाजन के वास्तविक सूत्रधार इकबाल साहब ही थे | भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार सबसे पहले इक़बाल ने ही उठाया था। 1930 में इन्हीं के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने सबसे पहले भारत के विभाजन की माँग उठाई। इसके बाद इन्होंने जिन्ना को भी मुस्लिम लीग में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और उनके साथ पाकिस्तान की स्थापना के लिए काम किया। इन्हें पाकिस्तान में राष्ट्रकवि माना जाता है। इसके बावजूद मैं कहता हूँ कि गांधी भी हमारा है और इकबाल भी हमारा और मैं इन दोनों की दिल की गहराइयों से इज्ज़त करता हूँ | आपसे गुजारिश है बल्कि यहाँ सारे ब्लोगरों से गुजारिश है कि आप मनोज को समझने की थोड़ी सी कोशिश करें उसके अध्ययन में काफी गहराई है शैली चाहे जितनी आक्रामक हो| अभी मनोज जी कुरआन का अध्ययन कर रहे हैं उन्हें करने दीजिये निश्चय ही वो इस्लाम की अच्छी समझ हासिल कर पायेंगे| रोड़े क्यों अटका रहे हैं | शास्त्रार्थ सनातन धर्म का आधार है इसलिए सनातन धर्म का अनुयायी किसी भी धर्म या मान्यता को बिना तर्कों के कैसे स्वीकार करेगा ?
VS के द्वारा
August 24, 2010
चातक जी ,,
मेरी टिपण्णी मनोज जी के कमेन्ट “iqbal wahi n jo vibhajan ke vakt paakistan chala gya था”
पर थी … क्या यह जानकारी सही है ?? आप बताए क्या किसी धर्म के बारे में ऐसी बाते लिखना चाहिए जो मनोज जी, विज. / राज / विक्रम आदि लोगो ने लिखी ,, फिर उत्तर में म्यूजिक आदि ने हिन्दू धरम के बारे में लिखी,, यहाँ तक की आप न भी शैतानी आयत लिख दी, जब यह लोग कुरान को गटर , कटवा आदि बना रहे थे तब आपने उनको क्यों मना नहीं किया !! साहब मैं एक आर्य समाजी हूँ ,, इस तरह के लेख और टिप्पणिया सिर्फ नफरत ही फैलाती है !! देश को नफरत की नहीं प्यार की ज़रुरत है…

धन्यवाद
विजय शंकर श्रीवास्तव

VS के द्वारा
August 24, 2010
एक बात और इकबाल वहीँ है जिन्होंने भगवन राम को “इमाम ऐ हिंद” कहा, “सरे जहाँ से अच्छा लिखा” लिखा है लेकिन शायद नफरत फैलाने वालो को सिर्फ गलत बाते ही समझ में आती है !!
VS श्रीवास्तव
chaatak के द्वारा
August 24, 2010
भाई विजय, बिलकुल सही कहते हैं आप एक मृत व्यक्ति का प्रव्रजन संभव नहीं लेकिन इकबाल साहब तो अपने जीते जी ही पकिस्तान की रचना कर चुके थे और उनके जेहन में पकिस्तान की साफ़ तस्वीर थी |
His tomb is located in Hazuri Bagh, the enclosed garden between the entrance of the Badshahi Mosque and the Lahore Fort, and official guards are maintained there by the Government of Pakistan.
रह गई मेरी बात तो मैंने शैतानी आयतें inverted commas में इसी लिए लिखा है कि आप इसका उद्धरण ‘The Satanic Verses by Salmaan Rushdi’ से जोड़ सकें ये मेरेनहीं एक निर्वासित मुसलमान के शब्द हैं जिनके नाम आज भी फतवा जारी है | मेरे इस ब्लॉग में दिलचस्पी का कारण यही है कि सलमान रुश्दी ने जब कुरआन पढ़ी तो उन्होंने ‘शैतानी आयतें’ लिखी और मनोज ने कुरआन पढ़ी तो ये ब्लॉग | आखिर क्यों ? संभवतः आपकी शंकाएं ख़त्म हो गई होंगी |

VS के द्वारा
August 25, 2010
चातक जी ,, बस एक बात बताइए ,, क्या वजेह है की इसाई और मुस्लमान दोनों धर्म नए होने के बावजूद (२०१० साल और १४०० साल उम्र है इनकी) पूरी दुनिया में फैल गए और आज भी पूरी दुनिया में फैल रहे है (आप यह आरोप नहीं लगा सकते की यह काम तलवार या लालच के बल पर हो रहा है) जबकि हिन्दू धर्म सब से प्राचीन होने के बावजूद दिन बा दिन सिकुड़ता जा रहा है ,, खुद इस धर्म के मानने वाले ही नास्तिक होते जा रहे है ,, इस का कारन है इस में व्याप्त कुरीतिय जैसे भेद भाव , जाती पाती आदि ,, आज भी हरिजन को अपमानित होना पड़ता है ,, लोग उसके हाथ का खाना तक नहीं खाते शायद कुछ दिन पहले आप ने समाचार देखा ही होगा !! दलित महिलाओ का आये दिन समाचार आता है ,, तो क्या यह ज्यादा ज़रूरी नहीं था की हम हिन्दू समाज में सुधार करे ताकि लोग इस तरफ आकर्षित हो ना की किसी धर्म को लेकर बिना सन्दर्भ या आगे पीछे देखते हुए अपमान करे ,, मैंने पूरा मंच छाना परन्तु किसी भी मुस्लिम या इसाई द्वारा हिन्दू धर्म को अपमानित करने वाला लेख नहीं पाया,, क्या हमारे इतिहास या धर्म ग्रन्थ में कोई ऐसे घटनाएं नहीं है परन्तु एक सभ्य समाज को यह शोभा नहीं देता है की ऐसे लेख लिखे जिससे नफरत पैदा हो ,, यदि आप के मित्र कोई मुस्लिम बंधू हो तो मुझे बताये की नाम और पूजा पद्दति के अलावा आप उनमे क्या अंतर पाते है स्वयं से ,, वह भी जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रहे है ,, बेरोज़गारी से . भ्रष्टाचार से त्रस्त है ,, साधारण व्यक्ति सब सामान ही है ,, दंगे आदि में तो मुस्लिम के साथ साथ हिन्दू में हैवान बन जाते है फिर एक तरफ़ा बात क्यों, आप ने शायद मेरठ का हाशिमपुरा काण्ड सुना होगा जब ४० मुस्लिम नवजवानों को पुलिस ने गोली मार कर नदी में फेक दिया था ( आप इन्टरनेट पर सर्च कर सकते है ), या अभी हाल में एक हिन्दू लड़के को उत्तराखंड में पुलिस ने फर्जी मुत्भेद में मार दिया था, सोब्रबुद्दीन से साथ साथ तुलसी प्रजापति भी फर्जी मुत्भेद में मारा गया क्या कभी उसके परिवार के बारे में सोचा गया ,, कहने का मतलब यह है की मुस्लमान भी आम भारतीयों की तरह है और व्यवस्था के शिकार है !! तहेल्का के टेप आप ने देखे होंगे ,, बंगलोरे के विडियो देखे होंगे क्या यही हिंदुत्व है क्या यह ही हिंदुत्व के असली पैरोकार है,, क्या इस से हिन्दू धर्म की छवि खराब नहीं होती है ,, एक सच्चा हिन्दू होने के नाते हमारा फ़र्ज़ है की हम देखे की हमारी छवि दुनिया में क्या बन रही है ,, मैंने तो विभाजन को देखा है और उम्र के आखरी पड़ाव पर हु परन्तु मेरा अनुभव यही है नफरत से नफरत बढती है ,, आप किसी को एक गाली दीजिये गा वह पलट के दो देगा फिर आप चार वह छे यह सिलसिला कभी ख़त्म नहीं होगा ,, इस से अच्छा है की खामोशी से खुद को अपने धर्म को और समाज को मज़बूत किया जाए !! यदि आप लोगो को कोई बात बुरी लगी हो तो बूढ़ा समझ कर माफ़ कर देना ,, परन्तु मेरी बात पर एक बार गौर ज़रूर करना
विजय शंकर श्रीवास्तव
atharvavedamanoj के द्वारा
August 27, 2010
vs जी आपने आपने आपको आर्यसमाजी कहा है, क्या आपने सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा है? यदि नहीं तो पढ़ लीजियगा| मैं समझता हूँ की आपकी समस्यायों का समाधान हो जाएगा और ताज्जुब की बात है की आपने विभाजन को अपने आँखों से देखा है और फिर भी आप यही मानते हैं की विभाजन १९४७ में हुआ था? हाँ उस पर राजनैतिक स्वीकृति अवस्य उसी वर्ष प्राप्त हुई थी.. शायद आप हमारी बात से सहमत न हों किन्तु क्या आप कश्मीर को अब भी हिंदुस्तान का अभिन्न अंग मानते हैं, यदि आप कश्मीर में नहीं रहते तो आप वहां पर एक विश्व जमीं भी नहीं खरीद सकते..
atharvavedamanoj के द्वारा
August 27, 2010
इकबाल के बारे में मैं उत्तर दे चूका हूँ ध्यानपूर्वक पढ़ेगें तो समझ में आ जायेगा
VIKRAM के द्वारा
August 21, 2010
मेरे सभी सिख भाइयो, बड़े अफ़सोस के साथ कहना पर रहा है के मुझे इस सिखनी (राजिंदर कौर — RAJINDER KOUR ) पर थोड़ी शंका हो रही है सची सीखनी होने पर. किसी सिख / हिन्दू भाई को ठेस पहुची है तो माफ़ी चाहुगा ! ! !
जय हिंद ! वन्देमातरम ! ! !
VIKRAM के द्वारा
August 21, 2010
जय हिंद ! ! ! बस कुछ आम हिन्दुस्तानी जैसो की सोच की वजह से ही तो इस “सोने की चिड़िया” (भारत माता का ) यह हाल हो चुका है, और कितना डरते रहोगे हम सब ? ? ? इन मुट्ठी भर निताओ की भाषा बोलना छोड़ कर मर्द बनकर सचाई को स्वीकार करना है , यह जरुरी नहीं की जब तक हमारे अपने साथ ( PERSONALLY) कुछ बीते तब तक आप ऐसे ही ढकोसले और कायरो वाली भाषा का इस्तमाल करें? मानने वाले हिन्दू धर्म को और इतना डर ? ?? इतना डर ? ? ? हमारे सचे हिन्दू भाइयो की जानकारी के लिए सनातन धर्म के अलावा कोई भी धर्म, धर्म नहीं है, पर पंथ है. (महरबानी करके गंगा को गटर से तुलना करना छोड़ दे ) आज कायरो जैसी सोच की वजाए सी ही धीरे धीरे हमारी गंगा माँ,गटर मैं तब्दील हो रही है …. ज़रा अपने अंदर जाकर,पुरे धियान से सोचकर देखे तो आप को जवाब अपने आप मिल जायेगा. बहुत कुछ है बताने के लिया. पर आज के लिए इतना काफी है….
जय हिंद !
वन्देमातरम ! !
भारत माता की जय ! ! !

Dr satyendra singh के द्वारा
August 21, 2010
वन्धुओ!
हम सुधरेंगे जग सुधरेगा

चलो आज से अपने आपको सुधारते हैं
क्या ख्याल है?
Rajinder Kaur के द्वारा
August 20, 2010
एक बात और इस तरह की भड़काओ चित्र आप को हर धर्म के बारे मे मिल जायेगे,, जिनमे निर्दोषों को ज़िंदा जलाते हुए,, बेकुसूर लड़कियो को पीटते हुए,, दलित महिलाओ को नग्न कर के गावों मे घुमाते हुए !! पंचायितों द्वारा प्रेमी जोड़ो मे मौत का फरमान सुनते हुए आदि दिखाया गया होगा ,, परंतु एक सभ्य समाज मे ऐसे लोगो के लिए कोई जगह नहीं है !!!
atharvavedamanoj के द्वारा
August 24, 2010
kya is tarah ke chitra bhi aapko hr dharm main milega. kshma kijiyega link bhej raha hoon
aap khud dekh lijiyega cyberbrahma.com/wp-content/uploads/bharatmata.jpg
sat sri akal.

Rajinder Kaur के द्वारा
August 20, 2010
जलाल जी
मैं भी एक बेकार बातों पर बहस नहीं करना चाहती लेकिन कुछ लोगो को आइना दिखाना बहुत ज़रूरी होता है ,, नफरत का बाज़ार गरम करना, दूसरो को नीचा दिखाना ,, भावनाओ को भड़कना ,, यदि इन सब बातों का उचित उत्तर नहीं दिया जाये ग तो इन तत्वो को और हौसला मिलेगा,, आप खुद देखिए पहले इन होने इन आयतों के संबंध मे किसी घटना का ज़िक्र नहीं किया,, जब इन को हक़ीक़त बताई गयी तो इधर उधर / अगर मगर करने लगे ,, फिर बिना किसी कारण सिख समाज को इस मे जोड़ लिया अब कम से कम तो इन का त्रुटि पूर्ण और आधारहीन, संदर्भहीन लेख देखे गा तो वह आगे यह भी देखेगा की इनहोने कहा की बाते कहा ला कर जोड़ी है,, (1400 साल पुरानी घटना को आज से जोड़ दिया) बहरहाल,, दुनिया तो देख ही रही है की कहाँ क्या हो रहा है॥ मैं भी आज से इस लेख पर कमेंट लिखना बंद करती हू !! मेरा मक़सद किसी को नीचा दिखाना नहीं था बल्कि सच्चाई बताना था और यह बताना था की दूसरो को कहने से पहले अच्छा है खुद को देखा जाए !! हर समाज मे सुधार करने की बहुत ज़रूरत है तो दूसरो को सुधारने के बजाए खुद सुधरे और अपना समाज सुधारे जब यह हो जाये तो फिर दूसरो पर ध्यान दे !!

bhagwanbabu के द्वारा
August 20, 2010
इस तरह की बकवास करके आप जली हुयी राख को कुरेद कर फिर से हंगामा कराना चाह्ते है
आपके इन बातो से आपस में और भी वैमनस्य उत्पन्न होगा और कुछ नही

कुछ ऐसी बातें कीजिय जिससे आपस मे प्रेम बढे, न कि शत्रुता, केवल जागरण मंच पर चर्चित होने का उपाय मत कीजिय
“प्रेम” को एक नया धर्म बनाइये, छोडिये सारे ढकोसले, इन सब से कुछ नही होने वाला

मैं सभी धर्म के लोगो से आह्वान करता हूँ कि इन सब ढकोसलो में न पडे – बस प्रेम कीजिये
http://www.bhagwanbabu.jagranjunction.com
Rajinder Kaur के द्वारा
August 20, 2010
बहुत सही साहब,,
प्रेम का धर्म सब से बड़ा है और हर धर्म का आधार प्रेम ही है !! वास्तव मे आप जैसी सोच वालों की वजह ही से हमारा देश भारत प्रेम शांति और सद्भावना के लिया जाना जाता है,, भारत के 99% नागरिक
(चाहे किसी धर्म के हो ) शांति और प्रेम से रहते है और रहना चाहते है बाकी अच्छे बुरे हर धर्म मे है
इसका ज़िम्मेदार उनका धर्म या धर्म ग्रंथ नहीं बल्कि वह खुद जिम्मेदार है !!
जय हिन्द / जय भारत

vijendrasingh के द्वारा
August 20, 2010
भगवान बाबु जी आप अपने ये सुन्दर वचन काश नक्सलियों और आतंकवादियों को कहते तो देश मैं शांति स्थापित हो सकती है जगह जगह बम विष्फोट हो रहे है कभी संसद पर तो कभी लालकिले पर ? क्या आपको हमारे देश पर हो रहे इन हमलों से भी कोई फरक नहीं पड़ता ? यहाँ पर बात हिदू धर्म की हो रही है इस लिए मई आपको बताना चाहता हूँ की हिन्दू कभी भी हिंसा मैं विश्वास नहीं करता ,अगर करता होता तो आज भारत देश हिन्दू देश होता और कोई धर्म यहाँ नहीं पनप पाता, ढकोसला आप मत करिए देश पर हो रहे हमलों से अनजान रहकर ?
VIKRAM के द्वारा
August 21, 2010
भगवन बाबु भाई साहिब जी, बस कुछ आप जैसो की सोच की वजह से ही तो इस “सोने की चिड़िया” (भारत माता का ) यह हाल हो चुका है, और कितना डरते रहोगे इन मुट्ठी भर निताओ की भाषा बोलना छोड़ कर मर्द बनकर सचाई को स्वीकार कीजये, यह जरुरी नहीं की जब तक आप के साथ ( PERSONALLY) कुछ बीते तब तक आप ऐसे ही ढकोसले और कायरो वाली भाषा का इस्तमाल करें? नाम तो आपका भगवन बाबु और इतना डर ? ? ? भाई साहिब आप की जानकारी के लिए सनातन धर्म के अलावा कोई भी धर्म, धर्म नहीं है, पर पंथ है. (महरबानी करके गंगा को गटर से तुलना करना छोड़ दे ) आज आप जसो की सोच की वजाए सी ही धीरे धीरे हमारी गंगा माँ,गटर मैं तब्दील हो रही है …. ज़रा अपने अंदर जाकर,पुरे धियान से सोचकर देखे तो आप को जवाब अपने आप मिल जायेगा. बहुत कुछ है बताने के लिया. पर आज के लिए इतना काफी है….
जय हिंद !
वन्देमातरम ! !
भारत माता की जय ! ! !

