Saturday 3 December 2011

बलात्कार से पहले


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लोगों ने बलात्कार के संदर्भ में अपने अपने तरीके से प्रतिभाव देना शुरू कर दीये लेकिन ये देखलें कि इस्लाम बलात्कार को रोकने के लिए क्या कहता है?
इस्लाम ने बलात्कार से बचने का आसान सा सोल्यूशन दीया है. कुरान शरीफ में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है कि पुरुष अपनी निगाहें नीची रखें ओर ओरतों से भी निगाहें नीचे रखने को कहा गया(सूरए नूर,आयात-३०,३१) कोई माने या न माने लेकिन बलात्कार की पहली मंज़िल(स्टेप) “नज़र” है.इन्सान की नज़र ज़बरदस्त तीर दिल पर फेंकती है.पैगम्बर हज़रत ईसा अयहिस्सलाम ने फरमाया ‘अय लोगों बद निगाही(हवस वाली नज़र) से बचो क्यूँ की ग़लत नज़र से देखने से दिल में हवस पैदा होती हे जो बलात्कार के लिए काफी है’. पैगम्बर दाउद अयहिस्सलाम ने अपने बेटे से फरमाया ‘बेटा! तू शेर के पीछे जा सकता है,काले नाग के पीछे जा सकता है लेकिन औरत के पीछे न जाना क्यूँ कि सांप का डंसा हुए का इलाज है लेकिन बद-निगाही का डंस ऐसा ज़ालिम है कि उस से पीछा छुड़ाना मुश्किल है’.आखरी पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम ने उम्मुल मोमिनीन आयशा सिद्दीका रदिअल्लाहोअन्हो से किसी नाबीना(अंध) पुरुष से परदे का हुक्म दीया तो उन्हों ने कहा कि ये तो नाबीना हे, तो मुहम्मद सल्लल्लाहो अलयहे वसल्लम ने फरमाया वोह नाबीना है तुम तो नहीं.इस बात से आपको इस्लाम में परदे की हकीकत का काफी अंदाजा आ जायेगा.
शुरुआत नज़र से होती है, यहाँ पर  एक बात नोट करने जैसी है कि पुरुष को निगाहें नीचे रखने का हुक्म दीया साथ में औरतों को ये हुक्म क्यूँ? मेरी नज़र में इस का जवाब यह हो सकता है कि “सिग्नल देती है” जैसी नौबत ही न आये. क्यूँ कि ताली एक हाथ से नहीं बजती बलात्कार में जितने पुरुष ज़िम्मेदार हैं उतनी औरत भी है कुछ अपवादों को छोड़ कर.
बलात्कार को या हवस वाली नज़र पैदा करने में फ़िल्में बहुत बड़ा किरदार निभा रही है. ओर हर तरह का मीडिया,कोई भी टीवी चैनल,न्यूज़ चैनल,न्यूज़ पेपर हो या मेगेज़ीन जिस में छपने वाली नग्न या अर्ध-नग्न तस्वीरें हवस को बढाने में आग में पेट्रोल की तरह काम करती हैं लेकिन इसकी तरफ कोई कुछ नहीं बोलता क्यूँ कि उन्हें खुद मज़ा आता है.”सेक्स समस्या” या यौन सम्बन्ध से रिलेटेड आर्टिकल की न्यूज़ पेपर में कोई ज़रुरत नहीं क्यूँ की वैसे भी उन गंभीर बीमारियों का इलाज कोई पर्सनली डॉक्टर की सलाह के बगैर नहीं करता.एक तरफ बलात्कार को रोकने कि बातें होती है ओर दूसरी तरफ टीवी पर नन्गे प्रोग्राम दिखाये जाते हैं या न्यूज़ पेपर में नग्न तस्वीरें छापी जाती (ताकि बिज़नेस बढे) है ओर उधर बलात्कार को रोकने की  सिर्फ बातें होती हैं.शायद यह बातें पढ़ कर आप लोगों को एसा भी लगेगा कि आया बड़ा शरीफ! लेकिन सभी बातें गौर करने जैसी हैं.
आज के इस दौर में बे-पर्दगी से फिरने को आज़ादी कहा जा रहा है. ओर परदे को औरत का दुश्मन जाना जा रहा है. इस्लाम के विरोधी परदा करने वाली औरत को मज़लूम समझते हैं ओर आधे या आधे से कम कपडे पहेन ने को आज़ादी कहते हैं. वोह समझते हैं की हम मुसलामानों को बेवक़ूफ़ बना रहे हैं लेकिन असल में वो ख़ुद बेवक़ूफ़ बन रहे हैं बलात्कार जैसे गुनाह कर के.

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