bhagwanbabu के द्वारा
August 21, 2010
यहाँ विजेन्द्र जी ने मेरी बात को नक्सलियों और आतंकवादियों से जोडा है बिल्कुल बचपना दिखाई देता है और कुछ नही, प्रेम की कमी ही ये नक्सली और आतंकवादी पैदा कर रहे है । और ये जो मुझे लाल किला और संसद के विस्फोट गिना रहे है इसमें विस्फोट के जिम्मेदार इन लाल किलो और संसद में बैठे लोग ही है इसमे किसी धर्म या जाति का कोई वास्ता नही है।
और विक्रम जी मुझे कायर कहते है, मर्द बनकर जीने को कहते है और गंगा को गटर बनाने की बात कहते है तो इन्हे बता दूँ कि
अगर गंगा गटर में तब्दील हो रही है तो इसमें आप जैसे लोगों के ढकोसलो की वजह से
हो रही है
और आपको क्या लगता है अगर आप मर्द बन जाये तो ये भारत सोने की चिडिया कहलाने लगेगी

या इस देश की स्थिति सुधर जायेगी, जी नही कभी नही सुधर सकती है ।
सिर्फ प्रेम ही एक धर्म है और कोई धर्म नही, जितना ही आप हिन्दू, मुस्लिम और अन्य धर्मो को लेकर चलेंगे, उतने ही विवाद खडे होंगे, और इन विवादो मे आप जैसे मर्द सिर्फ और सिर्फ इस तरह की बेतुकी, बेवुनियाद और खून-खराबे वाली बात करके सिर्फ और सिर्फ हंगामा कर सकते है, खून-खराबा कर सकते है और कुछ नही, आने वाली पीढियों के लिये शत्रु पैदा कर सकते है और कुछ नही।
और आपने मुझे कायर कहा – याद रखिये “सागर के उर मे भी ज्वाला होती है” और जब सागर जलाती है तो उसे सिर्फ सागर ही बुझा सकता है, दुनिया की कोई ताकत नही
और सिर्फ वंदे मातरम या भारत माता की जय करने से आप देश-भक्त नही कहलायेंगे
सिर्फ भारत माँ के आँचल को लाल कर सकते है, माँ के सपूतो से, इससे माँ खुश नही बल्कि अकेले में आँसू बहाती है, क्योंकि माँ ये नही जानती कि मेरा कौन सा सपूत किस धर्म का है
एक अच्छी सी सीख दें अपने आने पीढियों को, एक अमन, शांति और प्रेम का परिवार बना कर दे अपने बच्चों को, गलत विचार को हवा न दे………………….

vijendrasingh के द्वारा
August 22, 2010
भगवानबाबु जी अगर आपको लगता है कि मैंने आतंवादियों और नक्सलियों की निंदा करके बचपना किया हैं तो हो सकता है मै गलत हूँ लेकिन बचपना तो आपकी इस बात मै भी है कि खूंखार नक्सलियों और आतंकवादियों को प्रेम की कमी ने हिंसा के रास्ता दिखाया , मै आपसे पूछता हूँ नक्सलियों के द्वारा हज़ारों नागरिक और अर्ध सैनिक बलों कि हत्या की गई , शासकीय संपत्ति को भरी नुक्सान पहुँचाया गया , अगर आप जैसे महान लोग सत्ता के शिखर पर हो तो क्या करेंगे ? सत्ता नक्सलियों को सौंप देंगे ? क्यूंकि ये बेचारे प्रेम के भूके नक्सली संगठन तो यही चाहते हैं कि पूरे देश में लाल झंडा फहराया जय केंद्र सरकार को गिराकर कब्ज़ा करना चाहते हैं , दूसरी और बेचारे आतंकवादी सिर्फ कश्मीर ही तो मांग रहे है फिर जम्मू मांगेंगे और फिर दिल्ली आप जैसे दानवीर कर्ण और प्रेम पुजारी तो आतंवादियों को कश्मीर और दिल्ली भी दे देंगे क्यूंकि आपकी नजर में तो ये भूखे भेड़िये जो आये दिन आम नागरिकों के साथ हमारी सेना और अर्ध सैनिकों को निशाना बनाते रहते है बेचारे प्रेम के प्यासे हैं भगवान् बाबूजी ये लोग खून के प्यासे हैं
bhagwanbabu के द्वारा
August 22, 2010
जनाब मै ये पूछता हूँ कि ये नक्सली क्या आसमान से आये है, अरे ये भी हमारे देश के देशवासी है, ये हमारे भाई है और कोई नही, सरकार की गलत नीतियाँ एक आम आदमी को नक्सली बनने पर मजबूर करती है !
और अमेरिका जैसे देश एक लादेन का सफाया नही कर सकते तो आप जैसे लोग इस आतंकवादी को खत्म करने के लिये एक और आतंकवादी पैदा कर सकते है और कुछ नही
आज के आतंकवादी और नक्सली का कोई मुद्दा नही है, इसमे न पडे, ये सब राजनीति है …..

आप मर्द है तो क्या कभी बाल ठाकरे के बारे मे नही सुना या पढा, ये हमारे देश के सबसे बडे लादेन है, जो अभी भी ये कह रहे है कि मुम्बई में बाहर से कोई न आये, मुम्बई क्या ठाकरे के बाप की जायदाद है, इस ठाकरे का सफाया करके दिखाईये तो मै समझूँगा कि आप देशभक्त और आतंकवादियो का सफाया करने निकले है।
vijendrasingh के द्वारा
August 22, 2010
भगवान् बाबूजी आपकी समस्या है की आप मूल प्रश्न से हटकर बात करते हैं मैंने यह नहीं लिखा की मैं आतंकवादियों को ख़त्म करने निकला हूँ क्यूंकि महत्वहीन बात किखने का क्या ओचित्य , और आप जैसे महँ आदमी के लिए नक्स्साली और आतंकवादी कोई मुद्दा नहीं है तो मै अब आपकी किसी प्रतिक्रिया पर जवाब नहीं दूंगा , और हाँ अगर मै सक्षम होता तो नक्सलियों और आतंकवादियों को राजनितिक और कूटनीतिक तरीके से ख़तम करता ,`नक्सली अपने प्रभाव वाले इलाकों में कोई भी विकास कार्य करने नहीं देते ,महिलाओं और बच्चों का इस्तेमाल हिंसा फैलाने और बम विस्फोट करवाते है सरकार के समानांतर सरकार चलते है सारी वन सम्पदा का दोहन अपने हथियारों को खरीदने में करते हैं अगर हथियार डालकर लोकतांत्रिक तरीके से बात करे तो नक्सलियों से कोई परेशानी नहीं है ये लोग जब संघर्ष विराम करते है तो उसका उलंघन वादी वारदात करके करते है अभी हाल ही में 150 से ज्यादा सी.आर.पी.ऍफ़. के जवानों की हत्या कर दी जिसमे मेरा भी एक अजीज दोस्त शहीद हुआ भगवान् बाबु जी आपका कोई करीबी जब ऐसे हमलों में शहीद होगा तब अहसास होगा नक्सली भाई हैं या दुश्मन और रही बात आतंवादियों की तो मेरी नजर में हर वो व्यक्ति या संगठन जो देश विरोधी कार्य करता है आतंकवादी है जिसका अपने मुल्क से कोई लेना देना नहीं है जो सिर्फ देश की संप्रभुता को चुनौती देता है हमारा भाई नहीं हो सकता, मेरी ये सोच है अब आपकी सोच आपके साथ, बाला साहेब ठाकरे की बात है तो वो एक राजनितिक है उनके जैसे राजनितिक हर प्रान्त में हैं जो अपनी प्रान्त की राजनीती के हिसाब से अपनी दाल रोटी कमा रहे हैं जब इस देश का युवा ठान लेगा कि मेरे देश कि क्या तस्वीर होना चाहिए तब ऐसा एक भी राजनेता नहीं बचेगा जो जनसेवा की बजाय स्वयं की सेवा करता हो ………जय हिंद जय भारत..वन्दे मातरम्
Mahendra Mishra के द्वारा
August 31, 2010
आतंकवादीयो से हम प्रेम करें और वे हमे प्रेम से गोली मार के चले जाये हा हा हा
प्रेम से हमे कश्मीर को पाकिस्तान को दे देना चाहिए क्योंकि हमे हिंसा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए हा हा हा
भारत सरकार की नीतियों की वजह से हिन्दू आज इतना डरा हुआ है की अगर १० हिन्दू खड़े रहे और १ मुस्लमान आ जाये तो सारे हिन्दू भाग जाते हैं क्योंकि उन्हें मालूम है की मुस्लमान कितना हिंसक होता है तलवार लेकर मारर्ने में जरा भी वक्त नहीं लगाएगा

vikky के द्वारा
August 20, 2010
भाई मनोज जी, मैं विक्रम ( vikram.malani@rediffmail.com) पर आप का इंतज़ार कर रहा हूँ. जल्द से जल्द संपर्क करने की कोशिश करे.
आप की जानकारी के लिया जब तक इस धरती पर एक भी इन्सान इस कुरान को मानने वाला होगा तब तक इस धरती पर से दंगे / फसाद / अत्याचार / मार काट / आतकवाद का मिटना असंभव ! असंभव ! ! असंभव ! ! ! है

आज इस धरती पर कितने मुस्लिम देश है,बस सब इस कुरान की वजह से हे तो, भाई आप तो जानते ही है किया सिखाता है कुरान “बाप को मरो और खुद गद्दी पर बैठ जाओ”
आज इनकी देखा देखी कुछ हिन्दू भाई भी इनके जैसा स्वार्थ पूर्वक आचरण कर रहे है, पर अब आज का हिन्दू नवजवान धीरे धीरे जागरूक हो रहा है.
भाई, किर्पया जल्द से जल्द संपर्क करें.
जय हिंद !
वन्देमातरम ! !
भारत माता की जय ! ! !

vijendrasingh के द्वारा
August 20, 2010
राजिंदर जी आपने शायद आज की खबर नहीं पढ़ी -
जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में सिख समुदाय के लोगों को ‘इस्लाम ग्रहण करने या घाटी छोड़ने’ की कथित धमकी दिए जाने के मुद्दे पर लोकसभा में सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने शुक्रवार को सिख समुदाय को आश्वासन दिया कि केंद्र इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृति रोकने के लिए हर जरूरी कार्रवाई करेगा।
शिरोमणि अकाली दल के सदस्यों ने सुबह सदन की बैठक शुरू होते ही यह मामला उठाया। इसके जवाब में मुखर्जी ने कहा कि न केवल कश्मीर, बल्कि पूरा देश सिख समुदाय के साथ है। मुखर्जी ने कहा कि आतंकियों और चरमपंथियों का एक छोटा सा समूह सांप्रदायिक अशांति पैदा कर रहा है।
उन्होंने कहा कि मैं सदस्यों को आश्वासन दे सकता हूं कि इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृति नहीं हो, इसके लिए सरकार हर जरूरी कदम उठाएगी। इससे पूर्व सुबह सदन की बैठक शुरू होते ही शिरोमणि अकाली दल के सदस्य रतन सिंह अजनाला की अगुवाई में अध्यक्ष के आसन के समक्ष आकर यह मुद्दा उठाने लगे जिस पर अध्यक्ष मीरा कुमार ने उन्हें अपने स्थान पर जाकर अपनी बात रखने को कहा। अजनाला ने यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि सिख समुदाय के 60 हजार लोग श्रीनगर में रहते हैं, लेकिन अब उन्हें धमकी दी जा रही है कि या तो इस्लाम धर्म ग्रहण करो या घाटी छोड़ कर चले जाओ।
अजनाला ने कहा कि सिख समुदाय का एक बहादुर और देशभक्त कौम है जिसने मुगलों के जमाने से लेकर आपातकाल तक संघर्ष किया है। उन्होंने कहा कि सिख समुदाय के लोग अपनी जान दे देंगे, लेकिन इस्लाम ग्रहण नहीं करेंगे। नेशनल कांफ्रेंस के डा. महबूब बेग ने अजनाला के साथ एकजुटता दिखाते हुए कहा कि यह एक संजीदा मसला है और वह अजनाला के जज्बात को समझते हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की धमकी कश्मीरीयत के खिलाफ है और कश्मीर का हर मुसलमान अपने सिख भाइयों की रक्षा के लिए लड़ेगा।
उन्होंने कहा कि कश्मीर का मुसलिम समुदाय कश्मीर की धरती पर कभी इसकी इजाजत नहीं देगा। इससे पूर्व, संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल ने भी अकाली दल के सदस्यों को शांत करने का प्रयास करते हुए कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि सिख बेहद देशभक्त कौम है।

राजिंदर जी ये धमकी कोई हिन्दू संगठन नहीं दे रहे बल्कि आपके प्रिय मुस्लिम आतंकवादी दे रहे है अब जरा गौर कीजिये हिन्दू किसी का दुश्मन नहीं है
Rajinder Kaur के द्वारा
August 20, 2010
मुझे मुसलमानों से कोई प्यार नहीं है लेकिन ऐसी नफरत भी नहीं है जैसी यहा ज़ाहिर की जा रही है ,, वह भी भारत वासी है ,, और 99% से ज़्यादा शांति से भारत मे रह रहे है,, मैं एक मानव से सिर्फ धर्म या इतिहास के आधार पर नफरत नहीं कर सकती,,
atharvavedamanoj के द्वारा
August 24, 2010
bhin rajindar kuar ji to mujhse baat hi nahi karna chahati. aap unse sirf inta pucha lijiyega ki
sikh panth ki sthapna ka udyeshya kya tha
vandemataram
vijendrasingh के द्वारा
August 20, 2010
वन्दे मातरम् ….
मनोज जी आपका लेख पढने में मज़ा आया लेकिन आपसे मुलाकात हो तो …………?

atharvavedamanoj के द्वारा
August 27, 2010
मुलाकात भी हो जाएगी विजेंद्र जी.
वैसे आप रहते कहाँ हैं?
Rajinder Kaur के द्वारा
August 20, 2010
आप ने जिन घटनाओ का विवरण दिया वह तो इतिहास है !! वर्तमान की बात करो तो स्पष्ट है
की १०,००० ( सरकारी फिगुर) से ज्यादा सिक्खों को किसने मारा,, उनके घर किसने लुटे, औरतो को किस ने बे इज्ज़त किया ,, अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में भी युवको ने एक सरदार के बाल काटे !! बंगलोरे / रायपुर में लडकियो को बाल पकड़ कर खीचा और मारा,, यह कौन सा हिंदुत्व है आप का !!

एक बात और मुस्लिम शासको ने जो भी किया सत्ता / हुकूमत के लिए किया था,, उनके दरबार में बहुत
से हिन्दू भी थे,, यहाँ तक की औरंगजेब का सेना पति भी हिन्दू था !! इस्लामिक सूफी संतो का इन दरबारों से कोई लेना देना नहीं था,, बल्कि यह भी इन के अत्याचार के शिकार हुए है !! “पता नहीं आप को यह छोटी से बात समझ में क्यों नहीं आती है की इन अत्याचारों के पीछे मज़हब नहीं था बल्कि सत्ता थी” !! कुरान मेरे पास भी है (नेट पर) आप जिन आयातों का ज़िक्र करते है उनमे कही भी नहीं लिखा है की यह नियम हमेशा के लिए है,, (वह एक सिमित गिरोह / समय के लिए थी) !!

सच्चे हिन्दू कट्टर भी नहीं होते है और न ही नफरत फैलाते है !! यह हिन्दू समाज की विशेषता है की यहाँ सभी धर्म आ कर पनपे !! नफरत फैलाने वाले (प्रज्ञा आदि ) बहुत कम है शायद ०.००००१ %
आप अन्य धर्म ग्रंथो / इतिहास से पहले अपने ग्रंधो एवं महापुरुषों की जीवनी देखे जिनहोने पूरा जीवन मानवता की सेवा में ( हिन्दू या मुस्लिम या सिख का भेद भाव किये बगैर ) बिताया शायद आप की सोच बदले और समाज का भी भला हो !!

मैंने जो कहना था कह दिया अब आप की समझ में न आये तो मैं कुछ नहीं कर सकती !!
vijendrasingh के द्वारा
August 20, 2010
राजिंदर जी आपके विचारों को पढकर लगता है कि आप हिन्दुओं और सिक्खों के बीच गहरी खाई पैदा करना चाहते हो ?
jalal के द्वारा
August 20, 2010
रजिंदर जी जिस 1984 के कत्लों की बात आप कर रहे हैं उस समय मैं करीब 4 साल का था. लेकिन आँखों ने वोह बर्बादी का मंज़र देखा था. हमारे घर में हमारे अब्बा के पंजाबी दोस्त वगैरा ठहरे थे.उनकी दूकान से हम राशन लेते थे. मुझे पूरी तरह याद है उन के चेहरों का डर, घर का टूटना, सामान का लूटना, और लोगों का क़त्ल होना क्यूंकि मेरी साईकिल उनकी दूकान के पास ही छूट गयी थी और घर में मना करने के बाद भी मैं चुपके से लाने गया था. और जिस पर बीतती है उसे ही मालुम है. beeti बात को bhool जाएँ isi में hamari bhalai है.
कोई धर्म किसी का दुश्मन नहीं है. लेकिन कुछ लोग, और संगठन धर्म के नाम पर कभी खून खराबा करना नहीं छोड़ते, वोह लगातार विवाद, नफरत, घृणा और झगडे पैदा करते रहते हैं. ऐसे लोगों का कोई धर्म नहीं होता. आप सभी से मेरा येही कहना है की ऐसे बहस बंद करें. हाँ जानकारी चाहिए तो जाइये जानकारों के पास खुल के बात कर के आयें. इधर आकर झगडे न फैलाएं. इसका मतलब सिर्फ एक ही है फिर झगडे, और हजारों लाखों की मौत. बेशक इस तरह की हरकत को कोई भी जायज़ नहीं ठहरा सकता. तो फिर विवाद न फैलाएं.
और मनोज जी आप इस्लाम के बारे में jaanna chaahte हैं ऐसा lagta है, आप जाकिर नायक के महफ़िलों में जाएँ और खुला सवाल करें जैसे मुस्लिम और गैर मुस्लिम सभी करते हैं तो आप को जानकारी ज़रूर हो जायगी इस्लाम के बारे में. adhoori और galat jaankari dekar mahaul और bigad jaata है. किसी के धर्म पर ungli uthate समय yah न bhoolen एक ungli उन के taraf तो teen ungliyan आप के taraf hoti हैं.हर किसी को धर्म चुनने के आजादी है, इसे ज़बरदस्ती किसी पर थोपा नहीं जा सकता. यहाँ पर भड़ास खुद ही समझ कर खुद ही निकलने में कोई फायदा नहीं. आशा है आप से के सही कदम उठाएंगे.

Rajinder Kaur के द्वारा
August 20, 2010
कितना अच्छा होता की अगर आप यही बात मनोज जी के लिए भी लिखते !! अगर आप का जनम १९८४ के बाद हुआ है तो आप शायद उस दर्द को महसूस नहीं कर सकते !! मनोज जी जैसे लोग ही
हिंदुत्व को बदनाम करते है और भारत देश की बदनामी विदेशो तक कराते है… वह अपनी हिंसा को प्रतिक्रिया कहते है !! धर्म ग्रंथो की बात करते है ,, आप बताइए की शुद्रो के बारे में क्या क्या लिखा है
अभी कुछ दिनों पहले up में एक दलित रसोइये का समाचार तो आप ने देखा होगा !! जितना धर्मान्तरण हिन्दुओ में है किसी और धर्म में क्यों नहीं !! छुआ छोट , भेद भाव , दलित उत्पीडन , दहेज़ प्रथा, औरतो को जलाना आदि पर पहले विचार करना चाहिए !! खाई मैंने नहीं बल्कि १९८४ में कथित प्रतिक्रिया ने पैदा की है वह भी सब से नहीं केवल कट्टर पंथियों से !! कट्टर पंथ हर समाज में है और उस समाज की ज़िम्मेदारी है उस पर वार करने की और ख़तम करने की ना की दुसरो पर ऊँगली उठाने की !! २१ वि शताब्दी में इस तरह के विचार और लेख समाज को और पीछे ही ले जाएगे,,, क्या इन के पास और कोई विषय नहीं है सिवाए नफरत भैलाने के और समाज को बाटने के…… यह हम सब भारत वासियों की ज़िम्मेदारी है की कट्टरपंथ का विरूद्ध करे और समाज में एकता और भाई चारा बढाए !! इतिहास में अच्छे बुरे सभी उदहारण है सभी धर्म के मानने वालो के !! करीब करीब हर देश का रक्त रंजिन इतिहास है जब तक वह राजा महाराजो के अधीन था !! जैसे जैसे समाज विकसित हुआ यह सब चीज़े ख़तम हो गयी !! यूरोप में तो चर्च से कथोलिक और प्रोटेस्टेंट को मारने का आदेश जारी होते थे लकिन आज उन्हों ने अपने को विकसित किया !! हमारे वहां क्यों इतिहास में ही जिया जा रहा है और uske उदहारण de कर देश में नफरत की lahar पैदा की जा rahi है !!

jalal के द्वारा
August 20, 2010
rajinder ji yeh maine aapke liye nahi kaha balki sabke liye kaha hai. aur aapke liye yahi kaha ki in sab baaton ke liye apna keemti samay aisi bematlab ki bahas par barbaad naa kaaren.
anjaane mein bhi agar mujhse kisi ko dukh pahunche to mujhe zaroor batayen taaki main use jaan sakoon ya sudhar sakoon. hamesha achche ke liye taiyaar rahoonga.
aapka dost
dhaynwaad

Rajinder Kaur के द्वारा
August 20, 2010
जलाल जी ,,
यह बात आप से नहीं बल्कि मैंने विजयेन्द्र सिंह जी से कहा था जो कह रहे थे की मैं हिन्दुओं और सिक्खों के बीच गहरी खाई पैदा करना चाहती हूँ !!

vijendrasingh के द्वारा
August 20, 2010
राजिंदर जी मुझे यह ज्ञात नहीं आपने १९८४ के दंगों में क्या खोया ? किन्तु अगर आपको अगर बुरा ना लगे तो मैं आपसे वो कारण जानना चाहता हूँ जिसकी वजह से आप हिन्दुओं को १९८४ दंगों का आरोपी मानती हैं मैं आपसे अपने ह्रदय की गहराइयों से कहता हूँ जितनी पीड़ा आपको उस समय की हिंसा को लेकर है मुझे भी है मेरा मानना है की जिसने दंगों में किसी को खो दिया उससे बड़ी पीड़ा किसी और को नहीं हो सकती , किन्तु उस तकलीफ को महसूस किया जा सकता है अपने भावनात्मक दायरे को बढाकर! आज हमारा देश कई प्रकार की हिंसा के दौर से गुजर रहा है जैसा सभी को ज्ञात है एक तरफ हमें आतंकवादी और अलगाववादियों से जूझना पद रहा है तो दूसरी तरफ नक्सलियों ने तांडव मचा रखा है वहीँ महँगाई की मार से पूरा देश हाहाकार कर रहा है कहीं खेलों के नाम पर तो कहीं राशन और चारे के नाम पर घोटाले हो रहे हैं मैं पुनः दोहराता हूँ मै यह नहीं कहता की सभी मुस्लिम भाई हिंसक होते हैं किन्तु हिंसक मुस्लिमों की संख्या बहुत ज्यादा है कहीं पर बर्बर तालिबान हैं तो कहीं हिज्ज्बुल मुजाहिद्दीन और अल कायदा है क्या ये संगठन मानव जाती के दुश्मन नहीं है ? अगर हम बात हमारे देश की करें तो अगर गुजरात की हिंसा पर आपको आपत्ति है तो जो ट्रेन जलाकर मर दिए गए वो हिन्दू इंसान नहीं थे ? १९९२ मुंबई सीरिअल बम विस्फोट मै मारे गए लोग इंसान नहीं थे? सन २००५ माता वैष्णों देवी की यात्रा प् जा रहे 35 यात्रियों की आतंकवादियों द्वारा गोली मरकर हत्या कर दी गई क्या वो इंसान नहीं थे ?कश्मीरी पंडितों को डरा धमकाकर मारकर और उनकी बहु बेटियों की लाज लूटकर उन्हें कश्मीर छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया क्या वो उचित था ?आज सिक्खों को धमकी दी जा रही है या तो इस्लाम धर्म क़ुबूल करो या फिर कश्मीर छोड़ो क्या ये उचित है राजिंदर जी उपरोक्त बैटन मै एक बात समान है वो है किसी संप्रदाय विशेष द्वारा किसी संप्रदाय या संगठन द्वारा की गई हिंसा किसी भी मायने मै अनुचित है
satyamkumar के द्वारा
August 20, 2010
आपने बहुत ही अच्छा लेख लिखा है
आपने हिन्दू धर्मं कों बहुत ही अच्छे तरीक़े से बताया है
इस्लाम मजहब तो सिर्फ मार कट पर ही आधारित है

atharvavedamanoj के द्वारा
August 20, 2010
धन्यवाद सत्यम जी|
एसा नहीं है की मेरी इस्लाम से कोई दुश्मनी है, लेकिन जिन आयतों का मैंने हवाला दिया है|
उन पर भारतीय मुसलमानों को सख्त एतराज करना चाहिए|
सामाजिक समरसता का वातावरण हठ धर्मिता को त्यागने में ही है|
विश्व के सारे मुसलमान भारतीय मुसलमानों को हेय दृष्टि से देखते हैं लेकिन मौलाना सुनते ही नहीं|
वन्देमातरम
vijendrasingh के द्वारा
August 20, 2010
मनोज जी सारगर्भित लेख के लिए ह्रदय से आपको धन्यवाद देता हूँ और अपेक्षा करता हूँ आप मंच पर ऐसे ही सुन्दर लेख लिखते रहेंगे.
atharvavedamanoj के द्वारा
August 20, 2010
बहुत बहुत धन्यवाद् विजेंद्र जी,
देख रहें हैं न यहाँ तो तथ्य प्रस्तुत करना भी गुनाह है,अपने ही विरोधी बन जाते हैं,
कोई बात नहीं ”जो drinh राखे धर्म को, तेहि राखे करतार”
वन्देमातरम
Rajinder Kaur के द्वारा
August 19, 2010
सिख एक अलग मज़हब है ,, यह हिन्दू धर्म का अंग नहीं है !! नानक जी ने स्पष्ट कहा है की मैं ना हिन्दू हो और ना मुस्लमान !! इसके अलावा हमारे और आप के बीच बहुत कम धार्मिक समानताये है!! हैं यह सही था की सिख हमेश सबसे मिल जुल कर रहते थे !! आप की जानकारी के लिए बता दे की गुरु नानक के एक शिष्य मरदाना मुस्लमान थे !! स्वर्ण मंदिर की बुनियाद भी गुरु अर्जुन देव ने एक मुस्लिम सूफी संत हज़रात मिया मीर के हाथो रखवाई थी जो गुरु के प्रिय मित्रो में से थे !! इस के अलावा बाबा फरीद के भक्तो में बड़ी संख्या सिख समुदाय की है !! इतिहास गवाह है की मुस्लिम सूफी संतो से सिखों का गहरा लगाओ रहा है और इन संतो का भी सिख समाज से !! यदि आप गोधरा की प्रतिक्रिया को जाएज़ करार दे सकते है ( ५९ के बदले हज़ारो ) , तो आप किस नैतिकता से दुसरो की हिंसा को गलत कहते है ,, सारे बदले सारी प्रतिक्रिया लेने का अधिकार सिर्फ आप ही को है क्या,, चाहे १९८४ हो, १९९२ हो कंधमाल हो या गुजरात !! एक बात और जो आप ने लिखा है की अगर हज़रात जिंदा होते तो ना जाने कितनी बार यह आयत नाजिल होती तो यह ऐसा ही है की अगर हिल्टर जिंदा होता तो हर बार विश्व युद्ध होता,, अगर रावन होता तो हर साल लंका जलाई जाती, अगर कौरव होते तो हर साल महा भारत होता !! कृपया अगर मगर के तर्क दे कर अपनी बातो को सही साबित न करे !! यदि वाहे गुरु ने आपको यौगता दी है तो अच्छे लेख लिखे जिस से देश और समाज का भला हो !! एक बात और शायद आप के सिख मित्रो से कही ज्यादा मेरे हिन्दू मित्र है और मित्र ही नहीं भाई है जो इस तरह के कट्टरपंथ के खिलाफ है और इस तरह के किसी भी प्रयास को जो आपस में दुरिया पैदा करे पसंद नहीं करते है !! यही हमारे देश की विशेषता है !!
वैसे एक श्लोक जो मैंने अयोध्या में जाते वक़्त देखा था बिलकुल ठीक है !
“जाकी रही bhaawna jaisi prabhu murat tis dekhe waisi” –

yaani jo man me jaisi bhaawna rakhta hai prabhu ki murat usko waisi hi dikhti hai
yadi bhaawna sahi nahi hai to achche cheez bhi galat hi dikhe gi….

vijendrasingh के द्वारा
August 20, 2010
राजिंदर जी आपके द्वारा पोस्ट किये गए सभी जवाबों से ऐसा लगता हे आपको अपने मज़हब से कोई लेना देना नहीं है लेकिन जहाँ हिन्दू समर्थक बात होती हैं वहां पर आपकी तल्ख़ टिपण्णी जरूर होती हैं इससे प्रतीत होता है की आप को हिन्दू समाज एवं धर्म से नफरत है साथ ही मुस्लिम समाज से मोहब्बत ,में कुछ सिक्खों को जानता हूँ जो गुरूद्वारे के साथ मंदिर जरूर जाते हैं साथ हिन्दू देवी देवताओं की पूजा भी करते हैं तो क्या ये लोग सिक्ख नहीं हैं
atharvavedamanoj के द्वारा
August 20, 2010
आप क्या सिद्ध करना चाहती हैं?
कबीर ने भी तो यही कहा था, तो क्या कबीर धर्म हो गए? शंकराचार्य भी तो यही कहते हैं तो शंकराचार्य धर्म हो जायेंगे? कृष्ण ने भी तो यही कहा की मैं कुछ न करता हुआ भी कर्म मैं ही बरतता हूँ तो कृष्ण धर्म हो गएँ? क्या रविदास धर्म हैं? दादू दयाल भी धर्म होने चाहिए|धर्म और पंथ का स्पष्ट अंतर पता करके आइयेगा, फिर अपने तर्क रखियेगा| क्या सिक्खों की मुसलमानों से भी पंथिक समानताएं हैं? सच को ढकने का प्रयास मत करिये, यह बहुत तीक्ष्ण और असह्य होता है|बहुत कम लोग ही इसका सामना कर पाते हैं| हिन्दुओं के सारे पंथ वैष्णव,शैव,कबीरपंथी, नानकपंथी,रैदासपंथी,बौद्ध,जैन इत्यादि आपस में मिलजुल कर ही रहते हैं| इस बात की शिक्षा कुरान में भी तो डालने का प्रयास कीजिये,आपको आटे-दाल का भाव पता चल जाएगा|
बहुत से सनातनी हिन्दू भी साईं बाबा की पूजा करते हैं और गाजी मियां की मजार पर चादर चढाते हैं,बिना यह जाने कि सलार मसूद गाजी कौन था और अगर महाराजा सुहेलदेव न होते तो क्या होता? तो क्या इतने भर से कुरान कि मान्यताएं बदल जाएँगी?
कृपया उस समय कि राजनैतिक मजबूरी और सनातन सहिष्णुता पर सिख और मुस्लिम एकता का मुल्लमा न चढ़ाएं|
और कह दें कि बांदा बैरागी को क़त्ल करने वाला फर्रुख्सियर कोई सनातनी था? अथवा १७०८ में नान्दौर में गोदावरी तट पर दशम गुरु साहिब को छुरा मरने वाला भी कोई सनातनी ही था.
छोटे छोटे बच्चों को जिन्दा दीवाल में चिनवा देने वाला भी हिन्दू ही रहा होगा. ताज्जुब है मैंने इतनी लम्बी लिस्ट दे दी और आपको इनमे सच ही नजर नहीं आया.
atharvavedamanoj के द्वारा
August 20, 2010
आपने सूफियों की तो चर्चा की है किन्तु उनके मिसलों के बारे में नहीं बताया और अनलहक कहने वालों को किस तरह से पत्थरों पर पटक पटक कर मार डाला गया,जरा इसकी भी चर्चा कर दें|
कुरान एक हक को माता है मोहतरमा १ करोंड़ हक को नहीं,
नैतिकता और अनैतिकता का अंतर मैं स्पष्ट रूप से समझता हूँ| कृपया पहले पूरा पढ़ लें फिर कमेन्ट लिखें|गुजरात को जायज मैंने कहीं भी नहीं ठहराया है,लेकिन इतना अवश्य है की क्रिया की प्रतिक्रिया प्रकृति का शाश्वत नियम है|कुरान में हिंसा है इसीलिए मेरी लेखनी से हिंसात्मक विचार निकल रहे हैं, अन्यथा मैं इस तरह की धृष्टता करता ही नहीं|
५९ लोगों के बदले हजारों लोगों का विनाश अधर्म है किन्तु शवयात्रा लेकर जाते हुए लोगों पर पथराव करना कौन सा धर्म है, यह आप ही मुझे बताएं| एक सच्चा हिन्दू अपने जीवन में एक चींटी भी नहीं मारता तो क्या सांप को भी खुला छोड़ देना चाहिए?
शयद बीजगणित आपने नहीं पढ़ा|यह अगर मगर न होता तो न आप होती और न मैं होता|
आपके हांथो में कंप्यूटर या लैपटॉप चाहे जो भी हो और मेरे हांथो में g p r s मोबाईल इसी अगर मगर की यात्रा करते हुए ही पहुंचा है|
और क्या हिटलर के बिना भी विश्व युद्ध हो सकता था? लंका फुकने में लिए हनुमान जी को मजा आता था? और अर्जुन बिना मतलब के महाभारत करते.आप कहना क्या चाहती हैं क्या कृष्ण जबरदस्ती भड़काने में विश्वास रखते हैं| जाईये पहले गीता पढ़िए कुरान पढ़िए तब आईयेगा| स्वयंसिद्ध अगर आपके पास हो तो लाइए अन्यथा अपनी बकवास बंद कीजिये|
वाहे गुरु ने हमें इसीलिए योग्यता दी है की मैं झूठ का सामना कर सकूं और जब भी उन्हें एसा लगेगा की मैं गलत कर रहा हूँ वह अपनी कुदरत से मुझे महरूम कर देगा|
हम आइना हैं दिखायेंगे दाग चेहरों के,
जिसे खराब लगे सामने से हट जाए|
आपको अगर अभी भी लगता है कि हिन्दू और सिक्ख जुदा जुदा हैं तो ”एक ओंकार सतनाम” को ग्रन्थ साहिब से हटा दीजियें क्योंकि ”ओमित्येकाक्षरं ब्रम्ह” हिन्दुओं के नाम पेटेंट है, आप झूठी सिक्ख हैं, और कुछ नहीं,
अल्लाह के आध्यात्मिक रूप को सूफियों,संतो और मौलवियों पर छोड़ दीजिये और थोडा कुरान का राजनैतिक रूप भी देख लीजिये| मैं पहले उतना कट्टर नहीं था जितना कुरान पढने के बाद हो गया हूँ,
प्रभु मूरत कि बात जरा उनको भी समझाइए जिनकी केवल सूरत ( सूरा ) में आस्था हैं किसी और मूरत या सूरत में नहीं.
रब राखा, वाहे गुरु
Mahendra Mishra के द्वारा
August 31, 2010
माँ दुर्गा हिन्दू धर्मं की देवी है तो क्यों सिक्ख लोग उन्हें पूजते है आपके अनुसार सिक्खों को माँ दुर्गा को नहीं पूजना चाहिय क्योंकि सिक्ख और हिन्दू अलग अलग है ?
anand kumar के द्वारा
August 31, 2010
boss सायद तुम नहीं जानते सिख धर्म की स्तापना हिन्दुओ को किसी से बचने के लिए हुई thi
Rajinder Kaur के द्वारा
August 18, 2010
कृपया सिक्खों को शामिल न करे !! पूरी दुनिया जानती है की १९८४ में सिक्खों को जिंदा किसने जलाया
उनकी बेटियों की इज्ज़त किसने लूटी,, गुजरात में क्या हुआ यह सब सामने है,, किताबो में क्या लिखा है वह एक अलग बात है दुनिया तो वह देखती जो सामने दीखता है ! यदि आप इस्लाम के पहले का इतिहास देखे तो भी राजाओ महाराजाओं के ऐसे अत्याचार देखने को मिलेगे की विश्वास नहीं होगा !! जब
बौध धर्म आया तो यहाँ उनके अनुयायियों को खौलते तेल में जिंदा डाल दिया जाता था !! महाभारत
आदि के समय भी क्या इस्लाम ही ज़िम्मेदार था लड़ाई झगडे के लिए ?? दोनों विश्व युद्ध इसाइयों
ने लड़े !! LTTE क्या मुसलमानों का था ,, इरिश rep आर्मी क्या इस्लाम की है ?? ,, कभी इन्टनेट पर आतंकवादी घटनाओ को सर्च कीजिये,, आप को खुद उत्तर मिल जाये गा !!

वक़्त की ज़रुरत है की पुरानी बातो को भुला कर देश में शांति स्थापित की जाए और एकता !! कृपया ऐसे लेख लिखे जो देश में शांति और एकता लाये !! इस तरह के भड़काओ, झूठे तथ्यों और आधारहीन
लेख से कुछ भला होने वाला नहीं है !! अपने इस कृत्य में सिख समाज को तो एकदम शामिल ना करे !!

atharvavedamanoj के द्वारा
August 19, 2010
बस इसी का तो इंतजार ही था|लो अब इतिहास की उटपटांग व्याख्या करने वाले लोग भी आ गए|
इसे और क्या कहूं?
“आज्ञा भई अकाल की तभी चलायो पंथ,सब शिष्यन को हुकुम है गुरु मानियो ग्रन्थ ” तो आपको याद ही होगा|
आप जो कुछ भी कहेंगी वह तार्किक, तथ्यपूर्ण और मैं लाख तर्क रखू,तथ्य प्रस्तुत करूँ तो वह आधारहीन,भ्रामक और त्रुटिपूर्ण|वाह रे वाह,
”हम आह भी भरते हैं तो हो जाते है बदनाम,वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती” सिख पंथ हिन्दू समाज का अभिन्न अंग है और अगर मैंने इसे हिंदुत्व की तलवार कह दिया तो कोई गलत नहीं कहा|
atharvavedamanoj के द्वारा
August 19, 2010
गुजरात से पहले गोधरा के बारे में तो आपने नहीं लिखा है?खैर, जितने भी लोग गुजरात में प्रतिक्रियास्वरूप मारे गए उससे अधिक लोग तो रोज रोड एक्सिडेंट में हालाक हो जाते हैं|आप जाती हैं सबके घर रोज खोज खबर लेने के लिए?
मैं गुजरात की बड़ाई नहीं कर रहा और न ही मैं बीजेपी का कोई कार्यकर्ता हूँ<और जो कुछ भी वहां पर हुआ महज प्रतिक्रिया स्वरुप हुआ|
मैं आपसे पूछता हूँ की अगर आप kisi बिल्ली को कमरे में बंद कर दे और खुद दरवाजे पर कड़ी हो जाये,उसके बाहर निकलने के सारे रास्ते बंद कर दे,तो क्या वह खिसिया कर झपट्टा भी नहीं मारेगी?
१९८४ की बात करती हैं. इससे पहले सिख और हिन्दू अलग अलग हैं इस तरह का दुष्प्रचार किसने किया था?
हमारे नानक का जन्म जहाँ पर हुआ अज वह ननकाना शत्रु देश में है|
गुरु गोविन्द सिंह ने जिस चंडी का ध्यान करते हुए ‘चंडी शतक ‘ लिखा था,उनके ५१ शक्ति पीठों में अधिकांशतः पाकिस्तान में है| ”नमो उग्रदंती,jayanti सवैया नमो जोग जोगेश्वरी जोगमैया”
तो याद ही होगा न आपको|
इतना सब होते हुए भी अलग खालिस्तान की मांग किसने की थी?
१९८४ में जिसने भी गुरु पन्थानुयायियो पर अत्याचार किया< उन्हें एसी सजा दी जानी चाहिए की शैतान की भी रूह काँप उठे|
atharvavedamanoj के द्वारा
August 19, 2010
दुनिया क्या देख रही हैं यह मैं भी जानता हूँ और आप भी जानती हैं|जिस चीज को बेडरूम में होना चाहिए वह चौराहे पर लाया जा रहा है और जिसे चौराहे पर होना चाहिए वह बेडरूम मैं घसीटा जा रहा है|यह तथ्य नहीं पता है क्या आपको? दुनिया वही देखती है जो उसे दिखाया जाता है और काल्पनिकता की ओर तेजी से आकृष्ट होती है| सच का सामना करने में डर लगता है न|
किस रजा महाराजा ने विश्वास के नाम पर अत्याचार किया?
बौद्ध पंथ के संदर्भ में शशांक के अलावां कोई उदहारण नहीं मिलेगा| लीजिये नाम भी बता दिया आपको.पता लगा ले|
महाभारत के समय इस्लाम का जन्म भी नहीं हुआ था| यह दो भाइयों के बीच लड़ा गया धर्म और अधर्म का युद्ध था और इसके बाद कब कहा गया की कृष्नानुयाई बन जाओ नहीं तो काट दिए जाओगे|
LTTE के गठन से पहले श्री लंका के सिंहलियों की कारस्तानी भी लिखियेगा और यह किसी एसे ग्रन्थ पर आधारित संगठन नहीं है जो हिंसा को खुल्लमखुल्ला प्रोत्साहित करती हो|
घबराईये मत इन्टरनेट पर सर्च करता ही रहता हूँ,यहाँ सच बोलने वाले लोग अल्पमत में है| कोई बात नहीं एक अकेला सूर्य ही अन्धकार को भगाने के लिए काफी है.
क्या भारतीय मुसलमानों का अपना कोरान नहीं होना चाहिए.विचार करके देखिएगा , जिसमे हिंसा के लिए कहीं कोई स्थान न हो| यकीं जानिये जिस दिन भी एसा हो गया न. वह दिन धर्मान्धता के लिए आखिरी होगा. विचार करके देखिएगा अद्भुत आनंद आएगा|
आप सिखों को मेरे विरुद्ध भड़काना छोड़ दीजिये.मेरे बहुत सिख मित्र है.जो न सिर्फ मेरी बातों से सहमत है बल्कि मेरे मति के अनुरूप हैं.
अंत में we can not sit back and relax when our nation is at stake.
वाहे गुरु.
कृपया मुझे मेरे मूल विषय से मत भटकाइए. विश्वास न हो तो खुद भी एक कुरान खरीद लीजियेगा. आपको पता चल जाएगा
Rajinder Kaur के द्वारा
August 19, 2010
सिख एक अलग मज़हब है ,, यह हिन्दू धर्म का अंग नहीं है !! नानक जी ने स्पष्ट कहा है की मैं ना हिन्दू हो और ना मुस्लमान !! इसके अलावा हमारे और आप के बीच बहुत कम धार्मिक समानताये है!! हैं यह सही था की सिख हमेश सबसे मिल जुल कर रहते थे !! आप की जानकारी के लिए बता दे की गुरु नानक के एक शिष्य मरदाना मुस्लमान थे !! स्वर्ण मंदिर की बुनियाद भी गुरु अर्जुन देव ने एक मुस्लिम सूफी संत हज़रात मिया मीर के हाथो रखवाई थी जो गुरु के प्रिय मित्रो में से थे !! इस के अलावा बाबा फरीद के भक्तो में बड़ी संख्या सिख समुदाय की है !! इतिहास गवाह है की मुस्लिम सूफी संतो से सिखों का गहरा लगाओ रहा है और इन संतो का भी सिख समाज से !! यदि आप गोधरा की प्रतिक्रिया को जाएज़ करार दे सकते है ( ५९ के बदले हज़ारो ) , तो आप किस नैतिकता से दुसरो की हिंसा को गलत कहते है ,, सारे बदले सारी प्रतिक्रिया लेने का अधिकार सिर्फ आप ही को है क्या,, चाहे १९८४ हो, १९९२ हो कंधमाल हो या गुजरात !! एक बात और जो आप ने लिखा है की अगर हज़रात जिंदा होते तो ना जाने कितनी बार यह आयत नाजिल होती तो यह ऐसा ही है की अगर हिल्टर जिंदा होता तो हर बार विश्व युद्ध होता,, अगर रावन होता तो हर साल लंका जलाई जाती, अगर कौरव होते तो हर साल महा भारत होता !! कृपया अगर मगर के तर्क दे कर अपनी बातो को सही साबित न करे !! यदि वाहे गुरु ने आपको यौगता दी है तो अच्छे लेख लिखे जिस से देश और समाज का भला हो !! एक बात और शायद आप के सिख मित्रो से कही ज्यादा मेरे हिन्दू मित्र है और मित्र ही नहीं भाई है जो इस तरह के कट्टरपंथ के खिलाफ है और इस तरह के किसी भी प्रयास को जो आपस में दुरिया पैदा करे पसंद नहीं करते है !! यही हमारे देश की विशेषता है !!
वैसे एक श्लोक जो मैंने अयोध्या में जाते वक़्त देखा था बिलकुल ठीक है !
“जाकी रही bhaawna jaisi prabhu murat tis dekhe waisi”

vijendrasingh के द्वारा
August 20, 2010
राजिंदर जी १९८४ में जो हुआ वो किसी भी तरह से निंदनीय है पर क्या छोटी छोटी बात पर तोड़फोड़ करना , बसों में आग लगा देना ,ट्रेन को रोक कर तोड़ फोड़ करना , गुरु राम रहीम के विरोध के लिए सरकारी संपत्ति को भारी नुक्सान पहुचाना ,किसी अन्य देश में की गई गलत टिपण्णी या गलत हरकत के बदले अपने देश को हिंसा के हवाले कर देना कहाँ तक सही है भारतीय इतिहास में सिर्फ एक बार सिक्खों के खिलाफ सन १९८४ में हिसा हुई वो भी किसी हिन्दू संघठन ने नहीं की ( जगदीश टाइटलर ,सज्जन सिंह ) हिन्दू समाज के नेता या धर्म गुरु नहीं है ये उस पार्टी के नेता हैं जिस पार्टी की आज केंद्र में सरकार है और माननीय प्रधानमंत्री एक सिक्ख ,और उप रास्ट्रपति एक मुस्लिम हैं आपकी परेशानी सिर्फ इतनी है की कहीं भी हिन्दू धर्म की बात हो तो आपको तकलीफ होती है मेरा आपसे निवेदन है बंद करो ये हिन्दुओं की खिलाफत ?
vijendrasingh के द्वारा
August 20, 2010
राजिंदर जी LTTE और इरिश rep आर्मी मुलिम संघठन नहीं हैं पर हिज्ज्बुल मुजाहिद्दीन,सिमी,अल काएदा , लस्कर ऐ तय्येबा , इंडियन मुजाहिद्दीन, ये सब शांति संघठन मुस्लिम हैं मैं यहाँ पर स्पस्ट कर देना चाहता हूँ की मैं मुस्लिमो के खिलाफ नहीं हूँ मेरा विरोध उन सभी देशद्रोही संगठनो से है जो आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त है वो चाहे खालिस्तान आतंकवादी हो या सिमी आतंकवादी हो या कोई और सभी निंदनीय है !
vikky के द्वारा
August 18, 2010
मनोज भाई, सबसे पहले तो मैं आप का तहे दिल से धन्यवाद् करता हूँ . इस मुद्दे को उठाने के लिए. आप शायद नहीं जानते आज मेरे जैसे कितने कितने लोगो को आप ने खुश कर दिया है,इस लेख के दुवारा और कितने लोगो की दुवायो के हक़दार हो चुके है आप.
मैं आप से बहुत प्रभावित हुआ हूँ. किर्पया करके मुझे अपना VALID इ:मेल i.d दीजयेगा,(मेरा E:Mail I.d है vikram.malani@rediffmail.com. बहुत कुछ आपके साथ Share करना है.
जागो आम हिन्दुस्तानियों जागो ! ! !
जय हिंद / वन्दे मातरम.

atharvavedamanoj के द्वारा
August 18, 2010
मुझे प्रसन्नता है,विक्की जी की सच की मशाल बुझने न पायेगी,
e mail se sampark karne की कोशिश करूँगा.
वन्देमातरम
anand kumar के द्वारा
August 31, 2010
काफिरों पर हमेशा रौब डालते रहो .और मौक़ा मिलकर सर काट दो .सूरा अनफाल -8 :112
2 -काफिरों को फिरौती लेकर छोड़ दो या क़त्ल कर दो .
“अगर काफिरों से मुकाबला हो ,तो उनकी गर्दनें काट देना ,उन्हें बुरी तरह कुचल देना .फिर उनको बंधन में जकड लेना .यदि वह फिरौती दे दें तो उनपर अहसान दिखाना,ताकि वह फिर हथियार न उठा सकें .सूरा मुहम्मद -47 :14
3 -गैर मुसलमानों को घात लगा कर धोखे से मार डालना .
‘मुशरिक जहां भी मिलें ,उनको क़त्ल कर देना ,उनकी घात में चुप कर बैठे रहना .जब तक वह मुसलमान नहीं होते सूरा तौबा -9 :5
4 -हरदम लड़ाई की तयारी में लगे रहो .
“तुम हमेशा अपनी संख्या और ताकत इकट्ठी करते रहो.ताकि लोग तुमसे भयभीत रहें .जिनके बारेमे तुम नहीं जानते समझ लो वह भी तुम्हारे दुश्मन ही हैं .अलाह की राह में तुम जो भी खर्च करोगे उसका बदला जरुर मिलेगा .सूरा अन फाल-8 :60
5 -लूट का माल हलाल समझ कर खाओ .
“तुम्हें जो भी लूट में माले -गनीमत मिले उसे हलाल समझ कर खाओ ,और अपने परिवार को खिलाओ .सूरा अन फाल-8 :69
6 -छोटी बच्ची से भी शादी कर लो .
“अगर तुम्हें कोई ऎसी स्त्री नहीं मिले जो मासिक से निवृत्त हो चुकी हो ,तो ऎसी बालिका से शादी कर लो जो अभी छोटी हो और अबतक रजस्वला नही हो .सूरा अत तलाक -65 :4
7 -जो भी औरत कब्जे में आये उससे सम्भोग कर लो.
“जो लौंडी तुम्हारे कब्जे या हिस्से में आये उस से सम्भोग कर लो.यह तुम्हारे लिए वैध है.जिनको तुमने माल देकर खरीदा है ,उनके साथ जीवन का आनंद उठाओ.इस से तुम पर कोई गुनाह नहीं होगा .सूरा अन निसा -4 :3 और 4 :24
8 -जिसको अपनी माँ मानते हो ,उस से भी शादी कर लो .
“इनको तुम अपनी माँ मानते हो ,उन से भी शादी कर सकते हो .मान तो वह हैं जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया .सूरा अल मुजादिला 58 :2
9 -पकड़ी गई ,लूटी गयीं मजबूर लौंडियाँ तुम्हारे लिए हलाल हैं .
“हमने तुम्हारे लिए वह वह औरते -लौंडियाँ हलाल करदी हैं ,जिनको अलाह ने तुम्हें लूट में दिया हो .सूरा अल अह्जाब -33 :50
10 -बलात्कार की पीड़ित महिला पहले चार गवाह लाये .
“यदि पीड़ित औरत अपने पक्ष में चार गवाह न ला सके तो वह अलाह की नजर में झूठ होगा .सूरा अन नूर -24 :१३
11 -लूट में मिले माल में पांचवां हिस्सा मुहम्मद का होगा .
“तुम्हें लूट में जो भी माले गनीमत मिले ,उसमे पांचवां हिस्सा रसूल का होगा .सूरा अन फाल- 8 :40
12 -इतनी लड़ाई करो कि दुनियामे सिर्फ इस्लाम ही बाकी रहे .
“यहांतक लड़ते रहो ,जब तक दुनिया से सारे धर्मों का नामोनिशान मिट जाये .केवल अल्लाह का धर्म बाक़ी रहे.सूरा अन फाल-8 :39
13 -अवसर आने पर अपने वादे से मुकर जाओ .
“मौक़ा पड़ने पर तुम अपना वादा तोड़ दो ,अगर तुमने अलाह की कसम तोड़ दी ,तो इसका प्रायश्चित यह है कि तुम किसी मोहताज को औसत दर्जे का साधारण सा खाना खिला दो .सूरा अल मायदा -5 :89
14 – इस्लाम छोड़ने की भारी सजा दी जायेगी .
“यदि किसी ने इस्लाम लेने के बाद कुफ्र किया यानी वापस अपना धर्म स्वीकार किया तो उसको भारी यातना दो .सूरा अन नहल -16 :106
15 – जो मुहम्मद का आदर न करे उसे भारी यातना दो
“जो अल्लाह के रसूल की बात न माने ,उसका आदर न करे,उसको अपमानजनक यातनाएं दो .सूरा अल अहजाब -33 :57
16 -मुसलमान अल्लाह के खरीदे हुए हत्यारे हैं .
“अल्लाह ने ईमान वालों के प्राण खरीद रखे हैं ,इसलिए वह लड़ाई में क़त्ल करते हैं और क़त्ल होते हैं .अल्लाह ने उनके लिए जन्नत में पक्का वादा किया है .अल्लाह के अलावा कौन है जो ऐसा वादा कर सके .सूरा अत तौबा -9 :111
17 -जो अल्लाह के लिए युद्ध नहीं करेगा ,जहन्नम में जाएगा .
“अल्लाह की राह में युद्ध से रोकना रक्तपात से बढ़कर अपराध है.जो युद्ध से रोकेंगे वह वह जहन्नम में पड़ने वाले हैं और वे उसमे सदैव के लिए रहेंगे .सूरा अल बकरा -2 :217
18 -जो अल्लाह की राह में हिजरत न करे उसे क़त्ल करदो
जो अल्लाह कि राह में हिजरत न करे और फिर जाए ,तो उसे जहां पाओ ,पकड़ो ,और क़त्ल कर दो .सूरा अन निसा -4 :89
19 -अपनी औरतों को पीटो.
“अगर तुम्हारी औरतें नहीं मानें तो पहले उनको बिस्तर पर छोड़ दो ,फिर उनको पीटो ,और मारो सूरा अन निसा – 4 :34
20 -काफिरों के साथ चाल चलो .
“मैं एक चाल चल रहा हूँ तुम काफिरों को कुछ देर के लिए छूट देदो .ताकि वह धोखे में रहें अत ता.सूरा रिक -86 :16 ,17
21 -अधेड़ औरतें अपने कपडे उतार कर रहें .
“जो औरतें अपनी जवानी के दिन गुजार चुकी हैं और जब उनकी शादी की कोई आशा नहीं हो ,तो अगर वह अपने कपडे उतार कर रख दें तो इसके लिए उन पर कोई गुनाह नहीं होगा .सूरा अन नूर -24 :60
jalal के द्वारा
August 17, 2010
मनोज जी जैसा की सिद्दीकी भाई ने लिखा की इसका नाम सूरा तौबा है. यह एक मात्र ऐसा सूरा है पूरी कुरान में जिसके आगे बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम नहीं लगाया गया है. जिसमें अल्लाह की नापसन्दी भी दिखाई गयी है.
जिस लड़ाई के दिनों की बात आप कर रहे हैं उन दिनों काबा यहूदियों के कब्ज़े में था. मुस्लिम नमाज और हज को जाते थे. उस समय येही यहूदी सीटी और ताली बजाय करते थे. वोह इबादत भी नहीं करते थे. और तो और उधर नंगे घुमा भी करते थे. बाद में इन वजहों से झगडा शुरू हुआ. फिर कुछ समझौते हुए समय को देखते हुए. चूँकि समय भी पाक महीनों का था.
बाद में समझौता तोड़ दिया गया और दुबारा समझौता हुआ भी नहीं, मतलब लड़ाई का माहौल तैयार हो गया था.

हमले के लिए लोग हर तरह से तैयारी कर रहे थे. और यह बात साफ़ साफ़ कही गयी थी के अगर कोई दुश्मन माफ़ी मांग ले या हार मन ले या पनाह मांगे तो उसे मत मारो. यही नहीं उसे सुरक्षित स्थान तक लेजाकर छोडो ताकि कोई उसको कुछ न कर सके. यह ज़िम्मेदारी हर मुस्लमान की थी.
लेकिन आपने बीच में हिन्दू, बौध, जैन, सिख, इसाई जैसे धर्म को न जाने किस भावना के तहत इसमें लिख दिया. यह सिर्फ उसी समय के लिए कही गयी थी.
आप सनक में आकर धर्म न बदलें तो ही अच्छा है. और हाँ आप लिखना ना छोड़ें अगर ऐसा ना लिखना हो तो. आप vasudaiv kutumbkam को ही maan कर chalen hamare लिए theek है.
जानकारी ऐसे मामलों में अगर लेनी है तो इस्लामिक चैनल देखें. जहाँ आपको पूरी जानकारी मिलेगी. आप जाकिर नायक का youtube विडियो भी देख सकते हैं, लेकिन उसमें पूरी जानकारी नहीं होगी. पर यहाँ जागरण पर जिसने भी उत्तर दिया उन्हें किताब देखना पड़ा, कोई इसमें यहाँ पर विद्वान नहीं हैं.
आप ऐसा कुछ लिखें जिसमें किसी का bhala हो.
likhne में या kahne jo jo bhool hui हो तो khuda maaf karen.

SM Sinha – Mumbai के द्वारा
August 17, 2010
जलाल भाई ,,
यह सब आयते अरुण शौरी ने एक बार मुद्दा बनाकर पेश किया था,, बिलकुल इस ही तरह बिना
आगे पीछे की बात बताये !! उस पर जाकिर नाईक ने सभी बातो को एक्सप्लेन किया था और कहा
था की शौरी साहब जब चाहे / जहाँ चाहे उनको बुलाकर इस टोपिक पर बहस या स्पष्टीकरण ले सकते है,, लेकिन आज तक शौरी साहब की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है !!

atharvavedamanoj के द्वारा
August 17, 2010
मैं जानता हूँ जलाल जी की इस पोस्ट ने आपकी भावनाओ को ठेस पहुंचाई है,लेकिन सच को तो उजागर करना ही पड़ेगा!
खैर मै मूल विषय पर आता हूँ, यह सूरत ९ हिजरी में तीन बार नाजिल हुई! हुदैबिया की संधि के मुताबिक मुस्लमान और कुरैशों में मेल मुलाकात और हज के मौकों पर इक्कठा होने की सहूलियत बढ़ गई! नतीजा यह हुआ की इस्लाम में लोग कसरत से इमां लाने लगे! इससे घबरा कर कुरैशों ने उस संधि को तोड़ दिया और रसूलुल्लाह सल्ल्लम ने भी तंग आकर कुरैशो पर हमला कर उन्हें परास्त कर दिया! बार बार सुलह तोड़ने से अब यह एलान हो गया की मुसरिकों की हम पर कोई जिम्मेदारी नहीं! जिन्होंने अहद तोड़े वे चार महीनों के अन्दर या तो इस्लाम कबूल कर ले, या देश छोड़ दे, या फिर जेहाद का सामना kare और क़त्ल हो! मुशरिको की जिम्मेदारी ख़त्म या बराअत के नाम पर ही इस सूरा को सूरा बराअत भी कहते हैं!
इस सूरा में बिस्मिल्लाह तहरीर न करने की वजह यह है की अरब में दस्तूर था की जिस तहरीर या बयां से मुआहद: को ख़त्म करने का एलान किया जाता था उसके सुरु में बिस्मिल्लाह का नाम जो आपत्तियों से रक्षा की निशानी है, नही इस्तेमाल होता था! इन्ही वाकियात को नजर में रख कर सागर से गुलाम मुहम्मद साहब कुरैशी (तफसीर बैजवी कबीर के हवाले से ) फरमाते है की सूरः तौब: (बरा अतुममिंन्ल्लाही) से शुरू है!
मै फिर एक बार पूछता हूँ की उजैर, यहूद और ईसाईयों से पहले के kaun हैं ?
सूरः तौबा: ९, पारा१०, आयत ३०
मेरी अभी भी वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारना में श्रर्द्धा है लेकिन मार कट की बातों के साथ नहीं, राजघाट सब विधि सुन्दर वर
मज्जहि तहां वरन चारिहु नर की भावना के साथ. वन्देमातरम
atharvavedamanoj के द्वारा
August 17, 2010
मई यह नहीं जानता की अरुण शौरी ने इन आयतों को मुद्दा बनाकर प्रस्तुत किया की नहीं.ठीक है मै भी बहस के मूड में हूँ!
सच की मशाल न बुझने देंगे,
भारत देश न कटने देंगे||
वन्देमातरम
Rashid के द्वारा
August 18, 2010
आप की ही बात से यह साबित हो गया की यह सूरा एक घटना विशेष के लिए आई थी ना की हमेशा के लिए ,, रही बाकी ८ महीने की तो साहब आज मीडिया इतना मज़बूत है की उस से कोई बात ज्यादा दिनों तक छुपाया नहीं जा सकता है ,, फिर अगर आप के अनुसार १४०० साल से हर साल ८ महीना इन ५२ मुल्को में मार काट मची रहती है तो अब तक तो यहाँ का नाम ओ निशान मिट जाता चाहिय था !! उजैर, यहूद और ईसाईयों से पहले एक नहीं हजारो तरह के गिरूह थे अरब में जो अल्लाह को ही मानते थे लेकिन इस में रद्द ओ बदल कर दिया था आप की जानकारी के लिए बतादे इनमे एक था “दीन इ इब्राहिमी” आदि, इसाई भी कई हिस्सों में बटे थे और उनकी कई तरह की bible थी ,, आप को कैसे मालूम हुआ की यह सब हिन्दू थे जबकि कुरान में हिन्दू शब्द का कही इस्तेमाल नहीं हुआ !! जहाँ तक सिक्खों का नाम आपने लिखा है तो वह धर्म तो इस्लाम के बाद आया है है !! आप क्रिय्पा मेरा लेख “इस्लाम का भारत से रिश्ता देखे” तो आप को पता चले गा की इस्लाम में भारत को कितनी सम्मानित नजरू से देखा जाता है !!
राशिद
atharvavedamanoj के द्वारा
August 18, 2010
शायद आपने ध्यान से पढ़ा नहीं राशिद जी.
यह आयत ९ हिजरी में तीन मौकों पर नाजिल हुई है और अगर हजरते इस्लाम जिन्दा होते तो और भी न जाने कितने मौकों पर नाजिल होती? ये ५२ मुमालिक तो दारुले अरब है, आप दारुले अरब की बात कीजिये! हिंसा की बात कह देना और कर देना इतना आसन भी नहीं हुआ करता|प्रतिपक्षी अपने हाँथ में चूड़ियाँ तो पहन के बैठेगा नहीं|फिर भी जब भी मौका मिलता है, हिंसा होती ही है, आपकी जानकारी के लिए बता दूं की अभी रमजान के इसी महीने में बरेली में निर्दोष कांवरियों के झुण्ड पर बिना मतलब का पथराव किया गया| हालात आपके सामने है|
इस समय पुरे विश्व की जनसँख्या ६ अरब के लगभग है अगर युद्धों में व्यापक जन धन की हानि न हुई होती तो यह जनसँख्या दश गुना होती.
आप ही के अनुसार अरब में हजारों तरह के गिरुह थे|अगर एक गिरुह के १० देवता तो एक हजार गिरुह के १० हजार देवता |यह संख्या भी तो हमारे धर्म के ३३ करों देवताओ से कम है फिर भी वैष्णव, शाक्त,आग्नेय, सभी सनातन काल से एक साथ रहते चले आ रहे है,हमारे यहाँ तो किसी गिरोह ने विश्वास के नाम पर दुसरे पर जुल्म ढाया, और condition भी तो देख लीजिये > मुसलमान हो जाओ,देश से निकल जाओ अथवा मरने के लिए तैयार रहो| मतलब गुलाम बनकर भी नहीं जिया जा सकता|
मै पहले भी कह चूका हूँ कि शब्द को कहने के तीन तरीके है> अमिधा, लक्षणा और व्यंजना| सभी हिन्दू बुतपरस्त हैं और बुतपरस्त काफिर तो फिर समुच्चय सिद्धांत क्या कहता है? इतनी reasoning तो आपने भी पढ़ी होगी|
और रही बात सिक्खों कि तो यह कौम हिंदुत्व कि तलवार है जिस पर अकथनीय जुल्म ढाए गए और वह भी विश्वास के नाम पर|धर्मान्धता क्या चीज होती है यह बात इस देश ने इस्लाम के प्रवेश के बाद ही जानी|
वन्देमातरम
atharvavedamanoj के द्वारा
August 18, 2010
और हाँ,
जियाउद्दीन बरनी ने अपनी पुस्तक ”तारीख ए फिरोजशाही” में लिखा है की एक बार दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने अपने काजी अलाउलमुस्क से पूछा ” काफिर हिन्दुओं से कैसा व्यवहार करना चाहिए?” तो जानते हैं उसने क्या उत्तर दिया? काजी तो समझते हैं न आप इस्लामिक supreme कोर्ट का chief जस्टिस.
काजी ने कहा काफिर हिन्दुओं को नजराना और शुकराना अदा करने वाला होना चाहिए.मतलब मुहदिखाई भी दे और विदाई भी| अगर वसूल करने वाला चांदी का सिक्का मांगे तो सोने का सिक्का दे| यदि मुसलमान थूकना चाहे तो हिन्दू अपना मुंह खोल दे|
काजी का यह उत्तर सुनते ही सुल्तान खुसी से पागल हो गया और चिल्ला पड़ा ओ काजी तू तो एकदम हमारे शरियत के मुताबिक कहता है, तू तो बड़ा विद्ववान है,
यह मेरे मन की उड़ान नही, जियाउद्दीन बरनी का unbiased statement है
आशा है इसका भी कोई उत्तर होगा आपके पास.
मुझे जरूर अवगत करियेगा.आपका शुक्रगुजार रहूँगा
वन्देमातरम
subhash के द्वारा
August 17, 2010
kuran gita bibal aadi religious books samay aur samaj ke hisab se likhi gye aaj ke samay main keval unhi kahi baaton ka anusaran karna sabse badi bhul hai aaj aage badhne ke liye scientific soch ki jarurat hai usa china japan are the best examples where religion is secondary thing
atharvavedamanoj के द्वारा
August 17, 2010
history, polity and society is interrelated.you cant see them separately.
how can you compare india wih china and japan. think and then comment over anything.thank you for reading my blog .

subhash के द्वारा
August 18, 2010
janab aage badhne ke liye aise hi deson ka anukaran jaruri hai ya kisi aur tarah aap hi bataye aap to sarvagy [omniscient] hai
atharvavedamanoj के द्वारा
August 18, 2010
always trust yourself. dont follow anybody. critically evaluate all the prose and cons whatever comes to you.this message is not exclusively for you but for the whole nation.
think and then act with undaunted and non compromising zeal in the mind.
thank you for reading me.
i am not omniscient but yes i am practicing yoga for self realization. you too do the same.
Amir Siddiqi के द्वारा
August 17, 2010
जिस सूरा का आपने हवाला दिया है उसका नाम सूरा तौबा है, पता नहीं आप यह नाम (सूरतुत्तौवति)
कहाँ से लाये !! अब ज़रा आप इसके बारे मे और जान ले,, यह सूरा मदीने मे नजील हुई थी और
वजह यह थी की उस वक़्त के अरब लोग जो मुसलमानो के साथ सुलह का सम्झौता किए थे और आराम से रह रहे थे,, उन हो ने यह अमन सम्झौता तोड़ दिया था, इस घटना के परिपेक्ष मे यह पूरी सूरा आई थी ! और स्पष्ट कर दु की यह सूरा सिर्फ और सिर्फ :
1) उन अरब वालों के लिए थी जिन्हों ने सम्झौता तोड़ा था ना की हर एक ग़ैर मुस्लिम के लिए !
उस वक़्त मुसलमानो का सम्झौता और कई ग़ैर मुस्लिम्स से था जो इस आयात के तहत
नहीं आते थे!!
2) जिन 4 महीनो का ज़िक्र आप ने किया है ,, यह मोहलत भी इन ही अरब वालों के लिए थी जिन्हों ने सम्झौता तोड़ा था, आप की जानकारी के लिया बता दे की जिकाद, जिलहिज्ज, मुहर्रम एक साथ के महीना है, यह मोहलत उनको दी गयी थी की वह खूब सोच समझ ले !! इस के बाद मुसलमानो को इजाज़त थी की वह इनको इन ही की भाषा मे जवाब दे !!
3) इस आयात का संदेश लेकर हज़रत अली अरबों के पास गए तो उन अरबों ने धम्की भरे शब्दो मे कहा की हमने सम्झौता तोड़ दिया है और हमारे आप के बीच कोई सम्झौता नहीं है अब !!

उम्मीद है की आप को स्पष्ट हो गया होगा की यह आयात कब और किस लिए आई है,, एक बार फिर स्पष्ट कर दो की यह खास उस गिरोह के लिए थी जिनहोने सम्झौता तोड़ा था ना की तब से लेकर आज तक के सभी ग़ैर मुस्लिमो पर,, अगर ऐसा होता तो जैसे राजीव जी ने लिखा 52 देशो मे साल के 8 महीना सिर्फ कत्ल और गारत ही होता रहता !!
ऊपर लिखी बाते मैंने इंडिया के मशहूर आलिम आला हज़रत की तफ़सीर से ली है,, उम्मीद है की अगर आप इंटरनेट पर सर्च करेगे तो आप को हिन्दी और इंग्लिश मे भी यह बाते मिल गए गी !!
आमिर
atharvavedamanoj के द्वारा
August 17, 2010
आमिर जी
मैं जिस किताब की सहायता से अपना ब्लॉग लिख रहा हूँ. वह मै पहले ही बता चूका हूँ|
इसका अनुवाद श्रीमान नन्द कुमार अवस्थी जी ने किया है, और अंजुमन हिदायतुल मुसलमीन व दारुल मुबल्ल्गीन लखनऊ के मुफ्ती जनाब मुहम्मद सिद्दीक ने प्रूफ देखा तथा जनाब मौलाना अबुल हसन अली नदवी साहब ने भी अहकर पर अपने एतमाद का इजहार फरमाया है,
atharvavedamanoj के द्वारा
August 19, 2010
मैंने दो और कुरान खरीद लिए हैं. अब तो कोई संशय ही नहीं रहा.मानव के रक्त से सना हुआ यह संप्रदाय और इस vichardhara पर आधारित आतंकवादी संगठन मेरे इस संशय को पुष्ट karte है|
अभी तो कर्बला का मैदान बाकी है जैसे नारे इसी देश में लगते हैं|
बताओ तो यह हिंदुस्तान है या कर्बला का मैदान और किसको मारोगे, अपने ही पडोसी को?
Dr satyendra singh के द्वारा
August 21, 2010
सिद्दीकी साहिब जानकारी के लिए धन्यवाद , इतिहास वर्तमान और भविष्य सब आपस में मिले हुए हैं.हिन्दू एक ऐसी मुर्ख कौम है जो वर्तमान से भी सबक नहीं लेती इतिहास की बात जाने दीजिये .
तर्क कुतर्क की कसoती से वास्तविकता नहीं छुपती.
हमें किसी से कोई शिकायत नहीं हमें तो अपने ही समाज से शिकायत है जो वर्तमान से भी शिक्षा नहीं लेता , इतिहास से क्या लेगा
Aakash Tiwaari के द्वारा
August 17, 2010
आपको जात पात से ज्यादा ध्यान तो गरीबी , राजनीति या फिर सामजिक स्थितियों की तरफ ध्यान देना चाहिए. बुरे व्यवहार के इंसान हर धर्म में होते है ना की किसी एक धर्म में . और फिर भी कोई धर्म हमें बुरी बातें नहीं सिखाता . एक ही गर्भ से जन्मे दो बच्चों में से एक सज्जन तो दूसरा बदमाश निकल जाता है तो क्या उनकी माँ दोनों को अलग अलग ज्ञान देती है.नहीं जिसकी जैसी प्रवित्ति है वो वैसा ही करेगा. और आज इस दौर में अच्छी विचारधारा की जरूरत है न की कट्टर विचारधारा की. आकाश
aakashtiwaary.jagranjunction.com

atharvavedamanoj के द्वारा
August 17, 2010
धर्म, जाति, पंथ, संप्रदाय, वर्ण, देश, राष्ट्र, राज्य अलग अलग अवाधारनाये है.
आप सभी को गड्ड मड्ड नहीं कर सकते. कोरी भाउकता आत्मघाती है, कृपया तर्क और तथ्यों के साथ आयें. आपका स्वागत है.
vijendrasingh के द्वारा
August 20, 2010
आकाश जी गरीबी ,राजनीती या फिर सामाजिक समस्याओं के लिए हम सरकार चुनते है आप क्यूँ नहीं बेहतर सरकार चुनने की बात करते है रही बात किसी धार्मिक तर्क या लेख की तो आप भी एक कुरआन जरूर खरीदो और पढो साथ ही भगवत गीता जरूर पढना फिर उपरोक्त लेख पर टिपण्णी करना ?
rajan,sunderpur,vns के द्वारा
August 16, 2010
प्रिय मनोज जी !!! धर्म का अर्थ है — धारणीय, अर्थार्थ जिसे धारण किया जा सके . mai इस्लाम धर्म के बारे में नहीं जानता हा हिन्दू धर्म के प्रति मेरी गहरी आस्था है . अगर इस्लाम मार काट की शिक्षा देता है तो इसकी निंदा होनी चाहिए . आगे लिखते रहे ……. आपको धन्यवाद !!!!!!11
atharvavedamanoj के द्वारा
August 19, 2010
वन्देमातरम राजन जी.
इस्लाम वास्तव में मार काट की शिक्षा देता है.
रहीम ने इसी स्थिति को लक्ष्य कर लिखा था
कह रहीम कैसे निभै बेर केर को संग, वे डोलत रस आपने,उनके फाटत अंग|
RKS के द्वारा
August 16, 2010
मनोज जी
अच्छा होता यदि आप लिखने से पहले थोड़ा अधध्यन कर लेते !! कुरान या किसी भी किताब का मतलब समझने के लिए कुछ बाटो का जानना ज़रूरी होता है वह है : 1) किस लिए यह बात आई या कही गयी 2) उस वक्त की परिस्थिति क्या थी 3) इस आयत पर क्या अमल किया गया !! कृपया अगले लेख मे इन तीनों पर भी प्रकाश डाले !! आप की जानकारी के लिए बता दे की पूरे कुरान मे हिंदु, बौद्ध, जैन आदि का कोई उल्लेख ही नहीं है!!
जिन 4 महीनो का आपने ज़िक्र किया है यह अदब के नहीं बल्कि हुरमत के महीने कहलाते है,, जिस मे लड़ाई आदि करना मना है,, जिस आयत को आपने लिखा है वह मक्का के उन लोगो के लिए थी जिन्हों ने इस्लाम के मानने वालो पर बेहद ज़ुल्म किया था यहाँ तक की जलते हुए अंगारो पर लिटा दिया जाता था !! आप की जानकारी के लिए बता दु की इतने ज़ुल्मो सितम के बाद भी जब मुसलमानों के हाथ मे मक्का आया था तो वहाँ एक बूँद खून नहीं बहाया गया था बल्कि सब को माफ कर दिया गया था !!
अब इसका दूसरा पहलू देखते है !!
अगर आप के ही हिसाब से माना जाए तो फिर आज जो 52 इस्लामिक मुल्क है वहाँ तो किसी ग़ैर मुस्लिम को बाकी ही नहीं बचना चाहिए जब की है इसके उल्टा,, लाखो / करोड़ो की तादाद मे यह ग़ैर मुस्लिम्स ( जिसमे हिंदु ज़्यादा है ) इन मुल्को मे रहते है और बहुत अच्छे से और शांति से रहते है,, ऐसा क्यो है !! आप के द्वारा बताए गए 4 महीने तो हर साल आते है,, लेकिन किसी भी देश से हिंसा की कोई खबर नहीं आती है !!
दूसरी चीज़ – इस्लाम सब से आधुनिक या नया मजहब है और इतने दुश प्रचार के बावजूद भी तेज़ी से चारो ओर फैल रहा है खास कर यूरोप आदि मे,, आप इन तथ्यो को झुटला नहीं सकते !!
कृपया पहले पूरी जानकारी इकट्ठा करे,, खुद अध्ययन करे फिर लिखे !!

atharvavedamanoj के द्वारा
August 16, 2010
RKS जी
किसी भी बात को कहने के तीन तरीके होते है!अमिधा ,लक्षणा और व्यंजना!यह जरूरी नहीं की किसी भी बात को समझाने के लिए चीखना ही पड़े और रही कुरान में हिन्दुओं के नाम के उल्लेख न होने की बात तो मैंने अपने लेख के पहले ही उद्धरण में इस बात को स्पष्ट कर दिया है!विश्व का सर्वाधिक प्राचीन धर्म कौन सा है,यह तो आप जानते ही होंगे जिन चार महीनो का मैंने उल्लेख किया है, वह लखनऊ किताब घर द्वारा प्रकाशित कुरान शरीफ तर्जुमः के द्वितीय संस्करण पृष्ट संख्या ३१९ के चौथे आयत में अदब ही लिखा गया है ! मैं और भी जगह dhundhane का प्रयास करूँगा!
आपने जिन ५२ मुस्लिम मुमालिक में हिन्दुओं के रहने की बात की है,वहां हिन्दुओं की लाश पर काफ़िर लिख दिया जाता है!हिंसा अदब या आपके अनुसार हुरमत के महीनो में नहीं होती बल्कि शेष ८ महीनो में होती है,विश्व में सर्वाधिक आतंकी घटनाये रमजान के मुक्कदस महीने में होती है.इस बारे में मैं आपने अगले लेख में प्रकाश डालूँगा!आपकी जिज्ञासा के लिए बतादूँ की यह रमजान का ही महिना चल रहा है और कश्मीर में पत्थरबाजी इस्लामिक आतंकवाद अपने चरम पर है!
बुराई भी तो तेजी से ही सीखी जाती है तो क्या आप उसे उचित ठहराएंगे?
इस्लाम तो हिदुस्थान में उत्पत्ति के समय से ही है किन्तु तर्क के आधार पर कितने हिन्दुओं ने मतान्तरण किया है,तलवार की बात छोड़ दीजिये!
परिस्थितियां चाहे जैसी भी हो विश्वास के नाम पर किसी का गला रेतने को उचित नहीं ठहराया जा सकता!खैर मै परिस्थितियों की भी चर्चा करूंगा!पढ़ते रहिये

RKS के द्वारा
August 17, 2010
कृपया तर्जुमे के साथ साथ जो तीन बाते मैंने लिखी गई वह भी देखिये,, काफ़िर शब्द केवल हाल ही में पाकिस्तान में लिखा गया है और ऐसा कोई उदहारण किसी मुस्लिम मुल्क में नहीं मिलता है,, आप के यह ८ महीना वाली बात कहीं से साबित नहीं है ,, कश्मीर में जो हो रहा है वह रमजान से पहले से है,, फिर वही बाद की अगर सारे मुस्लिम्स साल के ८ महीना (जो आपने बताए है ) हिंसा करते है तो बाक़ी क्या बचता है !! वैसे आपकी जानकारी के लिए एक बार फिर बता दे की कृपया इन्टरनेट पर देखे की मध्य पूर्व के मुस्लिम देशो में कितने शांतिपूर्वक हिन्दू रहते है और वहां कुछ देशो में उनके लिए मंदिर आदि भी है !! कृपया उचित जानकारी,, उचित स्रोत से हासिल करे !!
राजीव कुमार शर्मा
कहीं किसी तरह की कोई ऐसी बात देखने को नहीं मिलती जो आप ने लिखी है

atharvavedamanoj के द्वारा
August 17, 2010
मुख्तार अंसारी द्वारा मौ में रमजान पर प्रायोजित दंगा, जिसमे हजारों यादव बंधू मारे गए, मुंबई में दावूद इब्राहीम के नेतृत्वा में शुक्रवार को सीरियल बोम्ब विस्फोट जब मुस्लिम जमात या तो घरों के अन्दर होती है या मस्जिदों में, इराक में २००३ में १०० से अधिक अमेरिकियों का मारा जाना. ic 307 विमान का अपहरण ये सब रमजान में हुआ. उपर्युक्त उदहारण बानगी भर है.
नि:संदेह कश्मीर में पत्थर बजी रमजान से पहले सुरु हुई! लेकिन उसे सबाब पर इस महीने पहूंचाया जा रहा है!
आप तो अपने पड़ोस में कितने मरे, इससे भी अनभिज्ञ रहते है. ५२ मुल्कों में क्या हो रहा है? यह आपको कैसे पता चलेगा, मिडिया तो वही जायेगी न जहा उसे ले जाया जाएगा.
बुरा लगे तो क्षमा कीजियेगा.
वन्देमातरम
Dr satyendra singh के द्वारा
August 21, 2010
बहस से क्या लाभ , ग्रन्थ पढलो भाई अपने तो पढो लेकिन दूसोरों के जरूर पढो, दूसरों के इसलिए ताकि आपको कोई भ्रम न रहे. भ्रम वश किसी के भी बारे में कुच्छ भी कहना ठीक नहीं है.
हिन्दू भाइयों से निवेदन है की वे अपने समाज में व्याप्त कारणों का निवारण करें और अपने समाज को स्वस्थ एवं समृद्ध बनायें इतना मजबूत की कोई भी उंगली उठाने की हिम्मत न कर सके आपकी कमजोरियों पर,जात -पात की सीमाओं से निकलो , जब हम अपने ही समाज के लोगों को इश्वर की आराधना नहीं करने देंगे उन्हें मंदिरों में जाने से रोकेंगे,तो इश्वर तो हमें ही दंड देगा न.
मुस्लिम भाई क्या करते हैं इसी क्या कर रहे हैं इन बातों में दिमाग खपाने से अच्छा है की अपने समाज की कुरीतियों को समझ कर उनको मिटाने के pरयास में अपनी उर्जा लगायें .
हजारों साल की गुलामी और प्रताड़ना से सबक लेने का समय है , और समय अच्छा नहीं है हमारे लिए .
लोग धर्म परिवर्तन करें इस पर हल्ला मचने से बेहतर है ऐसी व्यवस्था पैदा करना की लोग हिन्दू समाज में अपने आपको सुरक्षित और गोरान्वित महसूस करें ,
जय Hind
N.A. Rawat के द्वारा
August 25, 2010
भारत माँ के विद्रोही को जीने का अधिकार नही है॥ ये लाइन मनोज जी के द्वारा ही लिखी गई है तो ये बात इन पर ज्यादा लागु होती है. क्योंकि मेरे हिसाब से इन्होने ज्यादा कमेंट्स पाने के लिए एक ऐसे टोपिक को चुना जो सवेंदनशील है . तो मनोज जी अगली बार जो ब्लॉग लिखे उसे धार्मिक आधार पर नही बल्कि सामाजिक आधार पर लिखना कमेंट्स भले ही कम आए लेकिन जो भी पढ़ेगा उसका लिए अच्छा ही होगा .
atharvavedamanoj के द्वारा
August 25, 2010
gentleman of the jury!acquit me or convict me i will never mend my ways.even thou i have to die a thousand deaths….Socrates.
who are you to decide a am anti national.. go to your own people and ask them what they think about my views..putting aside there religious reservations..i have simply presented your book..in its purest form…if you think it is spreading unpeaceful situations in this country…then who is responsible for it….i cant do anything in this regard.
first you should read about the dharma
Rahul के द्वारा
August 26, 2010
मनोज जी
मुझे लगता है की आप जानबूझकर इस टोपिक को बंद नहीं कर रहे हैं. अब आपको मज़ा आ रहा है जबकि कुछ लोगों ने आपके सवाल का जवाब भी दे दिया है और मैं इससे संतुष्ट भी हूँ .वो आयत भी ख़ास लोगों के लिए और ख़ास जगह पे आई थी और आप ने कितनी आसानी से अपने ब्लॉग के लिए मसाला तैयार कर लिया. और हम लोगों को पूरी बात भी नहीं बताई की ये आयत क्यों और किस लिए आई .आपने भी मीडिया की तरह ही आयत की एक हिस्से को लेकर अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश की. महोदय इस टोपिक ओ बंद कर दें और लोगों को देश प्रेम भावना से जीने दें.
कव्व्वा कान ले गया वाली बात है लोग अपना कान नहीं देख रहे . कव्वे का पीछा किये जा रहे हैं …इश्वर आपको सद्बुद्धि दे.

जय हिंद
atharvavedamanoj के द्वारा
August 27, 2010
राहुल जी बहुत आसानी से संतुष्ट हो जाते हो..देखिएगा इस तरह की अल्पकालिक संतुष्टि कभी कभी पुरे जीवन को दुखदाई बना देती है. थोडा धैर्य रखिये अभी तो बहुत सी बातें सामने आणि बाकि रह गयी हैं..
अभी से क्यों करवटें बदलने लगे हूजुर.
अभी आगाज है कहानी का ||
वन्देमातरम
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23 प्रतिक्रिया
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नवीनतम प्रतिक्रियाएंLatest Comments

Muhammad Naaz के द्वारा
January 16, 2011
मनोज कुमार! मुझे सबसे पहले यह बताओ कि आप किस अनुवादक के नुस्ख़े से हवाले(सन्दर्भ) दे रहे हैं? क्यों कि हिन्दी में आज तक किसी भी सुन्नी आलिम का अनुवाद उपलब्ध नहीं है.आलमे सुन्नियत में आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा के उर्दू अनुवाद जिसका हिन्दी रूपांतर सैयद आलेरसूल हसनैन मियां का कलामुर रेहमान के नाम से बरकाती पब्लिशर(मुंबई) के द्वारा प्रकाशित हुआ है वो ही एक मान्य हिन्दी रूपांतर है.देवबन्दी आलिमों ने कुराने पाक के अनुवाद में तो हद करदी है! हराम को हलाल ओर हलाल को हरम! जाइज़ को नाजाइज़ ओर नाजाइज़ को जाइज़! मअज़ल्लाह अम्बिया को आम आदमी जैसा लिख दिया है देवबन्दियों ने.न जाने क्या-क्या अनुवाद कर बेठे हैं ये लोग.गैरे-सुन्नी आलिमों के अनुवाद हमारे लिए अस्वीकृत है.
महत्व की बात तो यह है की ये लोग ही गैर मुस्लिमों के हाथों में कुरान जैसी मुक़द्दस किताब (जो सिर्फ किताब नहीं है अल्लाह का कलाम है) थमा देते हैं.जिसको आम मुसलमान समझने में
असमर्थ हैं.जिसे समझ ने के लिए मुसलमान मदरसे में जाकर हदीस सीखते हैं,अरबी ग्रामर, शाने नुज़ूल(क्यों ओर किसके लिए), ओर फ़िक़ह सीखते हैं तब जाकर कहीं कुराने पाक का ज्ञान सीख पाते हैं. तो भला कोई गैर-मुस्लिम को कुरान दे भी दीया जाए तो उस से वो फायदा नहीं उठा सकता क्यों कि कुरान ईमान वालों के लिए हिदायत(निर्देश) है.
देवबन्दी आलिमों के अनुवादों में बे-हिसाब ख़ामियां मोजूद है जिसे साबित करने के लिए आप मेरा ब्लॉग देख सकते हैं.www.haqaaya.blogspot.com
vijender के द्वारा
January 12, 2011
बहुत सारे लोगो के कमेन्ट पड़े / यदि लेख में दी गई कुरान की आयते समय विसेस थी तो उन आयातों को अब कुरान से हटा कियो नहीं देते / जिस लेख / सन्दर्भ से गलतफमी हो उसको हटा देना ही ठीक होगा
rajshahil के द्वारा
November 8, 2010
मनोज जी मेरे द्वारा लिखी गयी hindu धर्म की पुस्तकों के कुछ अंश निम्न hai
दुसरे धर्मो पर हमेशा रौब डालते रहो .और मौक़ा मिलकर सर काट दो .गीता -8 :112
2 -दुसरे धर्मो को फिरौती लेकर छोड़ दो या बलि कर दो .
“अगर दुसरे धर्मो से मुकाबला हो ,तो उनकी गर्दनें काट देना ,उन्हें बुरी तरह कुचल देना .फिर उनको बंधन में जकड लेना .यदि वह फिरौती दे दें तो उनपर अहसान दिखाना,ताकि वह फिर हथियार न उठा सकें .गीता -47 :14
3 -गैर हिन्दुओ को घात लगा कर धोखे से मार डालना .
‘दुश्मन जहां भी मिलें ,उनको क़त्ल कर देना ,उनकी घात में चुप कर बैठे रहना .जब तक वह हिन्दू नहीं होते सामवेद -9 :5
4 -हरदम लड़ाई की तयारी में लगे रहो .
“तुम हमेशा अपनी संख्या और ताकत इकट्ठी करते रहो.ताकि लोग तुमसे भयभीत रहें .जिनके बारेमे तुम नहीं जानते समझ लो वह भी तुम्हारे दुश्मन ही हैं .अलाह की राह में तुम जो भी खर्च करोगे उसका बदला जरुर मिलेगा .यजुर्वेद -8 :60
5 -लूट का प्रशाद समझ कर खाओ .
“तुम्हें जो भी लूट में माले -गनीमत मिले उसे प्रसाद समझ कर खाओ ,और अपने परिवार को खिलाओ .गीता -8 :69
6 -छोटी बच्ची से भी शादी कर लो .
“अगर तुम्हें कोई ऎसी स्त्री नहीं मिले जो मासिक से निवृत्त हो चुकी हो ,तो ऎसी बालिका से शादी कर लो जो अभी छोटी हो और अबतक रजस्वला नही हो . hrigved -65 :4
7 -जो भी औरत कब्जे में आये उससे सम्भोग कर लो.
“जो स्त्री तुम्हारे कब्जे या हिस्से में आये उस से सम्भोग कर लो.यह तुम्हारे लिए वैध है.जिनको तुमने माल देकर खरीदा है ,उनके साथ जीवन का आनंद उठाओ.इस से तुम पर कोई गुनाह नहीं होगा .गीता -4 :3 और 4 :24
8 -जिसको अपनी माँ मानते हो ,उस से भी शादी कर लो .
“इनको तुम अपनी माँ मानते हो ,उन से भी शादी कर सकते हो .मान तो वह हैं जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया .गीता 58 :2
9 -पकड़ी गई ,लूटी गयीं मजबूर स्त्री तुम्हारे लिए प्रसाद हैं .
“हमने तुम्हारे लिए वह वह औरते करदी हैं ,जिनको भगवान ने तुम्हें लूट में दिया हो .सामवेद -33 :50
10 -बलात्कार की पीड़ित महिला पहले चार गवाह लाये .
“यदि पीड़ित औरत अपने पक्ष में चार गवाह न ला सके तो वह भगवन की नजर में झूठ होगा .सामवेद -24 :१३
11 -लूट में मिले माल में पांचवां हिस्सा प्रसाद का होगा .
“तुम्हें लूट में जो भी माले गनीमत मिले ,उसमे पांचवां हिस्सा भगवान का होगा . darshan – 8 :40
12 -इतनी लड़ाई करो कि दुनियामे सिर्फ हिन्दू ही बाकी रहे .
“यहांतक लड़ते रहो ,जब तक दुनिया से सारे धर्मों का नामोनिशान मिट जाये .केवल हिन्दू धर्म बाक़ी रहे. सामवेद -8 :39
13 -अवसर आने पर अपने प्रण से मुकर जाओ .
“मौक़ा पड़ने पर तुम अपना प्रण तोड़ दो ,अगर तुमने अलाह की कसम तोड़ दी ,तो इसका प्रायश्चित यह है कि तुम किसी मोहताज को औसत दर्जे का साधारण सा खाना खिला दो .सामवेद -5 :89
sayad आपने isi tarah कुरान को tod marod कर पोस्ट kiya है
    atharvavedamanoj के द्वारा
    November 8, 2010
    हा हा हा…. बेटा मेरे पास तिन तिन कुरान की पुस्तके हैं और जो कुछ भी मैंने लिखा है वह तुम्हारी किताब से लिखा है…अगर तुम इसे मनगढ़ंत कहते हो तो ठण्ड रखो …ठण्ड|इंशा अल्लाह बकरीद से पहले ही सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा…खुदा तो बहकाता है और यह तुम्हारे कुरान में बीसियों बार लिखा गया है….हाँ तुमने यह जो भी लिखा है…मैंने किसी गीता में पढ़ा नहीं और न ही किसी वेद में पढ़ा है…अच्छा है तुम जैसों ने ही वेद को लवेद बना दिया है…पहले पढो फिर लिखों …ही ही ही ही
Piyush Pant, Haldwani के द्वारा
November 4, 2010
मनोज जी………… आपको और आपके पुरे परिवार को हमारी और से दिवाली की हार्दिक बधाई ………..
ये दिवाली आपके और आपके परिवार को ढेरों खुशियाँ दे………….
आप अपने ज्ञान से आकाश की बुलंदियों को प्राप्त करें…………
और लेखन की सभी विधाओं में उच्च स्थान तो प्राप्त करें……………..
    Piyush Pant, Haldwani के द्वारा
    November 4, 2010
    कृपया सभी विधाओं में उच्च स्थान तो प्राप्त करें……… को सभी विधाओं में उच्च स्थान को प्राप्त करें… पढ़ें…. धन्यवाद …….
    atharvavedamanoj के द्वारा
    November 8, 2010
    प्रिय मित्र पियूष जी, सादर वन्देमातरम… मित्रों द्वारा ह्रदय से की गयी प्रार्थना को प्रभु अवस्य स्वीकार करते हैं…इश्वर करें की आप समग्र राष्ट्र में अपने भावनाओं रूपी पियूष का इसी भांति वर्षण करते रहे और जननी आपको इस सुधा वर्षण के प्रतिफल में नित नये उपलब्धियों से साक्षात् कराये..जय भारत,जय भारती
kmmishra के द्वारा
November 2, 2010
मनोज जी सादर वंदेमातरम ! आपको व आपके परिवार को धनतेरस और दीपावली की शुभ कामनाएं । मिठाईयों से दूर रहियेगा और पटाखे थोड़ी दूरी से फोड़ियेगा । आभार ।
    atharvavedamanoj के द्वारा
    November 4, 2010
    नंदा दीप जलाना होगा| अंध तमस फिर से मंडराया, मेधा पर संकट है छाया| फटी जेब और हाँथ है खाली, बोलो कैसे मने दिवाली ? कोई देव नहीं आएगा, अब खुद ही तुल जाना होगा| नंदा दीप जलाना होगा|| केहरी के गह्वर में गर्जन, अरि-ललकार सुनी कितने जन? भेंड, भेड़िया बनकर आया, जिसका खाया,उसका गाया| मात्स्य-न्याय फिर से प्रचलन में, यह दुश्चक्र मिटाना होगा| नंदा-दीप जलाना होगा| नयनों से भी नहीं दीखता, जो हँसता था आज चीखता| घरियालों के नेत्र ताकते, कई शतक हम रहे झांकते| रक्त हुआ ठंडा या बंजर भूमि, नहीं, गरमाना होगा| नंदा दीप जलाना होगा ||…………………………….मनोज कुमार सिंह ”मयंक” आदरणीय मिश्रा जी, आपको और आपके सारे परिवार को ज्योति पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं || वन्देमातरम
ahmad khan के द्वारा
November 2, 2010
salamti ho (shanti ho eeshver ki or se)us vyakti par jo ek eeshwer(Allah)par vishwas rakhta ho. mahanubhav _ badi khushi hui is bat ke lie ki hindu wakai jag raha hai.dharm ke vishay main baat karne ki himmat usne pa lee hai.mohtaram, jab kisi kom ko allah bebaki se nawazta hai to uske samne sabse bada khatra ager koi hota hai to wo \’\'ghuroor\’\’ ya ghhamand ka hota hai. bas mujhe is kom ke bare men yahi lagta hai. aapka blog pada to laga ki aapko vibhinn dharmo ke bare main jankari to hai(shayed mujhse bhi kahin zyada) lekin dharm ke marm ko na samajh paen to ye bde durbhagya(badkismati) ki baat hogi. hamare aur aapke lia nahi waran iss sansar ke lia . aap islam se nafrat ki bhawna dalkar hinduo ka ya hamare desh ka bhala karna naamumkin hi prateet hota hai. baherhall . aapne pvitra QUR\’AAN ki jin aayaton ko code kiya un aayaton ke ARABI wakyon mai, poore quraan ki kisi bhi aayat main shabd \’\'hindu\’\’ likha hua sambodhit kiya gaya ho- jaisa aapne likha dikhaya. wo islam hi to hai jo agyani ARABON ko gyani banakar uthaya aur unhein aisa muslim(eeshwar ke prati samarpan bhav se jhuk jane wala) manushya banaya aur unke duara gyan ke un khzano ka tala bhi khulwaya(zuban se uchcharan kare to zuban kat lo-kano se mantra sun le to pighla hua sheesha dal do) jinpar sansar ke kucch deshon ke log naag bankar baithe hue the sari manvta ke lie bikher diya jiska jitna daman ho lele. eesa dia. petante nahin kiya .aur tumhara bada pyara sa naam HINDU kisne diya?. shoonya jiski koi haisiyat hi nahin-jab islam ke seene se laga to jahan-jahan laga moolyon ko badata hi chala gaya… ye to bas eek yaddihani hai
    Varun के द्वारा
    December 9, 2010
    beta ahmad khan tum bahut bol rahe ho shayad tumhe kuch pata to hai nahi bus faltu ki bak bak kar rahe ho ye sayed tumhari galat fhmi hai ki hindu word kuran se aya balki sach to yeh he ki kuran hindu dharm se uttpan hui hai or kuran hi nahi puri duniya me jitne bhi dhram hia na unka aadhar sirf hind dhra hi to hai “Hindu Dhram sarbeSarba” hindu dhram sarbsest hai to iss baat ko yaad rakho ro ha tum jo kuch kuran ki aayto ki baat kar rahe ho to mein tumhe kuch aayte bata deta hu upar bhi likhi hai but fir bhi me bata dtat hiu Full ViewEdit Draft Kuran Ki aayte From: Varun Gupta View Contact To: ——————————————————————————– ये सटी प्रथा पहले अपने मन से लडकिय करती थी.बाद में इसको बंद करा दिया gaya इस्लाम धर्म चोधकर किसी भी के धर्म ग्रन्थ में दुसरे के मजहब के बारे में उल्टा नहीं लिखा.हिन्दू में कंही ये नहीं लिखा की गई गैर हिन्दू को मारो,यहूदी में नहीं लिखा गैर यहूदी को क़त्ल करो ,निचे एक से मेने कुछ पढ़ा था जो कुछ लिख रहा हु.मुझे मालूम नहीं ये सच है या झूट काफिरों पर हमेशा रौब डालते रहो .और मौक़ा मिलकर सर काट दो .सूरा अनफाल -8 :112 2 -काफिरों को फिरौती लेकर छोड़ दो या क़त्ल कर दो . “अगर काफिरों से मुकाबला हो ,तो उनकी गर्दनें काट देना ,उन्हें बुरी तरह कुचल देना .फिर उनको बंधन में जकड लेना .यदि वह फिरौती दे दें तो उनपर अहसान दिखाना,ताकि वह फिर हथियार न उठा सकें .सूरा मुहम्मद -47 :14 3 -गैर मुसलमानों को घात लगा कर धोखे से मार डालना . ‘मुशरिक जहां भी मिलें ,उनको क़त्ल कर देना ,उनकी घात में चुप कर बैठे रहना .जब तक वह मुसलमान नहीं होते सूरा तौबा -9 :5 4 -हरदम लड़ाई की तयारी में लगे रहो . “तुम हमेशा अपनी संख्या और ताकत इकट्ठी करते रहो.ताकि लोग तुमसे भयभीत रहें .जिनके बारेमे तुम नहीं जानते समझ लो वह भी तुम्हारे दुश्मन ही हैं .अलाह की राह में तुम जो भी खर्च करोगे उसका बदला जरुर मिलेगा .सूरा अन फाल-8 :60 5 -लूट का माल हलाल समझ कर खाओ . “तुम्हें जो भी लूट में माले -गनीमत मिले उसे हलाल समझ कर खाओ ,और अपने परिवार को खिलाओ .सूरा अन फाल-8 :69 6 -छोटी बच्ची से भी शादी कर लो . “अगर तुम्हें कोई ऎसी स्त्री नहीं मिले जो मासिक से निवृत्त हो चुकी हो ,तो ऎसी बालिका से शादी कर लो जो अभी छोटी हो और अबतक रजस्वला नही हो .सूरा अत तलाक -65 :4 7 -जो भी औरत कब्जे में आये उससे सम्भोग कर लो. “जो लौंडी तुम्हारे कब्जे या हिस्से में आये उस से सम्भोग कर लो.यह तुम्हारे लिए वैध है.जिनको तुमने माल देकर खरीदा है ,उनके साथ जीवन का आनंद उठाओ.इस से तुम पर कोई गुनाह नहीं होगा .सूरा अन निसा -4 :3 और 4 :24 8 -जिसको अपनी माँ मानते हो ,उस से भी शादी कर लो . “इनको तुम अपनी माँ मानते हो ,उन से भी शादी कर सकते हो .मान तो वह हैं जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया .सूरा अल मुजादिला 58 :2 9 -पकड़ी गई ,लूटी गयीं मजबूर लौंडियाँ तुम्हारे लिए हलाल हैं . “हमने तुम्हारे लिए वह वह औरते -लौंडियाँ हलाल करदी हैं ,जिनको अलाह ने तुम्हें लूट में दिया हो .सूरा अल अह्जाब -33 :50 10 -बलात्कार की पीड़ित महिला पहले चार गवाह लाये . “यदि पीड़ित औरत अपने पक्ष में चार गवाह न ला सके तो वह अलाह की नजर में झूठ होगा .सूरा अन नूर -24 :१३ 11 -लूट में मिले माल में पांचवां हिस्सा मुहम्मद का होगा . “तुम्हें लूट में जो भी माले गनीमत मिले ,उसमे पांचवां हिस्सा रसूल का होगा .सूरा अन फाल- 8 :40 12 -इतनी लड़ाई करो कि दुनियामे सिर्फ इस्लाम ही बाकी रहे . “यहांतक लड़ते रहो ,जब तक दुनिया से सारे धर्मों का नामोनिशान मिट जाये .केवल अल्लाह का धर्म बाक़ी रहे.सूरा अन फाल-8 :39 13 -अवसर आने पर अपने वादे से मुकर जाओ . “मौक़ा पड़ने पर तुम अपना वादा तोड़ दो ,अगर तुमने अलाह की कसम तोड़ दी ,तो इसका प्रायश्चित यह है कि तुम किसी मोहताज को औसत दर्जे का साधारण सा खाना खिला दो .सूरा अल मायदा -5 :89 14 – इस्लाम छोड़ने की भारी सजा दी जायेगी . “यदि किसी ने इस्लाम लेने के बाद कुफ्र किया यानी वापस अपना धर्म स्वीकार किया तो उसको भारी यातना दो .सूरा अन नहल -16 :106 15 – जो मुहम्मद का आदर न करे उसे भारी यातना दो “जो अल्लाह के रसूल की बात न माने ,उसका आदर न करे,उसको अपमानजनक यातनाएं दो .सूरा अल अहजाब -33 :57 16 -मुसलमान अल्लाह के खरीदे हुए हत्यारे हैं . “अल्लाह ने ईमान वालों के प्राण खरीद रखे हैं ,इसलिए वह लड़ाई में क़त्ल करते हैं और क़त्ल होते हैं .अल्लाह ने उनके लिए जन्नत में पक्का वादा किया है .अल्लाह के अलावा कौन है जो ऐसा वादा कर सके .सूरा अत तौबा -9 :111 17 -जो अल्लाह के लिए युद्ध नहीं करेगा ,जहन्नम में जाएगा . “अल्लाह की राह में युद्ध से रोकना रक्तपात से बढ़कर अपराध है.जो युद्ध से रोकेंगे वह वह जहन्नम में पड़ने वाले हैं और वे उसमे सदैव के लिए रहेंगे .सूरा अल बकरा -2 :217 18 -जो अल्लाह की राह में हिजरत न करे उसे क़त्ल करदो जो अल्लाह कि राह में हिजरत न करे और फिर जाए ,तो उसे जहां पाओ ,पकड़ो ,और क़त्ल कर दो .सूरा अन निसा -4 :89 19 -अपनी औरतों को पीटो. “अगर तुम्हारी औरतें नहीं मानें तो पहले उनको बिस्तर पर छोड़ दो ,फिर उनको पीटो ,और मारो सूरा अन निसा – 4 :34 20 -काफिरों के साथ चाल चलो . “मैं एक चाल चल रहा हूँ तुम काफिरों को कुछ देर के लिए छूट देदो .ताकि वह धोखे में रहें अत ता.सूरा रिक -86 :16 ,17 21 -अधेड़ औरतें अपने कपडे उतार कर रहें . “जो औरतें अपनी जवानी के दिन गुजार चुकी हैं और जब उनकी शादी की कोई आशा नहीं हो ,तो अगर वह अपने कपडे उतार कर रख दें तो इसके लिए उन पर कोई गुनाह नहीं होगा .सूरा अन नूर -24 :60
s.p.singh के द्वारा
October 31, 2010
आदरणीय मयंक जी, शायद मेरे जैसे अल्पज्ञानी के लिए धार्मिक विषयों पर बहुत कुछ कहना उचित नहीं होगा पर एक बात अवश्य है कि जैसा कि हम बचपन से व्यहार में देखते आयें हैं कि हिन्दू और मुस्लिम एक साथ रहने के उपरांत भी एक दुसरे के धुर विरोधी रहे है अपने -अपने कार्य व्यहार के कारण —- भले ही शास्त्रों में ( गीता, रामायण, या पुराण और कुरान ) में कुछ भी विपरीत न हो पर उसके मानाने वालो ने तो व्यहार में ऐसा कही कुछ नहीं दर्शाया है | दूसरी बात वह यह कि धर्म ग्रंथो कि व्याख्या या मीमांसा (Interpretation) किसी भी व्यक्ति द्वारा अलग – अलग हो सकती है ? मेरे विचार से धर्म जैसे विषय पर वाद विवाद के लिए यह मंच शायद उचित नहीं है — दुनिया में और भी बहुत से विषय है एक धर्म के अतिरिक्त क्योंकि धर्म नितांत व्यक्तिगत आस्था का विषय है — केवल टॉप ब्लोगर कि दौड़ में धर्म जैसे विषय कि आवश्यकता नहीं होनी चाहिए आशा है आप इस टिपण्णी को अन्यथा नहीं लेंगे, धन्यवाद.
    atharvavedamanoj के द्वारा
    November 1, 2010
    आदरणीय एस पी सिंह जी… चाहता तो मैं भी यही था की एक बार पुनः धर्म को विषय न बनाया जाये किन्तु क्या करें हमारे अपने अकेले प्रयास से तो कुछ होने वाला नहीं है..मैं तो पहले ही यह स्पष्ट कर चूका हूँ की इस्लाम धर्म ही नहीं है फिर धर्मिक विषय का तो सवाल ही नहीं उठता|हाँ धर्म ग्रन्थों की व्याख्या अलग अलग हो सकती है किन्तु भाव तो एक ही रहते हैं? और फिर आप चाहे कैसा भी कुरान खरीद ले सूरा परा आयत तो वही रहेगी|
    hindusthangaurav के द्वारा
    November 21, 2010
    इस्लाम के बारे में अधिक जानकारी के लिए देखे साईट http://www.hindusthangaurav.com
    shahil के द्वारा
    August 1, 2011
    krupya kisi dharm ke baare me likhne se pahle uski achi tarah se adhyyan karo fir likho maine kuraan ko padha hai apne jo likha hai wo galat hai sureh anfal ka hawala bhi galat diya hai kuran me kahin bhi jikr nahi hai hinduo ka
    SUFI के द्वारा
    October 7, 2011
    हिन्दू ho इस्लाम के bisay में जयादा मत बोलो . सात पुस्त लग जाएगी इस्लाम को जानने में तुम्हारा सुभ चिन्तक
abodhbaalak के द्वारा
October 31, 2010
मनोज जी, सर्वप्रथम तो क्षमा चाहता हूँ की मै आपके इस लेख को पढने का प्रयास भी नहीं कर रहा, काफी समय चाहिए इसे पढने और उस से अधिक समय चाहिए इसे समझने के लिए जो की मेरे जैसे अबोध की लिए संभव नहीं है
हाँ, प्रंशसा केवल इस बात की अवश्य करूंगा की आपने इतना विशालकाय लेख लिखा और फिर से एक बार कुरान और हिन्दू धर्म को अपना विषय चुना, मेरे धर्म के बारे में क्या विचार हैं मै आपको पहले अवगत करा ही चूका हूँ,
http://abodhbaalak.jagranjunction.com
ashvinikumar के द्वारा
October 30, 2010
प्रिय अनुज मे यहाँ एक बात स्पस्ट कर देना चाहता हूँ ,, इस्लाम एक विचारधारा है जो ऐन केन प्रकारेण (साम्राज्यवादी व्यवस्था से अभी प्रेरित थी ,जिसका उदेश्य विध्वंश के मलबे पर एक समाज एक ऐसा समाज जो आक्रामक हो हिंसक हो खड़ा करना था और शायद वह अपनी इस भूमिका में खरा उतरा है इसका इतिहाश शाक्षी है ) हिन्दू आर्ष ग्रंथों का उदभव किसी के विरुद्ध या किसी के प्रतिरोध में नही हुआ ,वह एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है (हमारे आर्ष ग्रन्थों की बुनियाद समानांतर या विरुद्ध नही थी और न ही है वह प्रेरित करता है कर्म करने के लिए(सद्कर्म ) परन्तु बाध्य नही ) एक बात और स्पस्ट करना चाहता हूँ स्रष्टा ने जब कोइ वस्तु एक जैसी नहीं बनाई क्योंकि वह बनाना ही नही चाहता था क्योंकि एक जैसी कई वस्तु बनाना निरर्थक श्रम है ,,अगर सभी मनुष्य एक ही विचार धारा के हों तो फिर इतने ढ़ेर सारे मनुष्यों क़ी स्रष्टा द्वारा रचना ही व्यर्थ है (अतः किसी वस्तु विषय को एक सामान कहना हास्यास्पद है समानता में मतभेद अन्तर्निहित है ,,विश्व में जड़ चेतन कुछ भी एक समान नही है (ठीक उसी तरह जैसे हम एक ग्लास पानी को लेकर देखते हैं की सारा पानी ही तो है जबकि हर अणु क़ी अपना एक अस्तित्व होता है जो अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए मिटने क़ी हद तक स्न्घर्शशील रहता है …..शेष फिर कभी **********तुम्हारा
    atharvavedamanoj के द्वारा
    November 1, 2010
    प्रिय अग्रज.. सादर वन्देमातरम| आपकी प्रतिक्रियाएं थोड़े में ही बहुत कुछ कह देती हैं| मैं एक और बात जोड़ना चाहूँगा की यह इस्लाम ही था जिसने ईसाईयों के भी हांथों में तलवार पकड़ा दिया|अगर जेहाद न होता तो क्रुसेड भी न होता…चूँकि जेहाद है..इसलिए क्रुसेड भी है|आपका आभार
October 30, 2010
मनोज जी…….. यूँ तो धार्मिक विषय पर बोलना और टिपण्णी करना मुझे पसंद नहीं…. क्योकि धर्म एक वैयक्तिक विषय है……… पर धार्मिक चर्चा के मैं विरुद्ध नहीं हूँ………. कुछ विद्वान लोग धर्म पर मंथन करें और ज्ञान अमृत निकले और कुछ छीटे हम पर भी गिरे, ऐसी कामना है………. पर धर्म के नाम पर अपशब्द न तो कहे जाएँ और न ही लिखे जाएँ ………. इस का सभी प्रबुद्ध पाठकों को ध्यान रखना होगा…………. एक स्वस्थ परिचर्चा के प्रयास के लिए जैसा की आपने अपने शब्दों में कहा है की………….मैं चाहता हूँ की इस पर एक स्वस्थ बहस की परम्परा प्रारम्भ हो और सत्य को सार्थक रूप से स्वीकार करने हेतु पत्रकारिता सन्नद्ध रहे|
और साथ ही आपने ये भी कहा है की इस्लाम के दार्शनिक आधारों का भी चर्चा किया जायेगा …….
तो एक स्वस्थ परिचर्चा की शुरुवात के प्रयास के लिए हार्दिक बधाई………. और हार्दिक शुभकामनाएं……………
atharvavedamanoj के द्वारा
October 30, 2010
प्रिय मित्र पियूष जी…
समुद्र मंथन में पहले तो हलाहल ही निकलता है…अमृत तो सबसे अंत में ही प्राप्त होता है…धर्म के नाम पर अपशब्द कहने का न तो मैं हिमायती रहा हूँ और न रहूँगा…हाँ धर्म और सम्प्रदाय अलग अलग हैं इस बात को भी स्वीकार करने का साहस होना चाहिए…और इसीलिए बिना किसी प्रतिक्रिया(१ या २ आपतिजनक टिप्पड़ियों को छोड़कर) को मिटायें मैंने पूर्व में लिखे गए लेख को हुबहू मंच पर रखने का प्रयास किया है….लेकिन टिप्पड़ियां कभी भी एकांगी नहीं होनी चाहिए और न ही कोई प्रश्न उनुत्तरित रहने चाहिए ….प्रतिक्रिया का धन्यवाद
paulsoliera के द्वारा
August 7, 2011
जय हिन्द,   आपने बहुत ही अच्छा लेख लिखा है आप लिखते रहिये मुसलमान अल्लाह के खरीदे हुए हत्यारे
धन्यवाद जी|
raj के द्वारा
October 6, 2011
abe mamu likhne se kya atank khatam ho jayega tu musalmano ke bare me to likh raha hai pahele khud apne girewan me jhank ke dekh ,
naksali hum log nahe hai,
gandhi ko hamne nahe mara,……
muje pata hai ki tum 1 katter hindu ho jo sirf khun-kharaba chate ho…………lakin tumhari mansa kabhi puri nahe hogi